कोरोना की बीमारी पर सियासत भारी
राज्य में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। इसके चलते कोरोना पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।;
लखनऊ। बिहार में कोरोना का कहर बढता ही जा रहा है। लॉकडाउन के बाद अनलॉक में कुछ लापरवाही मजबूरी में हुई जैसे दवाई या राशन लेने बाजार में निकलना पड़ा लेकिन कितने ही लोग अनावश्यक रूप से बाहर निकले और भीड़ बढाई। इसी का नतीजा है कि उन राज्यों में भी संक्रमितों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हो गयी जहां पहले स्थिति लगभग नियंत्रण में थी। बिहार में भी कोरोना ने तेजी से पांव पसारे हैं और कभी भी लाकडाउन घोषित हो सकता है। राज्य में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। इसके चलते कोरोना पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सरकार अपने सुशासन की ज्यादा बात करती है,जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी राजद भी अपनी सरकार की उपलब्धियों को सामने रख रही है। दरअसल दोनों सरकारों के कार्यकाल में बिहार ने तरक्की की है लेकिन एक दूसरे पर हमला करने का सामान भी मौजूद है। हालांकि सबसे जरूरी इस समय कोरोना को नियंत्रण में रखना है।
बिहार में अगले कुछ महीनों में संभावित विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की जोर-आजमाइश शुरू हो चुकी है। कोरोना संक्रमण के दौर के बीच होने वाले चुनाव को लेकर पार्टियों ने एक-दूसरे पर हमला करना शुरू भी कर दिया है। इस बार का चुनाव कई मायनों में खास है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले लगभग 15 साल से प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले लालू-राबड़ी का शासनकाल भी 15 साल का ही रहा है। लिहाजा बिहार विधानसभा चुनाव में 15 साल के शासनकाल का मुद्दा इस बार खास रह सकता है। यही वजह है कि सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) ने अपने चुनाव प्रचार की थीम '15 साल के सुशासन' बनाम '15 साल का गुंडाराज' रखी है। इसके जवाब में राष्ट्रीय जनता दल भी वर्तमान मुख्यमंत्री के कार्यकाल को कमतर साबित करने की कोशिश कर रहा है। रांची जेल से लालू यादव ने खुद ही कमान संभाल ली है। कांग्रेस की कमान बिहार के लिए सोनिया गांधी संभाल रही हैं । लालू और नीतीश, दोनों के कार्यकाल में बिहार ने बड़े घोटाले भी देखे। लालू राज में जहां लोगों ने चारा घोटाला देखा, वहीं नीतीश के शासनकाल में सृजन घोटाला भी चर्चा में रहा है। लगभग 950 करोड़ रुपए के चारा घोटाले में जहां जिलों में स्थित राजकीय कोषागार से फर्जी बिलों के आधार पर बड़ी धनराशि की हेराफेरी की गई, वहीं सृजन घोटाले में आम लोगों के हक का पैसा निजी बैंक खातों में भेजा गया। सृजन घोटाले में दर्ज की गई एफआईआर के मुताबिक एक एनजीओ के जरिए 2000 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि की गड़बड़ी की गई। दोनों ही मामलों की जांच सीबीआई कर रही है।
लालू यादव और नीतीश कुमार के 15-15 वर्षों के शासनकाल की तुलना करें तो एक बात समान नजर आती है कि पहले 5 साल में दोनों नेताओं ने ही समाज और राज्य के विकास की योजनाओं पर फोकस किया, लेकिन बाद के वर्षों में 'विकास' पर राजनीति हावी होती चली गई। लालू यादव ने जहां शुरुआती वर्षों में सामाजिक चेतना, गरीब कल्याण जैसे मुद्दों पर फोकस किया, वहीं नीतीश कुमार ने भी राजद के शासनकाल की कड़वी याद बताते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे बुनियादी कामों से अपनी छवि बनाई। कभी राजनीतिक रूप से एक-दूसरे के साथ रहे दोनों नेता आज धुर-विरोधी हैं। बिहार चुनाव के मद्देनजर इन दोनों नेताओं के कार्यकाल पर एक नजर डालें तो 1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू यादव ने कई योजनाएं लागू कीं, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर और समाज के पीड़ित वर्गों को लाभ हुआ। उदाहरण के लिए अविभाजित बिहार के 600 ब्लॉक में 2 साल के भीतर इंदिरा आवास योजना के तहत 60 हजार पक्के मकान बनवाए गए थे। ग्रामीण विकास विभाग के आंकड़ों की मानें तो साल 1996 तक बिहार के गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए