जब गुस्से पर भारी पड़ा वोट बैंक- बन गई हैडलाइन

जब गुस्से पर भारी पड़ा वोट बैंक- बन गई हैडलाइन

लखनऊ। राजनीति भी बड़ी अजीब चीज है। कभी-कभी दिल को कचोटने वाली बात हो जाती है जैसा कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती के साथ हुआ। राज्यसभा के लिए बेहतर मौका था कि उनका प्रत्याशी चुन लिया जाता लेकिन समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता अखिलेश यादव ने निर्दलीय प्रत्याशी उतार दिया। इतना ही नहीं बसपा के सात विधायकों को तोड़ लिया। इससे मायावती का गुस्सा जायज था। इसी गुस्से के चलते उन्होंने सपा को उल्टी-सीधी बातें सुनायीं और इशारों में कह दिया कि सपा को हराने के लिए वे कुछ भी कर सकती हैं। भाजपा को भी समर्थन का स्वर दिख रहा था। मीडिया में यही हेडलाइन बन गयी कि बसपा प्रमुख मायावती भाजपा को समर्थन दे सकती हैं। तीर निकल चुका था और घाव भी करने लगा। बसपा प्रमुख ने दलित-मुस्लिम का जो समीकरण बना रखा था, वो डगमगाने लगा। इसी के बाद बसपा प्रमुख ने नया बयान जारी किया कि भाजपा को वोट देने के स्थान पर वे राजनीति से संन्यास लेना पसंद करेंगी। राजनीति के जानकार समझ गये कि गुस्से पर वोट बैंक भारी पड़ गया है।

राज्यसभा चुनाव में भाजपा की रणनीति सफल रही। सपा और बसपा के भी एक-एक प्रत्याशी को जीत मिली लेकिन दोनों दलों में बिखराव हो गया। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की एक ही चाहत समाजवादी पार्टी को हराना है। उन्होंने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार और बसपा पर जमकर प्रहार किया। उन्नाव की पूर्व सांसद अनु टंडन को सपा में शामिल कराने के बाद अखिलेश यादव ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि सांप्रदायिक भाजपा को रोकने के लिए 2019 में बसपा के साथ गठबंधन करना जरूरी था। अखिलेश ने कहा, ''मेरा मानना है कि डॉक्टर राम मनोहर लोहिया और डॉक्टर भीम राव आंबेडकर की विचारधारा एक रथ के दो पहिए की तरह है, इसीलिए बसपा के साथ गठबंधन किया था।

राज्य की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को लिटमस टेस्ट बताते हुए अखिलेश ने कहा कि जनता भाजपा को सबक सिखाने के लिए समय का इंतजार कर रही है। पूर्व सांसद अनु टंडन ने हाल में प्रदेश नेतृत्व पर आरोप लगाते हुए कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। इसके पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम शेरवानी और पूर्व बसपा सांसद त्रिभुवन दत्त समेत कई प्रमुख नेताओं ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी। अखिलेश ने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रदेश में ऐसी सरकार नहीं होनी चाहिए जिसकी भाषा और शब्दों का चयन ठीक न हो। उन्होंने कहा, ''सरकार चलाने वालों की भाषा ठोको है और सच यह है कि ठोको नीति वाले सरकार चला रहे हैं। अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि भाजपा ने दलितों का बहुत नुकसान किया है. सरकार न विकास पर चर्चा करना चाहती है और न ही किसानों की बात करना चाहती है। कोरोना काल में लोगों को इलाज तक नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा को रोकना है और इसके लिए सबको जोड़ने की जरूरत है। उनका समर्थन अनु टंडन ने किया। अनु टंडन ने कहा कि सपा प्रमुख ने जो विकास कार्य किया है वह एक कार्यकाल में संभव नहीं था. उन्होंने कहा, सपा में आये हैं तो अखिलेश यादव को पुनः मुख्यमंत्री बनाना हमारा लक्ष्य है। उन्होंने कहा, ''मैंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ काम किया लेकिन 2019 के बाद स्थिति बदल गई।

