राजनाथ व डोभाल का चक्रव्यूह

सीमाओं पर कितने ही दुरूह स्थल हैं। कहीं शरीर को जमा देने वाली ठण्ड पड़ती है तो कहीं शरीर को झुलसा देने वाली रेत की आंधियां चलती रहती हैं

Update: 2020-09-20 14:23 GMT

नई दिल्ली। हमारे देश की भावना तो यही है कि सभी पड़ोसी देश शांति और सद्भाव के साथ रहें। हमने हमेशा सिर्फ अपने कल्याण की कामना नहीं की बल्कि सर्वे भवन्तु सुखिना, सर्वे सन्तु निरामया की ईश्वर से प्रार्थना की है लेकिन हमारे कुछ पड़ोसी देश सद्भावना की जगह दुर्भावना दिखाते रहे हैं। सीमाओं पर कितने ही दुरूह स्थल हैं। कहीं शरीर को जमा देने वाली ठण्ड पड़ती है तो कहीं शरीर को झुलसा देने वाली रेत की आंधियां चलती रहती हैं। ऐसे हालात में भी हमारे वीर सैनिक सीमा पर पहरा देते हैं, निरंतर गश्त करते रहते हैं। सभी देश मानवीय दृष्टिकोण का ईमानदारी से पालन करें तो सैनिकों को इस प्रकार के खतरनाक मौसम से बचाया जा सकता है। हमने पाकिस्तान की सीमा पर एक बार इस प्रकार की पहल भी की थी लेकिन जवाब में विश्वासघात मिला था। कारगिल की शरीर को जमा देने वाली पहाडियों से दोनों देशों ने सैनिकों को नीचे शिविरों में भेज दिया ताकि सीमा की रक्षा करने वाले सैनिक कुछ दिनों तक आराम कर लें। पाकिस्तान ने इसी का नाजायज फायदा उठाया था। कुछ दिनों बाद ही उसके सैनिक कारगिल की पहाड़ियों पर पहुंच गये और भारत की सीमावर्ती सड़कों को गन प्वाइन्ट पर ले लिया था। भारत के लिए यह गंभीर समस्या बन गयी थी क्योंकि पहाड़ के ऊपर बैठा दुश्मन का एक जवान भी नीचे से लड़ रहे दस जवानों पर भारी पड़ सकता है। इसके बावजूद भारत के जवानों और बोफोर्स तोप ने पाकिस्तानी सैनिकों को कारगिल से हटने पर मजबूर कर दिया था। चीन के साथ उसी प्रकार की गलती भारत नहीं करना चाहता। मास्को में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान हमारे विदेशमंत्री जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष से स्पष्ट कह दिया कि बीजिंग जब तक पूर्व में हुए समझौतों पर अमल नहीं करता, तब तक आगे की बातचीत का मतलब नहीं है। चीन की नीयत को देखकर ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल और प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल विपिन रावत ने मिलकर चीन की सीमा पर ऐसा चक्रव्यूह बनाने की रणनीति बनायी है, जिसको शी जिनपिंग की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) किसी तरह से तोड न पाए।

