आज ही के दिन 1984 को हुई थी लोकदल की स्थापना

लोकदल की कहानी 1974 से शुरू होती है, जब चौधरी चरण सिंह ने भारतीय लोक दल नाम से अपनी पार्टी बनाई थी और इसे हलधर किसान चुनाव चिन्ह मिला था, लेकिन इमरजेंसी के बाद 1977 में इंदिरा गांधी का मुकाबला करने के लिए कई नेताओं ने अपनी-अपनी पार्टियों का विलय करके जनता पार्टी बनाई थी

Update: 2019-08-29 04:30 GMT

पूर्व प्रधानमंत्री और प्रथम बार किसान मसीहा के खिताब से विभूषित किये जाने वाले चौधरी चरण सिंह ने वर्ष 1984 में 29 अगस्त को आज ही के दिन राजनीतिक पार्टी के रूप में लोकदल की स्थापना की थी और उसका चुनाव चिन्ह हल जोतता किसान था। ये चौधरी साहब का ही कमाल था कि 1984 के लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी के सिर्फ दो सांसद थे, तब लोकदल के चार सांसद थे।



एक समय था जब देवी लाल, नीतीश कुमार, बीजू पटनायक, शरद यादव और मुलायम सिंह यादव भी इसी लोक दल के नेता होते थे। लोकदल चौधरी चरण के जिन्दा रहने तक रूतबे के साथ संचालित होती रही, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद लोकदल पर कब्जे को लेकर जंग छिड़ गई। उस समय कुछ दिनों तक हेमवती नंदन बहुगुणा इसके अध्यक्ष रहे, लेकिन बाद में यह लड़ाई चुनाव आयोग पहुंच गई। उस समय भी पार्टी पर दावा करने वालों में खुद चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह भी शामिल थे, लेकिन भारतीय चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया था कि अजीत सिंह बेटे होने के नाते चरण सिंह की संपत्ति के वारिस तो हो सकते हैं, मगर पार्टी की विरासत उन्हें नहीं मिल सकती।


लोकदल की कमान लंबी कानूनी लड़ाई के बाद चौधरी चरण सिंह के खासमखास एवं कई बार के लोकदल विधायक एवं मंत्री रहे अलीगढ़ के प्रतिष्ठित जाट नेता चौधरी राजेंद्र सिंह को मिली। वर्तमान मे 2005 से उन्हीं के पुत्र सुनील सिंह लोकदल के अध्यक्ष हैं। सुनील सिंह एक बार उत्तर प्रदेश के विधान परिषद सदस्य रह चुके हैं। चुनाव आयोग की लिस्ट में लोकदल आज उत्तर प्रदेश की एक अनरिकाॅगनाइज़्ड़ पार्टी के रूप में दर्ज है। बता दें कि सुनील सिंह प्रखर समाजवादी व पूर्व समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के करीबी हैं। उत्तर प्रदेश के विगत विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी में मचे घरेलू घमासान के दौरान मुलायम सिंह यादव ने असमंजस में फंसे अपने करीबियों को इसी लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ने की सलाह दी थी।



हल, बैल और किसान से ही जुड़ा रहा चुनाव चिन्ह

 लोकदल की कहानी 1974 से शुरू होती है, जब चौधरी चरण सिंह ने भारतीय लोक दल नाम से अपनी पार्टी बनाई थी और इसे हलधर किसान चुनाव चिन्ह मिला था, लेकिन इमरजेंसी के बाद 1977 में इंदिरा गांधी का मुकाबला करने के लिए कई नेताओं ने अपनी-अपनी पार्टियों का विलय करके जनता पार्टी बनाई थी, लेकिन संयोग रहा कि इस जनता पार्टी का चुनाव निशान भी हलधर किसान ही रहा। 1977 में हलधर किसान चुनाव चिन्हं पर चुनाव जीतकर जनता पार्टी ने कांग्रेस को पटखनी दे दी और केंद्र में सरकार बनाई। मोरारजी देसाई के बाद चौधरी चरण सिंह जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री भी बने, लेकिन 1980 में आपसी मतभेदों के कारण जनता पार्टी टूट गई। नतीजा यह रहा कि चैधरी चरण सिंह भी उससे अलग हो गए और उन्होंने 1984 में लोकदल की स्थापना कर दी। इसका चुनाव चिन्ह हल जोतता हुआ किसान मिला। यह भी संयोग ही रहा कि पार्टी का नाम तो कई बार बदला, लेकिन चुनाव चिन्ह हल, बैल और किसान के इर्दगिर्द ही घुमता रहा।


