अलफलाह यूनिवर्सिटी के संस्थापक को राहत- नहीं गिरेगा पैतृक घर
अधिवक्ता का कहना है कि कैंटोनमेंट बोर्ड की ओर से जारी किए गए नोटिस में यह स्पष्ट नहीं किया गया है
इंदौर। अपनी कारगुजारी से देशभर में तहलका मचाकर रख देने वाले अलफलाह यूनिवर्सिटी के संस्थापक एवं चेयरमैन को हाई कोर्ट से बड़ी राहत हासिल हुई है। पैतृक मकान पर जारी तोड़फोड़ के नोटिस के बाद हाई कोर्ट ने अगले 15 दिन की अवधि तक संस्थापक के पैतृक मकान को नहीं गिराने के आदेश दिए हैं।
शुक्रवार को फरीदाबाद की अलफलाह यूनिवर्सिटी के संस्थापक एवं अलफलाह ग्रुप के चेयरमैन जावेद अहमद सिद्दीकी के पिता हम्माद अहमद के पैतृक मकान को लेकर जारी तोड़फोड़ के नोटिस के खिलाफ दायर की गई याचिका पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सुनवाई की।
यह याचिका मकान निवासी और वर्तमान दखलदार अब्दुल मजीद की ओर से दाखिल की गई है। अब्दुल मजीद के अधिवक्ता अजय बगड़िया ने अदालत को बताया है कि हम्माद सिद्दीकी अब जीवित नहीं है और उन्होंने इस मकान का स्वामित्व अब्दुल मजीद के नाम कर दिया था, इसलिए इस संपत्ति के वैध मलिक अब्दुल मजीद है।
अधिवक्ता ने बताया है कि कैंटोनमेंट बोर्ड ने हम्माद सिद्दीकी के मकान पर अवैध निर्माण हटाने का नोटिस जारी किया था, जिसमें तीन दिनों के भीतर कार्रवाई करने को कहा गया है।
अधिवक्ता का कहना है कि कैंटोनमेंट बोर्ड की ओर से जारी किए गए नोटिस में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि मकान का अतिक्रमण कितना है और किस हिस्से में है?
अजय बगड़िया ने कहा है कि इसी तरह के नोटिस वर्ष 1996 एवं 1997 में भी जारी किए गए थे, लेकिन ना तो कब्जा हटाया गया और ना ही प्रशासन ने कोई कार्यवाही की। ऐसे हालातों में केवल तीन दिन की अवधि देना अनुचित है।
अधिवक्ता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2025 के दिशा निर्देशों के मुताबिक किसी भी तोड़फोड़ या अवैध निर्माण हटाने के कार्यवाही से पहले संबंधित को कम से कम 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है। इसलिए तीन दिन की अवधि कानून का उल्लंघन है।
हाई कोर्ट ने फिलहाल याचिकाकर्ता को अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए 15 दिनों की अवधि दी है और निर्देश दिया है कि यदि इस संपत्ति के खिलाफ कोई आदेश पारित किया जाता है तो याचिकाकर्ता को इस चुनौती देने के लिए अतिरिक्त 10 दिन का समय भी मिलेगा।