NDA को सत्ता से बेदखल करने के लिए RJD की अगुवाई वाला महागठबंधन पूरी तरह एकजुट : CPI

भाकपा के रामनरेश पांडे ने कहा महागठबंधन के घटक दलों के बीच सहमति बन गयी है कि एक भी सीट पर उनके बीच कोई दोस्ताना संघर्ष नहीं होगा।

Update: 2020-09-23 10:56 GMT

पटना भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने आज दावा किया कि बिहार में इस बार के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को सत्ता से बेदखल करने के लिए राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की अगुवाई वाला महागठबंधन पूरी तरह एकजुट है और उसके घटक दलों के बीच किसी सीट पर दोस्ताना संघर्ष नहीं होगा।

भाकपा के राज्य सचिव रामनरेश पांडे ने बुधवार को 'यूनीवार्ता' से बातचीत में कहा कि महागठबंधन के घटक दलों के बीच सहमति बन गयी है कि बिहार में एक भी सीट पर उनके बीच कोई दोस्ताना संघर्ष नहीं होगा। यह चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार की हार सुनिश्चित करने के लिए बेहद जरुरी था। उन्होंने कहा कि सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत प्रगति पर है और जल्द ही सभी 243 सीटों पर अंतिम फैसला हो जाने के बाद घटक दलों के नेता संयुक्त रूप से इसकी औपचारिक घोषणा करेंगे।

श्री पांडे ने कहा कि महागठबंधन में राजद और कांग्रेस बड़े घटक दल हैं और उनसे अपेक्षा है कि सीटों के बंटवारे के समय वह अपने अन्य सहयोगी पार्टियों के दावों पर बड़े दिल के साथ विचार करेंगे। उनसे जब यह पूछा गया कि उनकी पार्टी किन सीटों पर अपना दावा कर रही है तो इसपर उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया और कहा कि राजद और कांग्रेस जैसे सहयोगी निश्चति रूप से सीटों के बंटवारे के समय इसका ख्याल रखेंगे कि भाकपा की बिहार के किसी क्षेत्र में मजबूत पैठ है। उन्होंने मीडिया में आ रही इन खबरों को निराधार बताया कि राजद उनकी पार्टी के दावों पर विचार करने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने आश्वासन दिया है कि उनके सभी दावों पर पूरी इमानदारी और सकारात्मकता के साथ विचार किया जायेगा।

भाकपा के राज्य सचिव ने कहा कि इस चुनाव में कौन कितनी सीट पर लड़ता है यह महत्वपूर्ण नहीं है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को सत्ता से बेदखल करना महागठबंधन के घटक दलों का साझा लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1990 में भाकपा ने राज्य में 23 सीटों पर जीत हासिल की थी और उस समय उसने श्री लालू प्रसाद यादव की सरकार को पांच साल तक बाहर से समर्थन दिया था। इसके बाद वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 52 सीटों पर अपना उम्मीदवार खड़ा किया और उसे 26 सीट पर जीत मिली। वह मानते हैं कि वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में अब इतनी सीटों पर पार्टी का चुनाव लड़ना संभव नहीं है लेकिन महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे में भाकपा उचित हिस्सेदारी की उम्मीद निश्चित रूप से करती है।

श्री पांडे ने कहा कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद श्री जीतनराम मांझी का हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) भले ही महागठबंधन से अलग हो गया हो लेकिन अन्य घटक राजद, कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा), विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) पूरी मजबूती से एकजुट है। उन्होंने कहा कि इसमें भाकपा और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के शामिल होने से महागठबंधन और मजबूत हो गया है।

भाकपा के राज्य सचिव ने कहा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार 2015 के चुनाव में जनता से किए गए वादे को पूरा करने में पूरी तरह से विफल रही है। नीतीश सरकार का बहुप्रचारित सात निश्चय में से एक भी पूरा नहीं हो पाया है। सात निश्चय में से एक 'हर घर नल का जल' पहुंचाने का वादा बड़ी राशि खर्च करने के बावजूद लोगों को राहत देने में विफल रहा है। उन्होंने कहा कि नीतीश सरकार युवाओं को रोजगार देने में भी पूरी तरह विफल साबित हुई है। इसी तरह शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा भी बदहाल है ।

श्री पांडे ने कृषि सुधार विधेयक को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते हुए इससे किसानों की पीड़ा और बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और कृषि मंडियों को समाप्त नहीं करने के संबंध में प्रधानमंत्री के आश्वासन पर किसी को भरोसा नहीं है। सच्चाई यह है कि सरकार का इरादा किसान और खेत को कंपनियों के चंगुल में फसाने का है।

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