सियासत में पिता की विरासत नहीं संभाल पाए पुत्र- दो बार हार गए इलेक्शन

टिकट मांग रहे नेता को दो बार पहले ही पार्टी की ओर से टिकट मिल चुका है और दोनों बार हार का सामना करना पड़ा है

Update: 2021-08-28 16:06 GMT

लखनऊ। आमतौर पर जनता अपना ऐसा नेता चाहती है, जो उनके लिये 24 घंटे समस्या को सुनने को तैयार रहे और उसका समाधान करा सके। मुजफ्फरनगर विधानसभा सीट पर एक नेता सपा से टिकट मांग रहे हैं लेकिन टिकट मांग रहे नेता को दो बार पहले ही पार्टी की ओर से टिकट मिल चुका है और दोनों बार हार का सामना करना पड़ा है। यह हार का सामना उनको इसलिये करना पड़ा है क्योंकि न तो उन्हें अपनी कार्यकारिणी के सदस्यों के पदाधिकारियों के नाम ही याद हैैं और न ही अपनी विधानसभा क्षेत्र की जनता से उनके सम्पर्क। माना जा सकता है कि जो नेता अपने क्षेत्र की जनता से सम्पर्क करते हुए उनके काम कराने में असफल रहता है तो उससे जनता नजदीकी रूप से नहीं जुड़ पाती है इसलिये नेता को क्षेत्र के लोगों के नाम भी याद नहीं रहते हैं।

बताया जा रहा है कि इस बार भी वह नेता उसी विधानसभा सीट से टिकट मांग रहे हैं, जहां से पहले ही दो बार नाकामयाबी हाथ लग चुकी है। उनके टिकट मांगने से जनता और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं में ही उनके प्रति काफी रोष व्याप्त है। लोगों का मानना है कि यदि इन्हीं कारणों से इन नेता को टिकट मिलता है जितने वोट उन्होंने पहले बटोरे थे। इस बार वोटों के अभाव में पहले ही दौर में बाहर दिखाई देंगे। दूसरी तरफ समर्थकों के माध्यम से अफवाह उड़ाई जा रही है कि इस नेता का इस बार भी विधानसभा सीट से टिकट हो चुका है, लेकिन जब उनकी पार्टी के जिलाध्यक्ष से बात की गई तो उन्होंने कहा है कि अभी किसी भी विधानसभा सीट से किसी भी नेता का टिकट फाइनल नहीं हुआ है। लोगों में यह चर्चा चल निकली है कि जैसी स्थिति फिलहाल नेता जी की है। क्या उसमें सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस बार उन्हें टिकट देने का जोखिम उठायेंगे। वैसे भी बड़े भाई को राजनीति में फेल होते देख छोटे भाई ने अपने पिता की शानदार सियासी पारी को आगे बढ़ाने के लिए मैदान में आ गए है।

यदि उत्तर प्रदेश में सीटों की बात करें तो सूबे की 403 विधानसभा सीटों को जीतने का घमासान शुरू हो चुका है। उत्तर प्रदेश में अपना वजूद रखने वाली तकरीबन सभी पार्टियों ने विभिन्न ्कार्यक्रमों के माध्यम से चुनावी बिगुल फूंक दिया है। विधानसभा के चुनावी पथ पर नेताओं की गाड़ियां रफ्तार के साथ दौड़ रही हैं। वैसे तो चुनाव से पहले किसी नेता को जनता याद नहीं आती है क्योंकि कुछ नेता का सिर्फ वोट लेना मकसद होता है। फिर भी कार्यकर्ताओं के सहारे मतदाता तक पहुंचने की कोशिशें चालू कर दी गई हैं। यदि जनता के भीतर की बात करें तो उनकी सोच ऐसी है कि वोट हासिल करने के पश्चात नेता लोग जनता को ऐसे भूल जाते हैं जैसे कि जनता को याद रखने का मैमोरीकार्ड उनके दिमाग से ही निकल गया हो। जहां तक नेताओं की बात है तो वह अपनी खोई हुई चिप को चुनाव नजदीक आते ही खाई में से भी ढूंढ लेता है और जनता को याद करने में लग जाता है। आमतौर पर क्षेत्र के नेताओं के फोनों को नजरअंदाज करने वाले नेता चुनाव के नजदीक आते ही जनता को फोन करते हैं कि आओ हमसे नाराज हो क्या। उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फरनगर की एक विधानसभा सीट ऐसी है, जहां से सपा के कद्दावर नेता रहे स्वर्गीय मंत्री के पुत्र पार्टी से टिकट मांग रहे हैं, लेकिन उन्हें पहले ही दो बार विधानसभा सीट पर टिकट मिल चुका है । जनता में सक्रियता न होने की वजह से सहानुभूति वोटों के बावजूद दोनों बार हार का सामना करना पड़ा था और अन्य दल के विधानसभा प्रत्याशी ने बाजी मार ली थी। विधानसभा चुनाव में दो बार सपा नेता सफल नहीं हो पाये हैं।

