पराली को जलाने की बजाय उसे खेत में ही गला कर खाद रूप में करें इस्तेमाल

पराली को जलाने की बजाय उसे खेत में ही गला कर खाद रूप में करें इस्तेमाल

गौतमबुद्धनगर, उत्तर प्रदेश स्थित जिला गौतमबुद्धनगर के विभिन्न क्षेत्रों में खेती करने वाले किसानों तथा ग्रामीणों से वातावरण संरक्षण के अधिनियम के तहत फसल कटाई के बाद बचने वाले अतिरिक्त घांस फूंस को न जलाने की अपील की है।

जिलाधिकारी व जिला प्रशासन द्वारा दिशा निर्देश जारी किए जाने के पश्चात उप कृषि निदेशक राजीव कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि फसलों के अवशेष जलाने से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण एवं राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए है।

जहां अब गौतमबुद्धनगर के कुछ क्षेत्रों में धान काटने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है। धान की कटाई के तुरन्त बाद ही खेतों में गेहूं की बुआई के लिए कुछ किसान पराली को खेतों में ही जला देते है। पराली से वातावरण को दूषित होने से रोका जाना नितान्त आवश्यक है। पराली जलाने से वातावरण प्रदूषित होता है तथा उपजाऊ मिट्टी के आवश्यक कीट भी नष्ट हो जाते है, जिससे वातावरण सहित मनुष्य, पशु, पक्षियों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है। कृषि उप निदेशक द्वारा आगे जानकारी देते हुए बताया गया कि माननीय राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने संज्ञान लेते हुए निर्देश जारी किए है यदि जनपद में पराली जलाने के दोषी पाए जाते है तो सम्बन्धित किसान पर पच्चीस हजार रुपए से लेकर पंद्रह हजार रुपए तक का जुर्माना लग सकता है। उन्होंने आगे बताया कि जनपद में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर न्याय पंचायत स्तर, विकास खण्ड स्तर एवं तहसील स्तर पर गठित सचल दलों एवं सेटेलाइट के माध्यम से मॉनिटरिंग की जा रही है। भारत सरकार प्रतिदिन इसका बुलेटिन जारी करता है, यदि कोई भी किसान पराली जलाने की घटना में दोषी पाया जाता है, तो उसके विरूद्ध राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम की धारा 24 के अन्तर्गत आर्थिक एवं दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।

जिला प्रशासन द्वारा जनपद के किसानों ग्रामीणों से अपील की जाती है कि वह पराली को जलाने के बजाए उसे खेत में ही गलाकर खाद के रूप में इस्तेमाल करें, और आर्थिक एवं दंड की कार्रवाई से बचें। पराली जलाते पाए जाने वाले किसानों को सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित करने की भी कार्रवाई भी सुनिश्चित की जाएगी।

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