सपा प्रमुख का यह बयान बसपा प्रमुख को अपने वोट बैंक पर प्रहार लगा। कुछ दिन पहले ही समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को हराने के लिए बीजेपी के पक्ष में वोटिंग से परहेज नहीं करने की बात कहने वाली बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने अब नया बयान दिया है। बीएसपी प्रमुख ने कहा है कि बीजेपी के साथ कोई भी गठबंधन करने के बजाय वे राजनीति से संन्यास लेना पसंद करेंगी। बीएसपी सुप्रीमो ने कहा, किसी भी चुनाव में बीजेपी के साथ बसपा का कोई भी गठबंधन भविष्य में संभव नहीं है। बीएसपी एक सांप्रदायिक पार्टी के साथ चुनाव नहीं लड़ सकती। उन्होंने कहा, हमारी विचारधारा सर्वजन सर्वधर्म हिताय की है और यह बीजेपी की विचारधारा के विपरीत है। बीएसपी उनके साथ गठबंधन नहीं कर सकती जो सांप्रदायिक, जातिवादी और पूंजीवादी विचारधारा के हैं।

मायावती ने कहा कि भविष्य में विधानसभा या लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ कभी गठबंधन नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि उप चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस हमारी पार्टी के खिलाफ साजिश में लगी है और गलत ढंग से प्रचार कर रही है ताकि मुस्लिम समाज के लोग बसपा से अलग हो जाएं। बसपा सांप्रदायिक पार्टी के साथ समझौता नहीं कर सकती है हमारी विचारधारा सर्वजन धर्म की है। उन्होंने कहा कि यह सभी जानते हैं कि बसपा एक विचारधारा और आंदोलन की पार्टी है और जब मैंने भाजपा के साथ सरकार बनाई तब भी मैंने कभी समझौता नहीं किया। मेरे शासन में कोई हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं हुआ, इतिहास इसका गवाह है।

मायावती ने कहा कि बसपा ने विपरीत परिस्थितियों में जब कभी भाजपा से मिलकर सरकार बनाई तो भी कभी अपने स्वार्थ में विचारधारा के खिलाफ गलत कार्य नहीं किया। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी जब भी सत्ता में आई तो भाजपा मजबूत हुई है। उन्होंने कहा कि राज्य में भाजपा की मौजूदा सरकार सपा के कारण बनी है। उन्होंने याद दिलाया कि उप चुनाव में संघ ने सात सीटों में दो पर मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर उनको प्रतिनिधित्व दिया है। मायावती ने कहा कि यूपी में अपने अकेले दम पर या भाजपा के साथ मिलकर जब भी हमने सरकार बनाई तो मुस्लिम समाज का कोई नुकसान नहीं होने दिया, भले ही अपनी सरकार कुर्बान कर दी। उन्होंने विस्तार में जाए बिना कहा कि 1995 में जब भाजपा के समर्थन से मेरी सरकार बनी तो मथुरा में भाजपा और संघ के लोग नई परंपरा शुरू करना चाहते थे लेकिन मैंने उसे शुरू नहीं होने दिया और मेरी सरकार चली गई। उन्होंने कहा कि 2003 में मेरी सरकार में जब भाजपा ने लोकसभा चुनाव में गठबंधन के लिए दबाव बनाया तब भी मैंने स्वीकार नहीं किया। मायावती ने कहा कि बीजेपी ने सीबीआई और ईडी का भी दुरुपयोग किया लेकिन मैंने कुर्सी की चिंता नहीं की। उन्होंने कहा कि सीबीआई और ईडी जब 2003 में मुझे परेशान कर रही थी तो उस समय कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का फोन आया था और न्याय दिलाने का वादा किया। लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार रही लेकिन कोई मदद नहीं की और मुझे अंततः सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिला। मायावती ने कहा कि बसपा के दलित उम्मीदवार को राज्यसभा में जाने से रोकने के लिए सपा ने पूंजीवादी प्रकाश बजाज को मैदान में उतारा, इसे बसपा कभी भूलेगी नहीं। इस प्रकार बसपा प्रमुख ने सपा और भाजपा दोनों का विरोध करते हुए मुस्लिम वोट बैंक को संतुष्ट करने का प्रयास किया है। (अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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