भारी विरोध का सामना,विधानसभा चुनाव से पहले विधायकों से हिसाब मांग रही जनता

चुनाव से पहले माननीयों की फजीहत विकास के नाम पर हो रही है। दो टूक कहा जा रहा कि आपने विकास का वादा किया था, मगर वह पूरा नहीं हुआ।

Update: 2020-09-14 13:38 GMT

पटना बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अधिसंख्य विधायकों को अपने क्षेत्र में जनता के भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा कि विधायक सत्ताधारी हैं या विरोधी दल के। आम लोगों का रुख भी पहले की तुलना में कहीं अधिक आक्रामक है। वे मुर्दाबाद या वापस जाओ जैसे परंपरागत नारे नहीं लगा रहे हैं। जन प्रतिनिधियों पर जुबानी आक्रमण कर रहे हैं। कई जगह तो शारीरिक हमले का भाव भी प्रकट हो रहा है। अपशब्द भी कहे जा रहे।

चुनाव से पहले माननीयों की फजीहत विकास के नाम पर हो रही है। दो टूक कहा जा रहा कि आपने विकास का वादा किया था, मगर वह पूरा नहीं हुआ। तस्वीर का दूसरा पहलू केंद्र और राज्य सरकार दिखा रही हैं। इसे देख कर यही धारणा बन रही है कि बीते कुछ वर्षों में विकास के अलावा कुछ हुआ ही नहीं। तब जनता इतनी नाराज क्यों है? पांच साल पहले जिन्हें सिर-आंखों पर बिठाकर विधानसभा में भेजा था, वे क्यों खदेड़े जा रहे हैं? दरअसल, विधायकों के साथ क्षेत्र में जो कुछ हो रहा है, वह अप्रत्याशित नहीं है। असल में विकास की इतनी अधिक चर्चा हो गई है कि हर गली-मोहल्ले वालों को लग रहा है कि बगल वाले का विकास हो गया, मेरा नहीं हुआ। विकास को लेकर लोग एक तरह से मनोवैज्ञानिक दबाव में जी रहे हैं।

कुछ ऐसा ही हाल रोजगार का है। सरकारी स्तर पर रोजगार सृजन के जितने दावे किए जा रहे हैं, उससे भी आम लोगों के मन में शक पैदा हो रहा है कि रोजगार देने में उनके साथ भेदभाव हो रहा है। सिर्फ उन्हें ही रोजगार से वंचित किया गया है। रिश्वतखोरी के खिलाफ अभियान चल रहा है। सरकार रिश्वतखोरों को पकड़ रही है। प्रचार का स्तर ऐसा है कि लोग दफ्तरों में बिना रिश्वत की रकम जेब में रखे काम कराने चले जाते हैं। रिश्वत की मांग होती है तो लगता है कि सिर्फ उन्हीं से नाजायज रकम मांगी जा रही है। बाकी लोगों का काम तो बिना रिश्वत के हो रहा है। यही हाल थाना-पुलिस का है। आम लोग हर जगह विरोधाभास झेल रहे हैं। वे अपनी नाराजगी किसी अधिकारी के सामने जाहिर नहीं कर सकते हैं। ऐसा करने पर मारपीट और मुकदमा का डर लगता है। विधायक उनके सामने आसान शिकार की तरह हाजिर रहते हैं। वे उनपर ही बेरोजगारी और रिश्वतखोरी सहित बाकी चीजों के लिए गुस्सा निकाल लेते हैं, लेकिन समग्रता में देखें तो यह गुस्सा उनके लिए है, जो सत्ता में हैं। विधायक उसी सत्ता के प्रतिनिधि होते हैं।

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