मेरी कविता संग्रह "ए वतन तेरे लिए" से एक कविता, शीर्षक है "जागृति भरें" आज के लिए आप सभी के सम्मुख –
नहीं देर करना
सागर में तरना
जो सुप्त हैं उनमें
जागृति भरना |
निशा से दबे जो
सुनसान है अब
उठा दो उन्हें तो
निजगान दूं तब|
तोड़ो सन्नाटा
मधुर झंकार करना
जो सुप्त हैं उनमें
जागृति भरना |
युवा हैं जो यौवन से
चंचल हैं मन से
जागे हैं लेकिन
वे सोये हैं तन से |
हे शक्ति! आ तू
इन्हें दीप्त करना
जो सुप्त हैं उनमें
जागृति भरना |
© रमेश पोखरियाल 'निशंक'