आतंकवाद विरोधी एक्ट में संशोधन जनविरोधी एवं अति कठोर : दारापुरी

आतंक के मामलों की विवेचना पुलिस उपाधीक्षक की जगह् पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा किया जाना भी विवेचना की गुणवत्ता के लिए अच्छा नहीं है

Update: 2019-07-26 05:05 GMT

लखनऊ।  "आतंकवाद विरोधी एक्ट में संशोधन जनविरोधी एवं अति कठोर" –यह बात आज एस आर दारापुरी पूर्व आई जी एवं संयोजक जन मंच ने प्रेस को भेजी गयी विज्ञप्ति में कही है ।

सरकार को उत्पीड़न का औजार मिल जाएगा

एस आर दारापुरी ने कहा है की इस एक्ट में किसी संगठन के साथ साथ किसी व्यक्ति को तथाकथित आतंकवादी विचारधारा के आधार पर आतंकवादी घोषित करने का प्राविधान पूरी तरह से जनविरोधी, अति कठोर एवं मानवाधिकारों का हनन करने वाला है। इसमें सरकार को किसी भी विचारधारा को आतंकवादी विचारधारा करार देने तथा उसको मानने वालों तथा उसका प्रचार करने वालों के उत्पीडन का औजार मिल जायेगा।

सरकार विरोधी लोगों का उत्पीडन करके का कानूनी हथियार उपलब्ध हो जायेगा जिसका खुला दुरूपयोग किये जाने की पूरी सम्भावना है

यह ज्ञातव्य है कि इस प्राविधान के बिना भी बहुत से बुद्धिजीवियों, लेखकों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को शहरी नक्सली करार देकर जेल में डाला जा चुका है. इस संशोधन से ऐसे लोगों तथा सरकार विरोधी लोगों का उत्पीडन करके का कानूनी हथियार उपलब्ध हो जायेगा जिसका खुला दुरूपयोग किये जाने की पूरी सम्भावना है।

आतंक के मामलों की विवेचना पुलिस उपाधीक्षक की जगह् पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा किया जाना भी विवेचना की गुणवत्ता के लिए अच्छा नहीं है

इसी प्रकार प्रस्तावित संशोधन में आतंकवाद के आरोपी की पुलिस रिमांड 14 दिन से बढ़ा कर 30 दिन तक करने से पुलिस रिमांड के दौरान हिरासत में टार्चर की अवधि बहुत बढ़ जाएगी जिससे न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता बल्कि पुलिस द्वारा उत्पीडन की सम्भावना भी बढ़ जाएगी। संशोधन में आतंक के मामलों की विवेचना पुलिस उपाधीक्षक की जगह् पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा किया जाना भी विवेचना की गुणवत्ता के लिए अच्छा नहीं है।

अतः जनमंच उपरोक्त प्रस्तावित संशोधनों का विरोध करता है और विपक्ष से मांग करता है की वह इसे राज्य सभा में पारित न होने दे तथा जनता द्वारा इन संशोधनों के विरुद्ध आवाज़ उठाई जानी चाहिएं।

 

Tags:    

Similar News