यूपी में लव जिहाद के खिलाफ कानून

यूपी में लव जिहाद के खिलाफ कानून

लखनऊ। कहते हैं काम होना चाहिए, नाम में क्या रखा है। लव जिहाद के नाम पर एक घिनौनी साजिश चल रही थी और इसके चलते साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड रहा था। इसे वोटबैंक से भी जोड़ दिया गया था। इस तरह लव जिहाद बहुत बड़ी समस्या बन गया। इसके खिलाफ आवाज उठी और मामला कोर्ट तक पहुंच गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण फैसला किया। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ शादी के लिए धर्म बदलना वैध नहीं है। इसके पीछे कोर्ट का मानना शायद यह है कि शादी के पहले दबाव डालकर धर्मान्तरण कराया जा रहा है। इसलिए यह धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि डरा धमका कर कराया जा रहा कृत्य है। लोगों को जिस तरह अपनी मर्जी का धर्म अपनाने की स्वतंत्रता है, उसी तरह विवाह करने की भी आजादी है। भारतीय संविधान द्वारा दी गयी इस आजादी के दुखद नतीजे सामने आने लगे। किसी ने शिकायत करी कि उसे युवक ने धोखा देकर शादी की है। युवक मुसलमान था और उसने हिन्दू नाम रखकर प्यार का नाटक किया। शादी के बाद उसका असली रूप सामने आया और अब वह धर्म परिवर्तन का दबाव बना रहा है। किसी हिन्दू लडके को लेकर फिलहाल इस तरह की शिकायत नहीं मिली। इसलिए हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग में आक्रोश भी देखा जा रहा था। भाजपा शासित राज्यों ने इस तरह के धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने का प्रस्ताव बनाया। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सबसे आगे निकल कर अध्यादेश को हरी झंडी दे दी। इस प्रकार यूपी में अध्यादेश के जरिए अवैध धर्मांतरण पर सजा मिलेगी। लव जिहाद पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान है। इस कानून का नाम अवैध धर्मांतरण रोधी कानून रखा गया है लेकिन इसका काम लव जिहाद जैसे विवादों को रोकना है। आगामी शीतकालीन सत्र में विधेयक पारित कराने की तैयारी है।

देश के दूसरे राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में भी लव जिहाद के खिलाफ कानून लाने पर योगी सरकार ने अंतिम मुहर लगा दी है। उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल ने विवाह के लिए अवैध धर्मांतरण रोधी कानून के प्रस्ताव को 24 नवम्बर को मंजूरी दे दी। राज्य सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में शादी के लिए धोखाधड़ी कर धर्मांतरण किए जाने की घटनाओं पर रोक लगाने संबंधी कानून के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इससे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों कथित 'लव जिहाद' के खिलाफ कानून बनाने का ऐलान किया था। योगी की सरकार ने जिस दिन इस कानून को हरी झंडी दी, उसी दिन इलाहबाद हाईकोर्ट ने एक वैवाहिक मामले का ही निस्तारण करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया । हाईकोर्ट ने कहा कि पसंद का साथी चुनना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार है, चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो। कोर्ट ने कहा कि यह उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का मूल तत्व है। दो व्यक्ति जो अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं, उस पर आपत्ति करने का किसी को अधिकार नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने कुशीनगर के सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार की याचिका पर दिया है।

ये दोनों अलग-अलग धर्मो के अनुयायी हैं। दरअसल पहले स्टेट लॉ कमीशन ने अपनी भारी-भरकम रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी थी, जिसके बाद यूपी के गृह विभाग ने बाकायदा इसकी रूपरेखा तैयार कर न्याय एवं विधि विभाग से अनुमति ली।जानकारी के अनुसार जो प्रस्ताव तैयार किया गया है, उसमें इस कानून के बनने के बाद इसके अंतर्गत अपराध करने वालों को 5 से 10 साल की सजा का प्रावधान है। साथ ही शादी के नाम पर धर्म परिवर्तन भी नहीं किया जा सकेगा। यही नहीं शादी कराने वाले मौलाना या पंडित को उस धर्म का पूरा ज्ञान होना चाहिए। कानून के मुताबिक धर्म परिवर्तन के नाम पर अब किसी भी महिला या युवती के साथ उत्पीड़न नहीं हो सकेगा और ऐसा करने वाले सीधे सलाखों के पीछे होंगे।

