कांग्रेस: सरकार निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू कर 50 फीसदी की..
क्योंकि ये हमेशा अपने वादों से पलटते दिखे हैं और इतिहास इसका गवाह है।”;
नई दिल्ली, कांग्रेस ने कहा है कि सरकार को निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू कर देश में आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा खत्म करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए।
कांग्रेस ओबीसी विभाग के अध्यक्ष अनिल जयहिंद, अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष राजेश लिलोथिया तथा आदिवासी विभाग के अध्यक्ष डॉ विक्रांत भूरिया ने सोमवार को यहां पार्टी मुख्यालय में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार को निजी शिक्षण संस्थानों में कमजोर वर्गों के लिए अपने अधिकार का इस्तेमाल कर उन्हें आरक्षण देना चाहिए और आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा खत्म करनी चाहिए।
डॉ जयहिंद ने कहा, “हमारे देश में जब मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री और अर्जुन सिंह जी शिक्षा मंत्री थे तब संविधान में 93वां संशोधन हुआ जिसमे एक अनुच्छेद 15(5) बना जिसके तहत दलितों, आदिवासियों तथा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान हुआ। उस समय सरकारी संस्थानों में ये आरक्षण लागू हो गया लेकिन निजी संस्थानों के लोग इसे कोर्ट में ले गए, जहां ये मामला चलता रहा है। इस अनुच्छेद में कहा गया कि राज्य को समाज के किसी भी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से वंचित वर्ग के साथ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की प्रगति के लिए समायोजन से संबंधित कुछ विशिष्ट प्रावधानों को स्थापित करने का अधिकार है।”
उन्होंने कहा, “जनवरी 2014 में ये तय किया गया कि सरकार निजी शैक्षणिक संस्थानों में दलितों, आदिवासियों और सामाजिक व शैक्षणिक रुप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण दे सकती है। फिर देश में आम चुनाव हुए और एक नई सरकार अस्तित्व में आई। पिछले 11 वर्षों से संविधान में ये प्रावधान है कि निजी संस्थानों में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को आरक्षण दिया जा सकता है, लेकिन इसके लिए एक विधि निर्माण की जरूरत है। पर अफसोस है कि मोदी सरकार ने आजतक वो विधि निर्माण नहीं किया है, जिसके कारण समाज के वंचित-शोषित वर्ग को आज भी शिक्षा का लाभ नहीं मिल रहा है।”
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद को ओबीसी कहते हैं और सबका साथ सबका विकास की बात करते हैं, लेकिन 11 साल से ख़ुद इसपर कुंडली मारकर बैठे हैं। देश के 100 करोड़ से ज़्यादा दलित, पिछड़े और आदिवासियों को संविधान के अधिकार से वंचित रखा जा रहा है।”
श्री लिलोथिया ने कहा, “हमारी पार्टी ने पूरे देश में आरएसएस की मानसिकता के विरुद्ध लड़ाई लड़ी है। हमारे जननायक और संविधान रक्षक राहुल गांधी जी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के माध्यम से सामाजिक न्याय की आवाज उठाई। पार्टी ने ‘गिनती करो’ के नाम से एक कैंपेन भी चलाया। राहुल गांधी जी कहते थे कि देश में जब तक जातिगत जनगणना नहीं होगी- देश का एक्स-रे नहीं हो सकता। यह जानकारी नहीं मिल सकती कि कौन से वर्ग के कितने लोग हैं और उनकी आर्थिक स्थिति क्या है।”
उन्होंने कहा, “श्री गांधी कहते थे कि जब तक हम मजबूत तरीके से वंचित-शोषित-पीड़ित समाज की आवाज नहीं उठाएंगे तब तक उन्हें सामाजिक न्याय नहीं मिल सकता। आज उनके सामने भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार को झुकना पड़ा है।”
डॉ. भूरिया ने कहा, “जातिगत जनगणना इतिहास का सबसे बड़ा निर्णय होने वाला है। जब राहुल गांधी जी ने जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया तो भाजपा के नेताओं ने सवाल खड़े किए। ये दिखाता है कि भाजपा और श्री मोदी की मानसिकता कभी जातिगत जनगणना के साथ नहीं रही। पहले वह कहते थे कि जाति की बात करना अर्बन-नक्सल की सोच है। देश में सिर्फ चार जातियां हैं, लेकिन अब उन्होंने यू-टर्न ले लिया क्योंकि इन्हें पता चल गया है कि यह बहुत बड़ी क्रांति है। सरकार को बताना चाहिए कि जातिगत जनगणना के लिए सरकार का रोडमैप क्या है, इसकी टाइमलाइन क्या है और इसकी प्रक्रिया क्या होगी। हमें श्री मोदी पर भरोसा नहीं है क्योंकि ये हमेशा अपने वादों से पलटते दिखे हैं और इतिहास इसका गवाह है।”
उन्होंने कहा, “कांग्रेस चाहती है कि आरक्षण में 50 फीसदी की सीमा खत्म होनी चाहिए- ये सामाजिक न्याय में सबसे बड़ी रुकावट है। जिस तरह से राहुल जी और कांग्रेस ने सरकार को जातिगत जनगणना कराने के लिए मजबूर किया उसी तरह हम आरक्षण से ये 50 प्रतिशत की सीमा भी हटवाएंगे। सरकार ने जनरल कास्ट को ईडब्ल्यूएस के नाम पर 10 प्रतिशत का आरक्षण दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी मंजूरी दी। इससे ये साफ हो गया है कि 50 प्रतिशत की सीमा को भी पार किया जा सकता है। अगर भा5पा सामान्य जाति के लिए ये कर सकती है, तो वंचितों- शोषितों के लिए क्यों नहीं कर सकती।”