देश की आर्थिक खुशहाली में बैंको का योगदान जरूरी है
सरकार ने निजी बैंकों को अलग से महत्व दे रखा है। बाद में कानूनी लचरता का फायदा उठाकर जनता को लूटने के माध्यम बन जाते है। शुरू में उनके कार्यालय चाक चैबंद, वेल एजूकेटेड पुरुष और महिला कर्मचारी है, जो अपनी बिजनेस चर्चा से लोगों का दिल जीत लेते हैं और अपने बने नए मधुर संबंधों को जल्द बैंकों में कैश कराकर मोटा कमीशन बटोरने लगते है। धीमे-धीमे जनता में लोकप्रियता छाने लगती है और वे दो गुना चैगुना दस गुना वापस करने का प्रलोभन देकर धन जमा कराते हैं। जिससे गरीब मध्यम वर्ग के लोग झांसे में आ जाते हैं पर वो इस धन को कहाँ से वापस लाएंगे उनके पास कोई जादुई छड़ी तो नहीं है सो वो सारा जमा धन बटोरकर कहीं फुर्र हो जाते है। गरीब मध्यम वर्गीय व्यक्ति हाथ मलने के सिवाय और कुछ नहीं कर पाता है। उच्च वर्ग अपना घाटा तो सह लेता है क्योंकि वो तो सभी बैंको में अपना खाता खुलवाकर धन जमा करवाता है।
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