सपा नेता के पिता उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं, जिनकी छवि अपनी विधानसभा सीट से लेकर लखनऊ तक काफी अच्छी बनी हुई थी क्योंकि उनका फुल टाइम जनता को समर्पित रहता था। यही वजह थी कि वह विधायक बनने के पश्चात उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने थे। स्वर्गीय पूर्व मंत्री का पब्लिक से ऐसा कुशल व्यवहार था कि वह सैंकड़ों लोगों के बीच में भी अगर किसी व्यक्ति को उन्हें आवाज देनी होती थी वह उसका नाम लेकर उसे पुकारते थे। पब्लिक के दिल में उनके लिये काफी प्यार था। उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री जनता के साथ हर समय सुख-दुख में खड़े रहते थे। लेकिन उनके पुत्र जनता से प्यार नहीं जुटा पाये। यही कारण रहा कि दो बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। हार का सामना इसलिये करना पड़ा कि वह जनता के साथ ज्यादा समय नहीं दे पाये। वह तो केवल चुनाव नजदीक आते ही कार्यालय पर टाइम देना शुरू कर दें और कई बहानों से जनता के बीच जाकर वार्ता करनी प्रारंभ कर देते हैं। वह उन जनता से वार्ता करते हैं जिनका वह सही से नाम नहीं जानते हैं। ऐसे प्रत्याशी को नाम इसलिये पता नहीं होता है क्योंकि वह कभी अपनी क्षेत्र की जनता से चुनाव से पहले मिलते ही नहीं हैं।

आगामी वर्ष 2022 विधानसभा चुनाव भी नजदीक है, लेकिन उन्हें अपने कार्यकारिणी के सदस्यों का नाम ही याद नही हैं तो जनता के लोगों नाम की तो दूर की बात है। चुनाव से पहले पार्टी कार्यालय पर वह टाइम नहीं दे पा रहे थे और न ही जनता से क्षेत्रों में जाकर मुलाकात कर रहे थे। लेकिन चुनावी ललक ने उन्हें फिल्ड में भी उतार दिया और पार्टी कार्यालय पर वक्त देना शुरू कर दिया। दो बार वह विधानसभा सीट पर चुनाव लड़े, जिसमें उन्हें काफी मुस्लिम वोट मिली लेकिन अपनी बिरादरी की वोट वह जुटा नहीं पाये थे। बताया जा रहा है कि इस बार काफी मात्रा में मुस्लिमों के साथ और अन्य वर्गों में भी उनके प्रति नाराजगी है क्योंकि उनके पास जनता के मिलने के लिये समय नहीं होता है। वह केवल अपने व्यवसाय से रिलेटिड लोगों से ही ज्यादातार मुलाकात करते हैं। जनता इस बार ऐसा प्रत्याशी मैदान में चाहती है जो उनके लिये 24 घंटे उनकी समस्या का समाधान कराने के लिये खड़ा रहे। आमतौर पर देखा जाता है कि चुनाव छोटा हो या बड़ा, सभी यह देखते हैं कि सम्बंधित प्रत्याशी पर अपने बिरादरी की वोट हैं या नहीं। चर्चा है कि टिकट मांग रहे नेता जब चुनाव लड़े थे, दोनों बार उनकी बिरादरी ने उन्हें सपोर्ट नहीं किया है। अक्सर देखा जाता है कि वोटर उसको ही चुनता है जो उसकी समस्या को सुनकर उसकी समस्या का समाधान करा सके। यही नहीं बल्कि यह भी बताया जा रहा है कि उनकी पार्टी की कार्यकारिणी के लोग ही उनसे खुश नहीं हैं।

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