जन्मदिन विशेषः समाज के प्रत्येक तबके के लिए फिक्रमंद रहते है असद फारुकी

असद 2013 में हिन्दू-मुस्लिम के नामपर जिले के माथे पर लगे बदनुमा दाग को धोने के लिए समाजसेवा में आये तो बस इसी में रम गये

Update: 2020-07-01 04:49 GMT

 मुज़फ्फरनगर । असद फारूक़ी समाज सेवा का ऐसा जज्बा, जो अपने जन्मदिन पर रक्तदान करने में खुशी महसूस करते हैं। कुलीन परिवार में जन्में असद फारूक़ी 2013 में हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर जनपद के माथे पर लगे बदनुमा दाग को धोने के लिए समाजसेवा में आये तो बस इसी में रम गये। अपनी गलती को शीघ्र स्वीकार करके सामने वाले से साॅरी फील करना असद फारूक़ी के व्यक्तित्व का सबसे सबल पक्ष है, जो उन्हें बरबस ही दूसरों के करीब ले आता है। दूसरों की मदद करने की भावना यूं तो उनके खून में रची-बसी है, लेकिन इस मामले में उनकी पत्नी भी आदर्श साबित हुई हैं, क्योंकि चाहेे परिवार का मामला हो या परिवार से बाहर का, कभी किसी की सहायता करने से नहीं रोका, बल्कि सदा दूसरों की सहायता करने के लिए प्रोत्साहित ही किया है। असद फारूक़ी बताते हैं कि यदि उनकी पत्नी का प्रोत्साहन नहीं होता तो शायद वे समाजसेवा के क्षेत्र में कुछ नहीं कर पाते। वे अपने माता-पिता को अपना आदर्श मानते हैं वे बताते हैं कि उनके अन्दर सम्माहित सभी अच्छे गुण उनके माता-पिता की अच्छी शिक्षा के कारण ही आये हैं।




ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय सम्भाल रहे असद फारूक़ी का मानना है कि उनके जीवन में अनुशासन व व्यवहार में शालीनता कलेक्ट्रेट में प्रशासनिक अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए उनके पिता की शिक्षा की वजह से है। उन्होंने बताया कि उनके बेटे में सच बोलने का गुण कूट-कूटकर भरा है। उन्होंने बताया कि जब उनके बेटे से स्कूल में उनसे एक अच्छी और एक खराब आदत के बारे में पूछा गया तो उनके बेटे ने बताया कि मेरी खराब आदत रोज न नहाना और अच्छी आदत सच बोलना है। स्वामी सच्चिदानन्द भारती उर्फ एयरफोर्स बाबा के जीवन से उन्हें समाजसेवी की काफी प्रेरणा मिली मुजफ्फरनगर में गंगा-यमुना के दोआब की उर्वर धरती पर 1968 में इकबाल अहमद फारूक़ी की संतान के रूप में आज ही के दिन जन्में असद फारूक़ी पांच भाईयों व एक बहन में तीसरे नम्बर की संतान हैं। यूं तो वे अपनी पत्नी को ही अपना आदर्श मानते हैं, लेकिन स्वामी सच्चिदानन्द भारती उर्फ एयरफोर्स बाबा के जीवन से उन्हें समाजसेवी की काफी प्रेरणा मिली।


अपने जन्मदिन पर खोजी न्यूज को असद फारूक़ी ने बताया कि उन्होंने बीएससी तक शिक्षा प्राप्त की है, उसके बाद एलएलबी की पढ़ाई उन्हें निजी कारणों से बीच में छोड़नी पडी। वे बताते हैं कि वर्ष 2013 से पहले वे सोशल मीडिया के माध्यम से ही समाज को सकारात्मक संदेश दिया करते थे, लेकिन 2013 में जनपद में जब साम्प्रदायिक दंगों का जहर फैला तो समाजसेवी समर्थ प्रकाश के प्रोत्साहन पर वे प्रयत्न संस्था से जुड़े और फिर शान्ति मिशन संस्था का गठन किया। उन्होंने बताया कि 2013 के साम्प्रदायिक दंगों से घबराकर स्थानीय मुस्लिम बाहुल्य अम्बाविहार से हिन्दू परिवार पलायन करने लगे थे, लेकिन उन्होंने अपनी संस्था के माध्यम से वहां सुरक्षा का ऐसा माहौल पैदा किया कि वहां से हिन्दुओं का पलायन रूक गया और अब वहां लोग पूरे सौहार्द के साथ रह रहे हैं।



