गवर्नर हाउस में राज्यपाल रामनाइक ने किया स्वामी विवेकानंद की मूर्ति का लोकार्पण

गवर्नर हाउस में स्वामी विवेकानंद की विशाल प्रतिमा का लोकार्पण करने के बाद आयोजित एक कार्यक्रम में गवर्नर रामनाइक ने कहा स्वामी विवेकानंद के धार्मिक विचार प्रदेश देश नही विश्वविख्यात् हैं। इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदियनाथ सहित संस्कृति मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी, आशुतोष टंडन, लखनऊ की मेयर संयुक्ता भाटिया, मुख्य सचिव डा. अनूप पाण्डेय मुख्य रूप से मौजूद रहे।

Update: 2019-07-17 09:46 GMT

(नीरज कुमार) लखनऊ। गवर्नर हाउस में स्वामी विवेकानंद की विशाल प्रतिमा का लोकार्पण करने के बाद आयोजित एक कार्यक्रम में गवर्नर रामनाइक ने कहा स्वामी विवेकानंद के धार्मिक विचार प्रदेश देश नही विश्वविख्यात् हैं। इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदियनाथ सहित संस्कृति मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी, आशुतोष टंडन, लखनऊ की मेयर संयुक्ता भाटिया, मुख्य सचिव डा. अनूप पाण्डेय मुख्य रूप से मौजूद रहे।

राज्यपाल रामनाईक ने कहा कि महापुरुषों के पत्रों से उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं के दर्शन होते हैं। इस दृष्टि से स्वामी विवेकानंद के पत्र उनके सर्वतोमुखी प्रतिभा संपन्न दिव्य जीवन पर प्रकाश डालते हैं। उन्होंने अपने पत्रों के द्वारा भारतीय संस्कृति और धर्म के कलेवर में नव चैतन्य का संचार किया था। उन्होंने कहा कि स्वामीजी ने अपने अल्प जीवन में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और प्रगतिशील समाज की परिकल्पना की थी। राज्यपाल ने कहा कि अपने भारत भ्रमणकाल के दौरान स्वामी विवेकानंद ने विभिन्न धर्मों के मूल को समझा और सभी धर्मों में उन्हें शाश्वत एकत्व दिखा। स्वामी रामकृष्ण परमहंस के कथन 'खाली पेट धर्म नहीं होता' की सत्यता को उन्होंने अनुभव किया था। राज्यपाल रामनाईक ने कहा कि उस समय हिन्दू, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि धर्मों में विचारधन चारों ओर बिखरा हुआ था, जिसको उन्होंने संग्रह करने का महत्वपूर्ण कार्य किया।

गर्वनर रामनाईक ने बताया कि स्वामी विवेकानंद के पूना प्रवास के दौरान एक विलक्षण घटना घटी थी, जिससे उनके विराट व्यक्तित्व का परिचय मिलता है। उन्होंने बताया कि गाड़ी में स्वामीजी को द्वितीय श्रेणी से भ्रमण करते देख कर कुछ शिक्षित लोग अंग्रेजी भाषा में संन्यासियों की निंदा करने लगे। उन्होंने सोचा स्वामीजी को अंग्रेजी नहीं आती है। उनका सोचना था कि भारत के अधःपतन के लिए एकमात्र संन्यासी संप्रदाय ही उत्तरदायी है। चर्चा जब पराकाष्ठा पर पहुंच गई तब स्वामीजी चुप नहीं रह सके उन्होंने कथित रूप से उन शिक्षित लोगों को जवाब दिया था कि युग-युग से संन्यासियों ने ही तो संसार की आध्यात्मिक भाव धारा को सतेज और अक्षुण्ण बना रखा है। बुद्ध क्या थे, शंकराचार्य क्या थे? उनकी आध्यात्मिक देन को क्या भारत अस्वीकार कर सकता है, स्वामीजी के मुख से धर्म का क्रम विकास, देश विदेश के धर्मों की प्रगति का इतिहास तथा अनेक गंभीर दार्शनिक बातें सुनकर सहयात्रियों को विवश होकर हथियार डाल देने पड़े थे। गर्वनर ने बताया कि यह वही समय था जब स्वामीजी को शिकागो की विश्व धर्म परिषद सम्मेलन का पता चला था और उन्होंने कहा था कि ईसाई को हिन्दू या बौद्ध नहीं बनना होगा, और न हिन्दू अथवा बौद्ध को ईसाई ही। प्रत्येक धर्म को अपनी स्वतंत्रता और वैशिष्टय को बनाए रखकर दूसरे धर्मों का भाव ग्रहण करते हुए क्रमशः उन्नत होना होगा। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि उन्नति या विकास का यही एकमात्र नियम है।

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