लखनऊ में सविता समाज ने मनाया जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म दिवस
लखनऊ। जनांदोलनों के कारण समाज के पिछली छोर पर खड़े व्यक्ति का उत्थान करने वाले राजनीतिक और सामाजिक योद्धा जननायक कर्पूरी ठाकुर की 96वीं जयंती को सविता समाज ने हर वर्ष की भांति इस साल भी बड़ी धूमधाम से मनाते हुए उनको आदर्शों को अपनाने का संकल्प दोहराया।
लखनऊ। जनांदोलनों के कारण समाज के पिछली छोर पर खड़े व्यक्ति का उत्थान करने वाले राजनीतिक और सामाजिक योद्धा जननायक कर्पूरी ठाकुर की 96वीं जयंती को सविता समाज ने हर वर्ष की भांति इस साल भी बड़ी धूमधाम से मनाते हुए उनको आदर्शों को अपनाने का संकल्प दोहराया।
सविता समाज युवा संस्थान, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष, अनूप वर्मा की अध्यक्षता में आज शुक्रवार को कर्पूरी ठाकुर पार्क, महानगर, लखनऊ में ''पूर्व मुख्यमंत्री स्व. जनननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती'' बडे ही धूमधाम के साथ मनायी गयी। कार्यक्रम का शुभारम्भ जनननायक कर्पूरी ठाकुर प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया गया। अपने अध्यक्षीय भाषण में सविता समाज के अध्यक्ष अनूप वर्मा ने समाज को एकजुट होकर कार्य करने का आह्नान करते हुएक हा कि बिना एकता के समाज का उत्थान संभव नहीं है। शक्ति संगठन में ही जब तक समाज संगठित नहीं होगा समाज को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि संगठन और समाज की शक्ति को स्व. कर्पूरी ठाकुर ने समझाने का काम किया है। उन्होंने कहा कि समाज जनननायक कर्पूरी ठाकुर के आदर्शों पर चलकर सफल हो सकता है। कार्यक्रम में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया, जिसमें कर्पूरी ठाकुर के जीवन पर लोकगीत प्रस्तुत किये गये। नन्द युवा वाहिनी के अध्यक्ष बृजेश शर्मा द्वारा 19 जनवरी 2020 को कर्पूरी ठाकुर के सम्मान में निकाली गयी रथ यात्रा जनपद हरदोई, सीतापुर, सिधौली, फतेहपुर, बाराबंकी होते हुए आज कर्पूरी ठाकुर पार्क लखनऊ में पहुंचकर सम्पन्न हुई। इस दौरान समाज के लोगों ने इस रथ यात्रा का भव्य स्वागत किया।
सविता समाज कर्पूरी ठाकुर का जन्म दिवस इसी प्रकार राजधानी में प्रति वर्ष मनाता आ रहा है। आज कर्पूरी ठाकुर को एक जाति विशेष के साथ जोड़ दिया गया है, जबकि उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक जीवन में सर्व समाज के लिए संघर्ष किया और काम करके दिखाया है।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से सभासद मौहम्मद सलीम, सभासद शैलेन्द्र सिंह ''बल्लू'', संजय सविता ''विद्यार्थी'', प्रमोद कुमार, राम विनय शर्मा, पंकज शर्मा, प्रभात कुमार, रंजन, गुलाब शर्मा, बुद्ध प्रकाश विमल, प्रहलाद नारायण नन्द, राम सुमिरन, प्रमोद नन्दवंशी, परिवन्द शर्मा, विजय वर्मा उर्फ मोनू, कौशल किशोर, हरिशंकर नन्द, विनय नन्द, महेश वर्मा, रामगोपाल नन्द, अरूण शर्मा व अन्य पदाधिकारियों के अलावा समाज के बुद्धिजीवी लोगों ने भाग लिया।
आजादी के बाद लड़ा पहला चुनाव, कभी पराजित नहीं हुए
जननायक कर्पुरी ठाकुर भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ तथा बिहार राज्य के दूसरे उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लोकप्रियता के कारण उन्हें जन-नायक कहा जाता था। कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया, जिसे अब कर्पूरीग्राम कहा जाता है, में नाई जाति में हुआ था। जननायक के पिताजी का नाम गोकुल ठाकुर तथा माता का नाम रामदुलारी देवी था। इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे तथा अपने पारंपरिक पेशा नाई का काम करते थे। भारत छोड़ो आन्दोलन के समय उन्होंने 26 महीने जेल में बिताए थे। वह 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तथा 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे।
