आप सभी को "शिक्षक-दिवस" की हार्दिक शुभ-कामनाएँ

भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति।भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक, राजनीतिज्ञ और एक आस्थावान विचारक भारत रत्न डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को उनकी पावन जयन्ती पर शत् शत् नमन

Update: 2019-09-05 04:56 GMT

दोस्तों,आप सभी को "शिक्षक-दिवस" की हार्दिक शुभ-कामनाएँ |



भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति।भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक, राजनीतिज्ञ और एक आस्थावान विचारक भारत रत्न डाॅ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को उनकी पावन जयन्ती पर शत् शत् नमन 



दरअसल, यदि शिक्षकों  को नमन करने की बात चले तो नमन है उन श्री कृष्ण को जिन्होंने अर्जुन के माध्यम से समस्त मानव जाति को श्रीमद् भगवद्गीता के सदुपदेशों से उपकृत किया |गुरु द्रोण, गुरु रामानन्द, गुरु वशिष्ठ,गुरु विश्वामित्र गुरु नानक- ऐसे ही अनेकानेक सदगुरुओं ने समय-समय पर मानव –जाति को अज्ञान के अंधेरों से दूर कर ज्ञान के प्रकाश से आलोकित है |


गुरु शंकराचार्य से एकबार किसी ने कहा कि सच में आप को लोगों ने "गुरु' की उपाधि बिलकुल सही दी है,आप समस्त विश्व के गुरु हैं |'वे मुस्कुरा कर बोले-"ये समस्त विश्व ही तो मेरा गुरु है इसीलिए तो में जगद्गुरु कहलाता हूँ|


|"दोस्तों ,यह बात चाहे छोटी दिखती है लेकिन एक सद्गुरु के विशिष्ट गुणों की ओर संकेत करती है कि विनम्रता एवं निरंतर सीखते रहने की चाह के बिना कोई गुरु कैसे बन सकता है ?


एक तथ्य से शायद आप सभी सहमत होंगे कि हम सबके अंदर "गुरु"' के कुछ गुण तो विद्यमान हैं ही क्योंकि हम सब चाहते हैं कि जो कुछ भी हम बोलें ,वह सामने वाला अवश्य ध्यान से सुने लेकिन हम यह भूले रहते हैं कि हमें भी सुनने का चाव होना चाहिए |हम तो केवल सुनाना ही जानते हैं |रबीन्द्र नाथ टैगौर जी ने कहा है कि अच्छा शिक्षक वही होता है जो सदैव सीखने के लिए तत्पर रहा करता है |



डा.सर्वपल्ली राधाकृष्ण  ने अपना जन्म-दिवस शिक्षक-समुदाय को सम्मानित करने के लिए समर्पित किया | शिक्षक सदैव पूजनीय ही हुआ करते हैं लेकिन कभी-कभी मन आहत होता है कि आज के परिप्रेक्ष्य में वैसा क्यों नहीं है ?जिस दिन मात्र और मात्र उदरपूर्ति के लिए ही शिक्षा नहीं दी जायेगी अपितु उसके साथ एक उत्तरदायित्व का निर्वाह पूरी तरह से किया जाने लगेगा तो सच मानिए फिर से वह गौरव लौटेगा जिसकी कमी आज महसूस हुआ करती है |
अन्ततः, गुरु एवं शिक्षक ,ज़रूरी तो नहीं कि कोई मानव ही हो,सच तो यह है कि जहाँ से और जिससे भी ज्ञान मिले ;बस वही तो गुरु हो गया | यहाँ तक कि चींटी भी तो हमारी गुरु हो सकती क्योंकि उनका अनुशासन,एक दूसरे के साथ भार को उठाने में मदद करना भी तो अनुकरणीय ही हुआ करता है |



तो आइये दोस्तों, सच्चे गुरु की पहचान करें, सच्चे शिक्षक बनने का प्रयास करें ,समाज के उत्थान में यथायोग्य योगदान करें ताकि अपने देश का गौरव बनाये रख सकें |           

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