नाम बदला, लेकिन विचारधारा नहीं बदली



यूपी की राजनीति में किसान नेता के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले चौधरी चरण सिंह के अनुयायियों की आज भी कमी नहीं है। लोकदल एक ऐसा राजनीतिक दल है जो कई बार टूटा और कई बार जुड़ा, लेकिन इसकी विचारधारा नहीं बदली। चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस मंत्रिमण्डल से इस्तीफा देने के बाद भारतीय क्रांति दल की स्थापना की थी। 1974 में उन्होंने इसका नाम बदलकर लोकदल कर दिया था। इसके बाद जनता पार्टी में 1977 में इसका विलय हो गया था। जनता पार्टी टूटने के बाद 1980 में चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी (एस) का गठन किया और 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में इस दल का नाम बदलकर दलित मजदूर किसान पार्टी करके चुनाव लड़ा गया। हेमवती नन्दन बहुगुणा इससे अलग होने के बाद 1985 में चौधरी चरण सिंह ने लोकदल का गठन किया था। 1987 में चौधरी अजित सिंह के हस्तक्षेप के चलते पार्टी में फिर विवाद हो गया और लोकदल (अ) का गठन किया गया। इसके बाद लोकदल (अ) का जनता दल में विलय हो गया। जब जनता दल में आपसी टकराव हुआ तो 1987 लोकदल (अ) और लोकदल (ब) बन गया। 1988 में इसका जनता पार्टी में विलय हो गया। इसके बाद जब जनता दल बना तो अजित सिंह का दल उसके साथ हो गया। चै. अजित सिंह का 1993 में कांग्रेस में विलय हो गया, लेकिन चौधरी अजित सिंह ने फिर कांग्रेस से अलग होकर 1996 में किसान कामगार पार्टी का गठन किया। इसके बाद 1998 में चै. चरण सिंह की विचारधारा पर चलने का दावा करते हुए चै. अजित सिंह ने इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय लोकदल कर दिया। पार्टी बनने, टूटने या नाम बदलने की उठापठक के बावजूद यह बात काॅमन रही कि उसकी विचारधारा हल, बैल और किसानों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही, उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ।


चौधरी चरण सिंह से ही की थी मुलायम ने राजनीति की शुरूआत



मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत ही चौधरी चरण सिंह के साथ की। वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव जीतने के बाद 1969 में वह चौधरी चरण सिंह से जुड़ गए थे। चौधरी चरण सिंह ने जब लोकदल का गठन किया तो मुलायम सिंह यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी थी। प्रदेश में जब जनता पार्टी की सरकार बनी थी तो मुलायम सिंह को सहकारिता मंत्री बनाया गया था। चौधरी चरण सिंह ने मुलायम सिंह को यूपी विधानसभा में वीर बहादुर सिंह की सरकार में नेता विरोधी दल बनाया था।


कभी अर्श पर थे, लेकिन आज हैं फर्श पर


उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल पश्चिमी क्षेत्र में काफी प्रभावशाली माना जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। छह बार लोकसभा सदस्य रहे चौधरी अजित सिंह पिछले बार हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के सत्यपाल सिंह से चुनाव हार गए। वहीं उनके बेटे जयंत चौधरी मथुरा लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे। वर्तमान में भी संसद में उनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। चौधरी चरण की विरासत के बल पर कभी चौधरी अजीत सिंह अर्श पर थे, लेकिन विरासत सम्भालकर नहीं रख पाने के कारण आज फर्श पर हैं।

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