जननायक की उपाधि उन्हें अपने जीवन काल में ही विषमता, सामंतवाद, पूंजीवाद और सामाजिक अन्याय के विरुद्ध अनवरत संघर्ष के लिए बिहारवासियों द्वारा ही दी गयी थी। सरल और सरस हृदय के राजनेता माने जाते थे। सामाजिक रूप से पिछड़ी किन्तु सेवा भाव के महान लक्ष्य को चरितार्थ करती नाई जाति में जन्म लेने वाले इस महानायक ने राजनीति को भी जन सेवा की भावना के साथ जिया। वह सदा गरीबों के अधिकार के लिए लड़ते रहे। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया। उनका जीवन लोगों के लिया आदर्श से कम नहीं। लोकनायक जयप्रकाश नारायण एवं समाजवादी चिंतक डॉ राम मनोहर लोहिया इनके राजनीतक गुरु थे रामसेवक यादव एवं मधुलिमये जैसे दिग्गज साथी थे। लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, राम विलास पासवान और सुशील कुमार मोदी के राजनीतिक गुरु थे। 1990 की बात है। बिहार में खगड़िया जिले में पड़ने वाले अलौली में लालू प्रसाद यादव का एक कार्यक्रम था। इस दौरान उन्होंने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का जिक्र किया। लालू यादव का कहना था, 'जब कर्पूरी जी आरक्षण की बात करते थे, तो लोग उन्हें मां-बहन-बेटी की गाली देते थे और, जब मैं रिजर्वेशन की बात करता हूं, तो लोग गाली देने के पहले अगल-बगल देख लेते हैं कि कहीं कोई पिछड़ा-दलित-आदिवासी सुन तो नहीं रहा है।' लालू प्रसाद यादव ने आगे इसका श्रेय उस ताकत को दिया जो कर्पूरी ठाकुर ने हाशिये पर रह रहे समुदायों को दी थी। यही वह खूबी थी जिसके चलते बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के नाम के आगे जननायक की उपाधि जुड़ी। उनका नाम उन महान समाजवादी नेताओं की पांत में आता है जिन्होंने निजी और सार्वजनिक जीवन, दोनों में आचरण के ऊंचे मानदंड स्थापित किए थे। 1952 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार विधायक बने थे। उन्हीं दिनों उनका आस्ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल में चयन हुआ था। उनके पास कोट नहीं था। तो एक दोस्त से कोट मांगा गया। वह भी फटा हुआ था। खैर, कर्पूरी ठाकुर वही कोट पहनकर चले गए। वहां यूगोस्लाविया के मुखिया मार्शल टीटो ने देखा कि कर्पूरी जी का कोट फटा हुआ है, तो उन्हें नया कोट गिफ्ट किया गया। आज जब राजनेता अपने महंगे कपड़ों और दिन में कई बार ड्रेस बदलने को लेकर चर्चा में आते रहते हों, ऐसे किस्से अविश्वसनीय ही लग सकते हैं। 1974 में कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे का मेडिकल की पढ़ाई के लिए चयन हुआ। पर वे बीमार पड़ गए। दिल्ली के राममनोहर लोहिया हास्पिटल में भर्ती थे। हार्ट की सर्जरी होनी थी। इंदिरा गांधी को जैसे ही पता चला, एक राज्यसभा सांसद को वहां भेजा और उन्हें एम्स में भर्ती कराया। खुद भी दो बार मिलने गईं। इलाज के लिए अमेरिका भेजने की पेशकश की। सरकारी खर्च पर। कर्पूरी ठाकुर को पता चला तो उन्होंने कहा कि वे मर जाएंगे पर बेटे का इलाज सरकारी खर्च पर नहीं कराएंगे। एक बार प्रधानमंत्री चरण सिंह उनके घर गए तो दरवाजा इतना छोटा था कि चैधरी जी को सिर में चोट लग गई। पश्चिमी उत्तर प्रदेश वाली खांटी शैली में चरण सिंह ने कहा, 'कर्पूरी, इसको जरा ऊंचा करवाओ।' जवाब आया, 'जब तक बिहार के गरीबों का घर नहीं बन जाता, मेरा घर बन जाने से क्या होगा?'
कर्पूरी ठाकुर का जीवन ताउम्र संघर्ष रहा। जब 1977 में वे मुख्यमंत्री बने तो एस-एसटी के अलावा ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला बिहार देश का पहला सूबा बना। 11 नवंबर 1978 को उन्होंने महिलाओं के लिए तीन (इसमें सभी जातियों की महिलाएं शामिल थीं), गरीब सवर्णों के लिए तीन और पिछडों के लिए 20 फीसदी यानी कुल 26 फीसदी आरक्षण की घोषणा की। इसके लिए ऊंचे तबकों ने एक बड़े वर्ग ने भले ही कर्पूरी ठाकुर को कोसा हो, लेकिन वंचितों ने उन्हें सर माथे बिठाया। इस हद तक कि 1984 के एक अपवाद को छोड़ दें तो वे कभी चुनाव नहीं हारे। 17 फरवरी 1988 को अचानक तबीयत बिगड़ने से उनका देहांत हो गया। आज उन्हें एक जातिविशेष के दायरे में सीमित कर दिया जाता है जबकि उनके दायरे में वह पूरा समाज आता था जिसकी तीमारदारी को उन्होंने अपना मिशन बना लिया था।