उडा रंग गुलाल-बही भजनों की गंगा-उमंग से झूमे साधक

मुजफ्फरनगर में रंग और उमंग का त्यौहार होली रंग गुलाल की धूम और भजनों के भक्ति सागर में गहरे तक उतरकर धूमधाम से मनाया

Update: 2021-03-28 10:21 GMT

मुजफ्फरनगर। भारतीय योग संस्थान के निःशुल्क योग साधना केंद्र ग्रीन लैंड माडर्न जू0हाई स्कूल मुजफ्फरनगर में रंग और उमंग का त्यौहार होली रंग गुलाल की धूम और भजनों के भक्ति सागर में गहरे तक उतरकर धूमधाम से मनाया गया।

सर्वप्रथम दैनिक योग साधना के उपरांत सभी साधक एवं साधिकाओं ने एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएँ दी। तत्पश्चात संस्थान के जिला कार्यकारिणी सदस्य यज्ञदत्त आर्य ने ईश्वर भक्ति का भजन प्रस्तुत किया। सोनिया नारंग ने भी बहुत मनमोहक भजन गाया। बेबी सैनी, आचार्य रामकिशन सुमन आदि साधक एवं साधिकाओं ने होली के इतिहास और महत्व को समझाया।

इस अवसर पर संस्थान के प्रान्तीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेन्द्र पाल सिंह आर्य ने कहा कि त्योहार हमारे जीवन में उत्साह और उमंग पैदा करते हैं। होली पर्व को मनाए जाने की अनेक किवदन्तियाँ है। जैसे कि ईश्वर भक्त प्रहलाद को जलाने के लिए होलिका अग्नि में बैठ गयी थी। परन्तु होलिका अग्नि में जल गयी थी और ईश्वर भक्त प्रहलाद बच गया था। परन्तु होली पर्व मनाने का एक वैदिक मत है कि इस मौसम में किसान की फसलें जैसे गेहूँ,जौं, चना व मटर आदि पककर तैयार हो जाती है और किसान उन फसलों को सर्वप्रथम ईश्वर को समर्पित करके उसके बाद ही स्वयं उसको अपने भोजन के रूप में प्रयोग करता है। तिनको की अग्नि में भूने हुए अधपके शमीधान्य अर्थात फली वाले अन्न को होलक(होला) कहते हैं। होला स्वल्पवात है और मेद (चर्बी), कफ और श्रम (थकान) के दोषों का शमन करता है। तृणाग्नि में भूने आषाढी के प्रत्येक अन्न के लिए होलक शब्द प्रयुक्त होता था। परन्तु बाद में वह शमीधान्यो के होलों के लिए ही रूढ हो गया था। हिन्दी का प्रचलित होला शब्द इसी का अपभ्रंश है। आषाढी नवान्नेष्टि में नवागत अधपके यवो के होम के कारण उस को होलकोत्सव कहते थे। त्योहार मनाने का हमारे पूर्वजों का एक और उद्देश्य था कि समाज में रहते-रहते कई बार आपसी मतभेद हो जाते हैं और त्योहार के अवसर पर उन मतभेदों को भूलाकर परिवार व समाज में आपसी प्रेम व भाईचारा बढाने कार्य हमारे पर्व करते है। परन्तु आज के परिवेश में इसका उल्टा हो रहा है। त्योहारों के अवसर पर कुरीतियों व पाखण्ड को बढ़ाकर समाज में प्रेम के स्थान पर ईर्ष्या और द्वेष फैलाने का काम किया जा रहा है जो समाज व राष्ट्र के लिए बहुत ही खतरनाक है। आज त्योहार का बहाना बनाकर नवयुवकों को शराब, भांग आदि नशीली चीजों का सेवन कराकर उनके जीवन को बर्बाद करने का कार्य समाज में हो रहा है। अतः मेरा सभी नगरवासियो व देशवासियों से एक अपील है कि त्योहार को त्योहार के ही रूप में मनाएँ। इस अवसर पर काफी संख्या में साधक एवं साधिकाओं एवं कार्यकर्ताओ ने भाग लिया। अंत में सभी साधक एवं साधिकाओं को गुंजिया व मिठाईयां प्रसाद के रूप में वितरित की गई।











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