लालू यादव की सरकार ने 3 लाख से ज्यादा मकान बनवाए थे। लालू यादव ने न सिर्फ गांवों, बल्कि शहरों में रहने वाले गृहविहीन लोगों के लिए भी आवास योजनाओं को अंजाम तक पहुंचाने का काम किया। राजधानी पटना के विभिन्न इलाकों- राजा बाजार, शेखपुरा, लोहानीपुर, राजेंद्रनगर और कंकड़बाग में भी बहुमंजिला इमारतें तत्कालीन सरकार ने ही बनवाई, जिनसे गरीब या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को छत मिलने का सपना साकार हुआ। इन भवनों के निर्माण में अड़ंगा डालने वाले 'प्रभुवर्ग' की आपत्तियों से लालू तनिक भी नहीं डिगे, बल्कि आगे बढ़कर गरीबों को उनका हक दिलाया। इसके अलावा, लालू-राज में शिक्षा व्यवस्था के धराशायी हो जाने की बात अक्सर की जाती है लेकिन यह लालू ही थे जिन्होंने समस्तीपुर के पूसा से अपने तरह की अनोखी चरवाहा विद्यालय की योजना लागू की थी। दूरदराज के गांवों में पढ़ने वाले बच्चों को उनके घर के पास स्कूल मुहैया कराने की इस योजना के तहत पूरे राज्य में 150 चरवाहा विद्यालय खोले गए। हालांकि बाद के दिनों में इस योजना को गंभीरता से न लेने की वजह से इसकी मिट्टी पलीद हो गई। इसके अलावा लालू यादव के हिस्से में न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाने का श्रेय भी जाता है। सन् 90 के दशक में न्यूनतम मजदूरी को 16 रुपए 50 पैसे से बढ़ाकर लालू यादव ने एकबारगी 21 रुपए 50 पैसे तक कर दिया था।
पूरे देश में बंगाल के बाद इस व्यवस्था को लागू करने वाला राज्य बिहार ही था।
उधर, सत्तारूढ़ जेडीयू 15 साल के राजद-काल को बिहार के इतिहास पर धब्बा बताती है। जेडीयू नेता आरसीपी सिंह ने इन तथ्यों को दरकिनार करते हुए बीते दिनों कहा कि नीतीश कुमार ने पिछले 15 साल में हर क्षेत्र में विकास का रिकॉर्ड बनाया है। उन्होंने 1990 से 2005 तक शिक्षा क्षेत्र में बिहार के बजट पर सवाल उठाते हुए कहा कि नीतीश कुमार के सुशासन में बिहार को दो सेंट्रल यूनिवर्सिटी, 20 मेडिकल कॉलेज, तीन विश्वविद्यालय, पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज, आईआईटी, एनआईएफटी जैसे संस्थान मिले हैं। यह शिक्षा के प्रति नीतीश कुमार की सोच को दर्शाता है। उन्होंने नीतीश के 3 कार्यकाल के दौरान बिहार में सड़क निर्माण, बिजली सप्लाई, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार, प्राथमिक शिक्षा आदि काम भी गिनाए। इसके अलावा प्रदेश की 8 हजार पंचायतों में प्राथमिक स्कूलों का भवन निर्माण जैसे काम की भी याद दिलाई। यह सच है कि नीतीश के प्रारंभिक शासनकाल में बिहार में अच्छी सड़कों का जाल बिछा था और प्राथमिक शिक्षा में भी सुधार की दिशा में सरकार ने कई कदम उठाए थे। सबसे बड़ी बात यह हुई थी कि सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के मन से भय दूर कर दिया गया था। इसी के चलते नीतीश कुमार को सुशासन कुमार कहा जाने लगा था।
बिहार की जनता को ये सभी बातें याद दिलाने की जरूरत नहीं है। उसे मालूम है कि कौन कितने पानी में है। मौजूदा समय में कोरोना ज्वलंत समस्या है। कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए बिहार में एक बार फिर से लॉकडाउन लगाने की तैयारी है।गत 14 जुलाई को बिहार सरकार ने बड़े अधिकारियों की हाई लेवल मीटिंग बुलाई थी। सीएम नीतीश कुमार ने बैठक में मौजूदा हालात की समीक्षा की थी। बिहार के मुख्य सचिव दीपक कुमार ने बताया कि राज्य सरकार पूर्ण लॉकडाउन पर गंभीरता से विचार कर रही है। बिहार में 13 जुलाई तक कोरोना संक्रमण की स्थिति विस्फोटक हो गई थी। राज्य में कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़कर 17,421 से भी ऊपर चली गई। कोरोना वायरस से एक डॉक्टर की भी मौत हो गई। इसके साथ ही उसी दिन 9 संक्रमित मरीजों की मौत पटना में हुई। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, बिहार में 13 जुलाई को 1116 नए कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की पहचान हुई। बिहार सरकार में मंत्री शैलेश कुमार भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। इसलिए इस समय सियासत से ज्यादा कोरोना पर ध्यान देने की जरूरत है।
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)