मोहम्मद भट की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर सुनवाई से SC का इनकार

मोहम्मद भट की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर सुनवाई से SC का इनकार

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने कथित तौर पर आतंकी कृत्य से संबंधित तीन लोगों की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा काट रहे गुलाम मोहम्मद भट की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर विचार करने से मंगलवार को इनकार कर दिया।

न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ ने भट की समयपूर्व रिहाई की गुहार पर

विचार नहीं किया, लेकिन उन्हें एक अन्य लंबित मामले में आवेदन दायर करके केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की सजा माफी नीति को चुनौती देने की अनुमति दे दी।

भट ने अपनी 27 साल जेल की सजा काटने के आधार पर शीघ्र रिहाई की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

भट ने कथित तौर पर एक सेना के मुखबिर के घर में घुसकर एके-47 राइफल से गोलीबारी की, जिसमें तीन लोग मारे गए थे।

इस मामले में अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि घटनास्थल से एक अंडर-बैरल ग्रेनेड लॉन्चर सहित अन्य विस्फोटक उपकरण भी बरामद किए गए।

पीठ के समक्ष केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज तर्क दिया कि सेना को कथित तौर पर जानकारी देने के लिए नागरिकों की हत्या करना एक आतंकवादी कृत्य है। इसलिए भट को समयपूर्व रिहाई का लाभ लेने से वंचित किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, “यह एक साधारण हत्या से कहीं बढ़कर है।”

इस पर पीठ ने कहा कि यदि यह कृत्य भय पैदा करने या यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी कानून का पक्ष लेने की हिम्मत न करे, तो यह निश्चित रूप से एक आतंकवादी कृत्य के लक्षण को दर्शाता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने भट का पक्ष रखते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल की दलीलों का विरोध किया। श्री गोंजाल्विस ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को केवल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) और शस्त्र अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया था, न कि किसी आतंकवाद-रोधी कानून, आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत।

श्री गोंजाल्विस ने इसी तरह की स्थिति वाले दोषियों के उदाहरणों का हवाला दिया, जिन्हें समयपूर्व रिहाई दी गई थी। उन्होंने कहा कि अदालत में टाडा के प्रावधानों को लागू करने के लिए कुछ भी साबित नहीं हुआ। न तो निचली अदालत और न ही उच्च न्यायालय ने इसे कभी आतंकवादी कृत्य पाया।

पीठ ने अन्य समयपूर्व रिहाई संबंधी तर्कों पर कहा, “हमारे सामने छूट नीति नहीं है। इसके बिना हम समानताएँ कैसे स्थापित कर सकते हैं?”

अदालत के इस रुख के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता गोंसाल्वेस ने इस मामले में जम्मू कश्मीर छूट नीति (समय पूर्व रिहाई की ) को चुनौती देने की अनुमति मांगी। इसके बाद पीठ ने उसी नीति को चुनौती देने वाले एक लंबित मामले में अंतरिम याचिका दायर करने की भट को अनुमति दे दी।

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