मोदी सरकार कब तक कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी के लिए खुशगवार और हिफाज़ती माहौल में दोबारा बसाने की तैयारी करती है और वादी-ए-कश्मीर में रोजगार कारोबार और सरकारी नौकरियों के रास्ते खोलती है।
तकरीबन 29 साल पुरानी बात है रात थी 19 जनवरी 1990 हजारों की तादाद में कश्मीरी पंडितो को दहशतगर्दों के फरमान से अपनी जान माल की हिफाजत और महफूज़ पनाह के लिए वादी-ए-कश्मीर को छोड़ कर भागना पड़ा और तभी से कश्मीरी पंडित अपने ही मुल्क में एक रिफ्यूजी की जिंदगी जी रहे हैं।
गुलिस्ता चंद सालों तक वादी-ए-कश्मीर में दहशतगर्दी के बावजूद दस हजार से ज्यादा कश्मीरी पंडितों के खानदान मुकामी थे खौफ से जिंदगी गुजर बसर कर रहे थे लेेेेकिन मौजूदा हालात बदल गयी हैं यह तादाद घटकर 3500 के करीब रह गई है,इस हालात की सबसे बड़ी वजह दहशतगर्दी का अजा़ब और सेंट्रल ओर स्टेट गवर्नमेंट का कश्मीरी पंडितों पर तवज्जो नहीं दिया जाना था।
वादी-ए-कश्मीर कश्मीरी पंडितों से अब पूरी तरह से खाली होने की कगार पर थी पहले दहशतगर्दी के खौफ की वज़ह से कश्मीरी पंडितों को कश्मीर को छोड़कर जाना पड़ा था तो अब बाकी खानदान को रोजगार आबोदाना और महफूज़ आशियाना की तलाश की वजह से कश्मीर को छोड़कर जाना पड़ रहा था ।
मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35A हटाने के बाद मुल्क के दूसरे हिस्सों में और वादी-ए-कश्मीर में रह रहे कश्मीरी खानदानों में खुशी की लहर है अब उनको कश्मीर वापसी की एक उम्मीद जगी है और वादी-ए-कश्मीर में अमन का माहौल क़ायम होगा और इज्जत और वकार के साथ उनकी वापसी की राह आसान होगी ।
अब यह देखना बाकी है कि मोदी सरकार कब तक कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी के लिए खुशगवार और हिफाज़ती माहौल में दोबारा बसाने की तैयारी करती है और वादी-ए-कश्मीर में रोजगार कारोबार और सरकारी नौकरियों के रास्ते खोलती है।