सरकारी आवास पर कब्जा, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई पूर्व विधायक को फटकार
पूर्व विधायक अविनाश कुमार सिंह याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया।;
नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने बिहार के एक पूर्व विधायक को कथित तौर पर सरकारी आवास पर अवैध कब्ज़ा करने के मामले में मंगलवार को फटकार लगाई और कोई राहत देने से इनकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली पूर्व विधायक अविनाश कुमार सिंह याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया।
पीठ ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा “किसी को भी सरकारी आवास पर हमेशा के लिए कब्ज़ा नहीं रखना चाहिए।”
न्यायालय ने बिहार के पूर्व विधायक की उनके विधानसभा सदस्य का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी सरकारी आवास पर कब्जा जमाए रखने के लिए आलोचना की और कहा कि इस तरह के आचरण को अस्वीकार्य है।
पूर्व विधायक ने उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें आवंटित सरकारी आवास में निर्धारित अवधि से अधिक समय तक रहने के लिए बिहार सरकार की ओर से लगभग 21 लाख रुपये के किराए की मांग को बरकरार रखा गया था।
पीठ ने याचिकाकर्ता को कानून के तहत उपलब्ध किसी भी अन्य उपाय का उपयोग करने की स्वतंत्रता देते हुए इसे वापस लेने की अनुमति दे दी।
इससे पहले पूर्व विधायक सिंह ने पटना उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर कर सरकार के उस आदेश को रद्द करने की मांग की थी, जिसमें 2006 से 2015 तक विधायक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें आवंटित एक आवाश में निर्धारित अवधि से अधिक समय तक रहने के कारण 20,98,757 रुपये का मकान किराया काटने का आदेश दिया गया था।
उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि उन्होंने अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी उस मकान में रह रहे थे।
उच्च न्यायालय ने सिंह के आचरण की कड़ी आलोचना करते हुए कहा था, “जैसे ही उन्होंने विधायक पद छोड़ा, उन्हें तुरंत सरकारी आवास खाली कर देना चाहिए था। उन्हें नियमों के अनुसार वैकल्पिक आवास की तलाश करनी चाहिए थी। इसके बजाय, उन्होंने पटना के टेलर रोड स्थित सरकारी क्वार्टर नंबर 3 पर अवैध रूप से कब्ज़ा बनाए रखा और अधिकारियों पर इसे अपने पक्ष में नियमित करने का दबाव डाला। उनका आचरण अनुचित और मनमाना था।”
न्यायालय ने सरकार की ओर से दंडात्मक किराया माँग को उचित पाया और बार-बार नोटिस देने के बावजूद सरकारी आवास खाली करने से इनकार करने के उनके "हठ" के कारण 24 अगस्त, 2016 से भुगतान तक बकाया राशि पर छह फीसदी प्रति वर्ष की दर से ब्याज लगाया।