मेरी बात - उपनिषद काल में होती थी प्रश्नों की खेती - हृदयनारायण दीक्षित विधानसभा अध्यक्ष
उद्दालक की प्रतिष्ठा अन्य उपनिषदो में भी है। संभव है कि इस यज्ञ के बाद वे दर्शन की ओर मुड़े हों। उपनिषद् की कथा के अनुसार “अल्पवयी होने के बावजूद नचिकेता श्रद्धा विह्वल आवेश में आया। दान की जीर्ण शीर्ण गायों को देखकर वह दुखी हुआ।” (वही 2) वैदिक समाज में दान की महिमा थी। आधुनिक समाज में बहुत लोगों को अनुदान की इच्छा रहती है। नचिकेता ने सोचा “इन गायों का शरीर जीर्ण हो चुका है। उन्हें अंतिम बार दुहा जा चुका है। वे ठीक से घास भी नहीं खा सकतीं। ऐसी गायों को दान देने वाला सुखहीन लोकों में दुखी जीवन को अभिशप्त होगा।” (वही 3) संसार कर्मक्षेत्र है। कर्म न करके दान दक्षिणा और यज्ञ के माध्यम से उच्च जीवन की अभिलाषा उचित नहीं लेकिन नचिकेता के पिता तो और भी बड़ी गलती कर रहे थे। वे कृशकाय गायों के दान से श्रेष्ठ जीवन के अभिलाषी थे। नचिकेता इस बात से व्यथित हुआ। उसने पिता से प्रश्न पूछा “पिताजी आप मुझे किसे देंगे? वे नहीं बोले। उसने यही प्रश्न तीन बार पूछा। पिता ने गुस्से में कहा- मैं तुझे मृत्यु को दूंगा।” (वही 4) अपने कर्म पर गुस्साए और शिशु के तीखे प्रश्न से आहत पिता के पास प्रश्न का सही उत्तर नहीं था।
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