महिला सशक्तिकरण पर काम करने के लिए प्रयत्न संस्था से जुड़े असद फारूक़ी ने बताया कि समाजसेवा की यात्रा में उनकी मुलाकात स्वामी सच्चिदानन्द भारती उर्फ एयरफोर्स बाबा से हुई और वे उनके व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित हुए। इस दौरान उन्हें समर्थ प्रकाश, गोहर सिद्दीकी, जल पुरूष राजेन्द्र सिंह व देवराज पंवार आदि का भरपूर समर्थन व सहयोग प्राप्त हुआ। उन्होंने महिला सशक्तिकरण पर काम करने के लिए प्रयत्न संस्था के अध्यक्ष समर्थ प्रकाश के साथ मिलकर 70 महिलाओं का संगठन बनाया है, जिसमें बीना शर्मा, डा.रेनू एस गोयल, नूतन जैन, डा. तारिणी तनेजा, संतोष शर्मा, याशिका चौहान , गुंजन अरोरा व अनुराधा वर्मा आदि विषय विशेषज्ञ महिलाओं को शामिल किया गया है। उन्होंने बताया कि 2013 के बाद ही स्कूली छात्राओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए महावीर चौक  पर महिला पुलिस चौकी को स्थापित कराया था। 



एक प्रश्न के जवाब में असद फारूक़ी ने बताया कि वे वर्ष में कम से कम दो बार रक्तदान अवश्य ही करते हैं। एक वाकिये को याद करते हुए उन्होने बताया कि एक बार सहारनपुर के पूर्व मण्डलायुक्त आरपी मिश्रा के बेटे को एक गम्भीर बीमारी के चलते खून की बेहद जरूरत थी, तो उन्होंने अपने दर्जन भर सहयोगियों के साथ मिलकर रक्त दिया था। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी संस्था और व्यक्तिगत रूप से वंचित मेधावियों को शिक्षा व रोजगार मुहैया कराने की मुहिम चला रखी है। इसी के तहत उन्होंने श्रीराम ग्रुप ऑफ़ कॉलेज के चेयरमैन डा.एसएसी कुलश्रेष्ठ से प्रतिवर्ष एक बच्चे को निशुल्क शिक्षा का आश्वासन प्राप्त कर रखा है। इसके अतिरिक्त भी एसडी कालेज ऑफ़ इंजीनियरिंग व अन्य संस्थाओं के माध्यम से भी जरूरतमंदों का सहयोग करते रहते हैं। गत वर्ष  बेटी आफिया इकबाल ने नमामि गंगे की ऑनलाइन क्विज में पूरे भारत में दूसरा स्थान प्राप्त किया था ।


 एक याद को ताजा करते हुए असद फारूक़ी बताते हैं कि 2013 के दंगों के बाद मंसूरपुर गांव में पहले हिन्दू और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग हाट लगती थी, लेकिन उन्होंने सहारनपुर के तत्कालीन मण्डलायुक्त भुवनेश कुमार, जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हरि नारायण सिंह आदि के सहयोग से मंसूरपुर दरबार में में हिन्दू-मुस्लिम समाज के लोगों को एक साथ लाकर साम्प्रदायिक दूरी को खत्म करने का प्रयास किया था तथा हिन्दू और मुसलमानो के लिए अलग-अलग लगने वाली हाट को एक साथ ही लगवाने की परम्परा को शुरू कराया था। एक अन्य वाकिये का जिक्र करते हुए असद फारूक़ी बताते हैं कि पहले शहर की सड़के हकीमों व तांत्रिकों के अश्लील व बेहूदा विज्ञापनों से रंगी रहती थी, जिससे उनका मन बेहद व्यथित होता था। इसके लिए उन्होंने तत्कालीन जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह से मिलकर स्कूली बच्चों से अलग-अलग थीम पर संदेश वाहक पेंटिंग कराकर, जहां क्षेत्रवासियों को अश्लील विज्ञापनों को जबरन देखने से बचाया था, बच्चों की प्रतिभा को निखारने का काम किया था।



असद फारूक़ी ने बताया कि उन्होंने तत्कालीन एसएसपी के अनुरोध पर पुलिस माॅर्डन पब्लिक स्कूल के आधुनिकीकरण सहित सिखेडा थाने के सौंदर्यकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने बताया कि सिखेडा और निराना गांव के प्राथमिक विद्यालयों का आधुनिककरण व सौंदर्यकरण करके वहां बच्चों को बुनियादी सुविधाए जुटाने का कार्य भी किया था। वे बताते हैं कि उनकी संस्था व स्वयं अक्सर वृक्षारोपण करते व कराते रहते हैं। देशप्रेम उनकी धड़कनों में बसा है असद फारूक़ी बताते हैं कि देशप्रेम उनकी धड़कनों में बसा है और भविष्य में साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ाना, हिन्दू-मुस्लिमों के बीच को खाई को कम करने के लिए हर सम्भव प्रयत्न करना उनके जीवन का लक्ष्य है और इस कार्य को वे हमेशा करते रहेंगे। अमिताभ बच्चन की फिल्मों के मुरीद असद फारूक़ी के पसन्दीदा फिल्मकार अमोल पालेकर है।

Tags:    

Similar News