भारत सरकार ने पूर्वी लद्दाख में भारत की अभियानगत तैयारियों सहित क्षेत्र में संपूर्ण स्थिति की 18 सितम्बर को व्यापक समीक्षा की। सरकारी सूत्रों ने अनुसार चीनी सेना के लगातार आक्रामक रुख अपनाये रखने और क्षेत्र में भारतीय सैनिकों को फिर से डराने की कोशिश किये जाने के मद्देनजर यह बैठक की गई। सूत्रों ने बताया कि उच्चाधिकार प्राप्त चाइना स्टडी ग्रुप की करीब 90 मिनट चली बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत और तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम सेक्टरों समेत करीब 3,500 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास सतर्कता और बढ़ाए जाने पर भी विचार किया है। सूत्रों के अनुसार थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने बैठक में पैंगोंग झील के उत्तर एवं दक्षिण किनारे पर भारतीय एवं चीनी बलों के फिर से आमने-सामने होने के संबंध में जानकारी दी और इस प्रकार की कोशिशों से प्रभावशाली तरीके से निपटने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताया। एक सूत्र ने कहा, चाइना स्टडी ग्रुप की बैठक में हालात के सभी पहलुओं की समीक्षा की गई। उन्होंने बताया कि बैठक में पूर्वी लद्दाख और अत्यधिक ऊंचाई वाले अन्य संवेदनशील सेक्टरों में सर्दियों में भी सभी अग्रिम इलाकों में बलों और हथियारों का मौजूदा स्तर बनाए रखने के लिए आवश्यक प्रबंधों पर भी विचार-विमर्श किया गया। इन इलाकों में सर्दियों में तापमान शून्य से भी 25 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है। सूत्रों ने बताया कि बैठक में इस बात पर भी चर्चा की गई कि कोर कमांडर स्तर की अगली वार्ता में भारतीय पक्ष को किन मुख्य बिंदुओं को उठाना है। इस वार्ता में 10 सितंबर को मास्को में भारत एवं चीन के विदेश मंत्रियों के बीच हुए समझौते के क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित किए जाने की संभावना है। एक सूत्र ने कहा, हम टकराव के सभी बिंदुओं से चीनी बलों को शीघ्र एवं पूरी तरह पीछे हटाने पर जोर देंगे। यह सीमा पर शांति स्थापित रखने की दिशा में पहला कदम है।

सूत्रों ने बताया कि चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने कोर कमांडर स्तर की वार्ता का अगला दौर आयोजित करने के संबंध में भारतीय सेना को अभी कोई जवाब नहीं दिया हैं। एक सूत्र ने कहा, चीनी सेना ने अभी जवाब नहीं दिया है, इसलिए अभी कोई तिथि तय नहीं की गई है। वार्ता अगले सप्ताह किसी दिन हो सकती है। दोनों पक्षों के बीच कोर कमांडर स्तर की अब तक पांच दौर की वार्ता हो चुकी है। सूत्रों ने बताया कि पैंगोंग झील के उत्तर एवं दक्षिण किनारे समेत पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले अन्य बिंदुओं पर हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। बैठक में यह सवाल भी उठा कि भारतीय सेना को लगातार डराने की कोशिश चीन क्यों कर रहा है। चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने पैंगोंग झील क्षेत्र के उत्तरी और दक्षिणी तटों पर पिछले तीन सप्ताह में भारतीय सैनिकों को भयभीत करने की कम से कम तीन कोशिशें की हैं। यहां तक कि 45 साल में पहली बार एलएसी पर हवा में गोलियां चलाई गईं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने गत 17 सितम्बर को कहा था कि चीन को पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील क्षेत्र सहित टकराव वाले सभी इलाकों से सैनिकों को पूर्ण रूप से हटाने के लिये प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए। उन्होंने चीन से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिशें नहीं करने को भी कहा।

उन्होंने कहा था कि दोनों देशों को तनाव बढ़ा सकने वाली गतिविधियों से दूर रहते हुए टकराव वाले इलाकों में तनाव घटाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। चीनी विदेश मंत्रालय द्वारा जारी किये गये एक बयान के मद्देनजर श्रीवास्तव की यह टिप्पणी आई। मास्को में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक से अलग 10 सितंबर को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ एक बैठक की थी, जिसमें सीमा विवाद के हल के लिए पांच सूत्री एक समझौते पर सहमति बनी थी। चीन पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा है। सीमा पर सैनिकों की तैनाती को लेकर वह लगातार झूठ बोलता है। इसके अलावा चीन की शह पर ही नेपाल और पाकिस्तान ऐसी हरकतें कर रहे हैं जिससे भारत को परेशानी हो। यही देखकर रक्षा मंत्री और सुरक्षा सलाहकार ने चीन की सीमा पर सुरक्षा को अभेद्य बनाने पर मंथन किया है। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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