कानून, न्याय और न्यायाधीश

कानून, न्याय और न्यायाधीश

नई दिल्ली। मैं विधि अर्थात कानून का छात्र नहीं रहा लेकिन पत्रकारिता करते हुए थोड़ी बहुत जानकारी इस विषय की भी हो गयी है। कानून हमारे समाज को नियंत्रण में रखने के लिए बनाए गये हैं। यह अच्छी परम्पराओं को मान्यता दिलाने का एक तरीका है। पहले यही कार्य धर्म के माध्यम से होता था। हमारे हिन्दू धर्म में नहिं असत्य सम पातक पुंजा बताया जाता था। इसी के साथ यह भी सिखाया जाता था कि सत्यं ब्रुयात, प्रियम ब्रुयात, नहिं ब्रुयात सत्य अप्रियम- अर्थात सत्य बोलो लेकिन अप्रिय लगने वाला सत्य न बोलो। यह विरोधाभास भी बहुत गूढ़ है। मानवता का भाव ही श्रेष्ठ है। विधि व्यवस्था में भी यही भाव प्रधान रहना चाहिए।

सिद्धांत और व्यवहार में काफी फर्क होता है। अभी कुछ दिनों पूर्व एक ऐसे मुकदमे के बारे पढ़ा जिसमें हाईकोर्ट की विद्वान न्यायाधीश के फैसले को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने व्यावहारिक दृष्टिकोण से निरस्त कर दिया। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जज को परमानेंट करने की सिफारिश भी वापस ले ली है। एक 12 साल की बालिका के यौन शोषण का मामला है। उसे सत्र न्यायालय से न्याय मिला लेकिन हाईकोर्ट में कानून की बारीकियां निकालकर आरोपित को बरी कर दिया गया था। मैं सोच रहा हूं कि हाई कोर्ट की महिला न्यायाधीश ने सामाजिक नियंत्रण और मानवीय पक्ष पर ध्यान क्यों नहीं दिया। महिलाओं विशेष रूप से बालिकाओं के साथ दुर्व्यवहार और दुराचार की घटनाओं ने हमारे समाज को शर्मसार ही नहीं किया बल्कि असहिष्णु भी बना दिया है। इसी के चलते इंडियन पैनल कोड (आईपीसी) में संशोधन करके बच्चों के साथ दुराचार करने वालों पर पास्को जैसा कानून लगता है।


यह मामला महाराष्ट्र का है। एक परिपक्व युवक ने पांच साल की लड़की का यौन शोषण किया। यह मामला सत्र न्यायालय में पहुंचा। सत्र न्यायालय ने आरोपित को इस मामले में दोषी ठहराया था और उसे पास्को की धारा 10 के तहत दण्डनीय यौन उत्पीड़न मानते हुए छह महीने के लिए साधारण कारावास के साथ पांच साल के कठोर कारावास की सजा और 25 हजार रुपये जुर्माना अदा करने को आदेशित किया। आरोपित अपने को बचाने के लिए मामले को हाई कोर्ट ले गया। बाम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने माना कि पास्को अधिनियम 2012 यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा के तहत एक लडकी का हाथ पकड़ना और पैंट की जिप खोलना यौन शोषण की परिभाषा में नहीं आता है। जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला की सिंगल बेंच ने कहा कि आईपीसी की धारा 354- ए (1) (।) के तहत ऐसा करना यौन उत्पीड़न के दायरे में आता है। पचास वर्षीय व्यक्ति को पांच साल की बच्ची से छेड़छाड़ के लिए दोषी ठहराये जाने की सजा और सजा के खिलाफ आपराधिक अपील पर जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला की सिंगल बेंच ने यह फैसला सुनाया।

इस प्रकार जस्टिस गनेडीवाला ने पास्को अधिनियम की धारा 8,10 और 12 के तहत दोषी ठहराये जाने को परे करते हुए आरोपी को आईपीसी की धारा 354- ए (1) (।) के तहत दोषी ठहराया जिसमें अधिकतम तीन साल तक कैद का प्रावधान है। बाम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने पाया कि यह मामला यौन शोषण का मामला है न कि यौन उत्पीड़न का। इसके तहत किसी महिला को गलत नजरिए से छूना, उससे शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहना या उसकी इच्छा के विरुद्ध अश्लील साहित्य या किताबें दिखाना अथवा महिला पर अश्लील टिप्पणी करना शामिल है। पुलिस ने पीडिता की मां द्वारा दर्ज करायी गयी शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया था। इसमें कहा गया था कि उसने देखा, आरोपित की पैंट का जिप खुला हुआ था और आरोपित ने बेटी का हाथ पकडा हुआ था। उसने यह भी गवाही दी थी कि उसकी बेटी ने बताया कि आरोपी ने उसे सोने के लिए बिस्तर पर आने को कहा था।

