नहरों में पानी नहीं, तराई के किसान चिंतित

जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों नहरें सूखी हैं। नहरों में पानी की जगह धूल उड़ रही है जिसके कारण किसान गेहूं की बोआई नहीं कर पा रहे हैं।

Update: 2020-12-15 12:44 GMT

प्रयागराज। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों नहरें सूखी हैं। नहरों में पानी की जगह धूल उड़ रही है जिसके कारण किसान गेहूं की बोआई नहीं कर पा रहे हैं। तरहार क्षेत्रों में हजारों एकड़ खेत में अभी गेहूं की बोआई नहीं हो सकी है जिससे किसानों की चिंता बढ़ गई है। सबसे ज्यादा दिक्कत यमुनापार में लालापुर के तरहार इलाके में है।

नहरों में पानी न छोड़े जाने से रबी फसलों की बोआई में दिक्कत  हो रही है। नहरों में पानी न छोड़े जाने से क्षेत्र के किसानों के सिर पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। पानी की समुचित व्यवस्था न होने से काश्तकारों को खेती पिछडने की चिंता सताने लगी है। बारा तहसील के पंडुआ गांव स्थित कमला पंप कैनाल से बड़ी नहर तथा छोटी माइनरों में पानी पहुंचता है। इसी पानी से खेतों की सिंचाई होती है लेकिन रबी फसल की जुताई और बोआई के ठीक समय पर पानी न छोड़े जाने से नहरों में धूल उड़ रही है। मदुरी गांव निवासी जगदीश नारायण दिवेदी व डेराबारी के रामबाबू मिश्र, पडुआ के उमाशंकर प्रजापति, लालापुर के रामायण प्रसाद त्रिपाठी ने दुखी मन से बताया कि जरूरत के समय नहरों में पानी नहीं होने से खेतों का पलेवा और जुताई तथा बोआई का काम पूरी तरह से प्रभावित है। किसानों का कहना है कि जिस समय पानी की आवश्यकता नहीं होती, उस समय नहरों में पूरी रफ्तार से पानी छोड़ दिया जाता है। जिससे खेत जलमग्न होने के साथ खड़ी फसलें बर्बाद हो जाती हैं और जरूरत के समय पानी नहीं छोडा जाता है।

उमाशंकर प्रजापति ने तीन बीघा में मिर्च की खेती की है। सिंचाई के लिए नहर में पानी नहीं आने से उनको काफी नुकसान हुआ है। उन्होंने बताया कि नहर न चलने से उन्हें 70 हजार रुपये का नुकसान हुआ है। अगर समय से नहर चल गई होती तो उन्हें 70 हजार रुपये का नुकसान नहीं भुगतना पड़ता। उमाशंकर ने बताया कि दो हजार रुपये कुंतल मिर्च मंडी में बिकती है। हाईब्रिड मिर्च में 50 हजार रुपये लागत लगती है। आठ महीना मिर्च की खेती रहती है।


हीफी

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