बता दें यूपी विधानसभा उपचुनाव के दौरान जौनपुर जिले में एक जनसभा को संबोधित करते हुए सीएम योगी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही फैसले का उल्लेख करते हुए कहा था कि शादी के लिए धर्म परिवर्तन आवश्यक नहीं है। इसको मान्यता नहीं मिलनी चाहिए। इसलिए सरकार भी निर्णय ले रही है कि हम लव जिहाद को सख्ती से रोकने का काम करेंगे। एक प्रभावी कानून बनाएंगे। इस देश में चोरी-छिपे, नाम और धर्म छुपाकर जो लोग बहन-बेटियों के साथ खिलवाड़ करते हैं, उनको पहले से मेरी चेतावनी है।एक महत्वपूर्ण फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि महज शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं है। जस्टिस एससी त्रिपाठी ने प्रियांशी उर्फ समरीन व अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए नूरजहां बेगम केस के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ शादी के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है।इसीलिए जिहाद को लेकर देशभर में गरमाए माहौल के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाली प्रदेश कैबिनेट ने धर्मांतरण अध्यादेश के मसौदे को मंजूरी दे दी है। झांसा देकर, झूठ बोलकर या छल-प्रपंच करके धर्म परिवर्तन करने-कराने वालों के साथ सरकार सख्ती से पेश आएगी। अगर सिर्फ शादी के लिए लड़की का धर्म बदला गया तो ऐसी शादी न केवल अमान्य घोषित कर दी जाएगी, बल्कि धर्म परिवर्तन कराने वालों को 10 साल तक जेल की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है।

योगी कैबिनेट ने 24 नवम्बर को 'विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020' के मसौदे को मंजूरी दे दी। राज्यपाल की मंजूरी मिलते ही यह कानून प्रभावी हो जाएगा। नया कानून अमल में आने के बाद प्रदेश में बलपूर्वक, झूठ बोलकर, लालच देकर या अन्य किसी कपटपूर्ण तरीके से अथवा विवाह के लिए धर्म परिवर्तन गैर जमानती अपराध होगा।

अध्यादेश के अनुसार प्रदेश में किसी एक धर्म से अन्य धर्म में लड़की के धर्म में परिवर्तन से एकमात्र प्रयोजन के लिए किए गए विवाह पर ऐसा विवाह शून्य (अमान्य) की श्रेणी में लाया जा सकेगा। अध्यादेश के अनुसार एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन के लिए संबंधित पक्षों को विहित प्राधिकारी के समक्ष उद्घोषणा करनी होगी कि यह धर्म परिवर्तन पूरी तरह स्वेच्छा से है। संबंधित लोगों को यह बताना होगा कि उन पर कहीं भी, किसी भी तरह का कोई प्रलोभन या दबाव नहीं है। दबाव डालकर या झूठ बोलकर अथवा किसी अन्य कपट पूर्ण ढंग से अगर धर्म परिवर्तन कराया गया तो यह एक संज्ञेय अपराध माना जाएगा। यह गैर जमानती होगा और प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में मुकदमा चलेगा। दोष सिद्ध हुआ तो दोषी को कम से कम 01 वर्ष और अधिकतम 05 वर्ष की सजा भुगतनी होगी। साथ ही कम से कम 15,000 रुपए का जुर्माना भी भरना होगा। अध्यादेश में धर्म परिवर्तन के सभी पहलुओं पर प्रावधान तय किए गए हैं। इसके अनुसार धर्म परिवर्तन का इच्छुक होने पर संबंधित पक्षों को तय प्रारूप पर जिला मजिस्ट्रेट को दो माह पहले सूचना देनी होगी। इसका उल्लंघन करने पर छह माह से तीन वर्ष तक की सजा हो सकती है। इस अपराध में न्यूनतम जुर्माना 10,000 रुपये तय किया गया है। योगी सरकार ने सामूहिक धर्म परिवर्तन की घटनाओं पर लगाम लगाने के भी पुख्ता इंतजाम किए हैं। नए कानून में सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामले में तीन से 10 वर्ष तक जेल हो सकती है और कम से कम 50,000 रुपये का जुर्माना भरना होगा। योगी सरकार के इस अध्यादेश का कार्यान्वयन भी पारदर्शिता से होना चाहिए। (हिफी)

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