28 साल पुराने मामले में पहले फांसी की सजा अब उम्रकैद में तब्दील

28 साल पुराने मामले में पहले फांसी की सजा अब उम्रकैद में तब्दील

लखनऊ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने 28 साल पुराने चार लोगों की हत्या के एक मामले में अभियुक्तों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है।

कोर्ट ने यह अहम फैसला देते हुए कहा है कि चूंकि घटना में दो ऐसे अभियुक्त भी शामिल थे, जिनकी पहचान नहीं हो सकी। साथ ही अभियोजन हर अभियुक्त की भूमिका को स्पष्ट नहीं कर सका है, लिहाजा इसे दुर्लभ से दुर्लभतम मामला नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने साथ ही इस मामले में दोषी करार दिए गए चार अभियुक्तों की दोषसिद्धि को भी बरकरार रखा है।

यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने कृष्ण मुरारी, राघव राम वर्मा, काशी राम वर्मा और राम मिलन वर्मा की ओर से दाखिल अलग-अलग अपीलों पर सुनाया। इन अपीलों के साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील और मामले के वादी की पुनरीक्षण याचिका पर भी सुनवाई कर उन्हें निस्तारित कर दिया।

हत्या का यह मामला, अयोध्या (तत्कालीन फैजाबाद) जनपद के तारुन थाने का, वर्ष 1994 का था। आरोप था कि अपीलार्थियों ने अपने अन्य नकाबपोश साथियों के साथ मिलकर जमीन विवाद में राम देव, राम नरेश, सुखई व गिरीश की हत्या कर दी थी। अपर जिला और सत्र न्यायाधीश, फैजाबाद की अदालत ने अपीलार्थियों को दोषी करार देते हुए उनके कृत्य को दुर्लभ से दुर्लभतम मामला करार देते हुए मृत्यु दंड की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ ये अपीलें दायर की गई थीँ।


कोर्ट ने अपीलार्थियों की दोषसिद्धि को तो बरकरार रखा, लेकिन मामले को दुर्लभ से दुर्लभतम नहीं माना। कोर्ट ने कहा कि मृतकों को घातक चोट पहुंचाने के लिए कौन जिम्मेदार था। वर्तमान अपीलार्थीगण अथवा वे दो या तीन नकाबपोश जिनकी पहचान नहीं हो सकी। यह अभियोजन सिद्ध नहीं कर सका है। इसके अलावा अभियोजन यह भी सिद्ध नहीं कर सका कि अपीलार्थियों ने पूर्व नियोजित तरीके से घटना को अंजाम दिया। कोर्ट ने कहा कि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि अपराध का उद्देश्य क्या था।

वार्ता

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