एक दूसरा मामला 12 साल की किशोरी का है। बाम्बे हाईकोर्ट ने नाबालिग के यौन उत्पीड़न के मामले में अजीबो-गरीब फैसला सुनाया। इसमें भी मानवीय दृष्टिकोण की उपेक्षा दिखती है। बाम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने ही इसी 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि यौन हमले का कृत्य माने जने के लिए यौन मंशा से स्किन से स्किन का सम्पर्क होना जरूरी है। उन्होंने कहा किसी नाबालिग को निर्वस्त्र किये बिना महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है। इस प्रकार जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले में संशोधन किया, जिसमें 12 वर्षीय एक लडकी का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष की सजा सुनायी गयी थी।


अभियोजन पक्ष और नाबालिग बालिका की अदालत में गवाही के मुताबिक दिसम्बर 2016 में आरोपित एक लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया और गलत व्यवहार किया। हाईकोर्ट ने कहा चूंकि आरोपित ने लडकी को निर्वस्त्र किये बिना ही उसके अंगों को छूने की कोशिश की है, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के तहत महिला के सम्मान को भंग करने का अपराध है। ध्यान रहे कि इसके तहत सजा न्यूनतम एक वर्ष की कैद है तो पास्को कानून के तहत न्यूनतम सजा तीन वर्ष कारावास है। सत्र अदालत ने आरोपित को तीन साल कैद की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने उसे पास्को कानून के रहत अपराध से बरी कर दिया। भला हो सुप्रीम कोर्ट का, जिसने न्याय को व्यावहारिक जामा पहनाया और हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की पीठ ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल द्वारा यह विषय पेश किये जाने के बाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है। शीर्ष कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेजकर अटॉर्नी जनरल को हाई कोर्ट की नागपुर पीठ के 19 जनवरी के निर्णय के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति दी है। दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष अनुराग कुंडू ने भी बाम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले पर महाराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा और कहा सरकार भी इस निर्णय के विरोध में याचिका दायर करे।

इस तरह के मामलों में सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। मध्य प्रदेश में भोपाल के प्यारे मियां यौन शोषण के प्रकरण को हम कैसे भूल सकते हैं। इस मामले में गवाह पांच बच्चियों में से एक बच्ची की मौत हो जाने के बाद अन्य चार को घबराहट और बीपी हाई होने जैसी शिकायत हो रही है। नाबालिगों के बार-बार बीमार पड़ने के चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। इन बच्चियों को काउंसिलिंग देने के लिए पहले काउंसलर नियुक्त किया गया था। उनकी समझाइश के बाद भी बच्चियां जब नॉर्मल नहीं हो पा रही थीं तो उन्हें मनोचिकित्सक की सुविधा उपलब्ध कराई गई । मनोचिकित्सक उनके व्यवहार से लेकर उनके क्रियाकलापों पर निगाह रखते हुए उन्हें नार्मल रखने का प्रयास कर रहे थे, ताकि पीड़ित बालिकाएं एसआईटी और मजिस्ट्रियल जांच कर रहे अधिकारियों द्वारा पूछे जा रहे सवालों के सही से जवाब दे सकें।

यह मामला भी सामने तब आया था जब रात करीब तीन बजे भोपाल के रातीबढ इलाके में पांच लड़कियां ग्लैमरस कपड़ों में घूमते मिलीं। इनमें चार नाबालिग थीं। लडकियों ने पुलिस को बताया कि रंगीले स्वभाव वाले पत्रकार प्यारे मियां और उनकी मैनेजर स्वीटी उन्हे बावड़ियां कला के पास विष्णु हाईटेक स्थित फ्लैट पर ले गये थे। वहां किसी की जन्म दिन की पार्टी हो रही थी। लडकियों ने बताया कि वहां उनके साथ दुष्कर्म किया गया। भोपाल स्थित नेहरू नगर बालिकागृह की वे बालिकाएं हैं। प्यारे मियां को जम्मू कश्मीर के श्रीनगर से एसआई टी ने गिरफ्तार किया था।

इस तरह के कितने ही प्यारे मियां बालिकाओं का यौन शोषण कर रहे हैं लेकिन क्या उन्हें कानून की बारीकियां निकालकर आजाद घूमने का अवसर दिया जाना चाहिये ? (हिफी)

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