स्नातक कर चुके युवा बनें वोटर, कुशपुरी की अपील

मुजफ्फरनगर। ज्यों-ज्यों विधान परिषद का चुनाव नजदीक आता जा रहा है, त्यों-त्यों सम्भावित प्रत्याशियों में सुगबुगाहट तेज होती जा रही है और इस बार अब तक लगभग गुपचुप होने वाले स्नातक विधान परिषद चुनावों में काफी गहमागहमी के आसार नजर आ रहे हैं। स्नातक एमएलसी का चुनाव अब तक गिने-चुने मतदाताओं द्वारा ही निर्णित कर दिया जाता था। प्रत्याशी भी केवल अपने पक्ष के स्नातकों की वोट बनवाने में ही इच्छुक रहते थे। कब स्नातक एमएलसी का चुनाव हुआ और कौन एमएलसी बना अधिकतर को तो इस बात का पता ही नहीं चलता था, लेकिन इस बार इस चुनाव की दूसरी तस्वीर सामने आने के संकेत मिल रहे हैं। स्नातक एमएलसी के चुनाव में ताल ठोकने को तैयार प्रत्याशी इस बार अधिक से अधिक वोट बनवाने की मुहिम में जुट गये हैं।
ज्ञात हो कि संविधान के अनुच्छेद 169,171(1) एवं 171(2) के अनुसार गठित विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल छह वर्षों का होता है, लेकिन प्रत्येक दो साल पर एक तिहाई सदस्य हट जाते हैं। एक राज्य के विधान सभा (निम्न सदन) के साथ इसके विपरीत, विधान परिषद (उच्च सदन) में एक स्थायी निकाय है। इसे कभी भंग नहीं किया जा सकता है। यह व्यवस्था राज्य सभा के सामान है।
मुजफ्फरनगर के उद्योेगपति और समाजसेवी कुशपुरी ने बताया कि जिस एमएलसी क्षेत्र के वो निवासी है, उसमें सहारनपुर से लेकर बुलंदशहर तक का पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गंगा यमुना का क्षेत्र इसी एमएलसी सीट निर्वाचन क्षेत्र में आता है। जो 2016 तक स्नातक हो चुके है, उन्हे इस चुनाव में वोट देने का अधिकार होगा।
एक प्रश्न के जवाब में कुशपुरी ने कहा कि इस चुनाव को आम जनता तक पहुंचाने के लिए किसी ने प्रयास ही नहीं किया। यहां तक कि जो लोग आजतक चुनाव लडे हैं, उन्होने भी जागरूकता फैलाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। वो एमएलसी चुनाव को एक निश्चित दायरे तक ही सीमित रखना चाहते है। यही कारण है कि यह चुनाव आज तक सही रूप नहीं ले पाया है, मगर अब मुजफ्फरनगर की जनता चाहती है कि यह चुनाव सीमित दायरे से बाहर निकलकर आम स्नातकों तक पहुंचाया जाए।
कुशपुरी ने कहा कि चुनाव जात-पात और धर्म से हटकर होना चाहिए, जिसमें सर्वसमाज के शिक्षित वर्ग की भागीदारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि चुनाव लड़ना मेरे लिए इसलिए भी खास है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता चाहती हैं कि यहां के प्रमुख मुद्दे विधान परिषद तक जाएं। पश्चिमी उ.प्र. का सबसे ज्यादा कर देने वाला क्षेत्र है। मगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मांगे आज तक पूरी नहीं हो पाई है। पिछले चार दशकों से हाईकोर्ट बैंच की मांग पश्चिम उत्तर प्रदेश में स्थापित करने की जा रही है, जिसपर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
नये उद्योगों के लिए आज भी भूमि उपलब्ध नहीं हो पाती है, जिसकारण नये उद्योगों को औद्योगिक क्षेत्रों से अलग लगाना पड़ता है। जिसमें काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जो मिलना चाहिए वो नहीं मिल रहा है। दिल्ली के इतने पास होने के बावजूद भी यहां पर जितना विकास होना चाहिए था, नहीं हो पाया है। कुशपुरी ने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए भी बुंदेलखण्ड विकास परिषद कि तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक अलग विकास परिषद का गठन होना चाहिए, क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जरूरतें अलग हैं। इन बातों को लेकर जनता के मन में पीड़ा है। कुशपुरी ने पार्टी के समर्थन के सवाल पर कहा कि उन्हें यकीन ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि उन्हे भारतीय जनता पार्टी का समर्थन अवश्य मिलेगा, इसके लिए वो प्रयासरत भी है।
कुशपुरी ने स्नातक लोगों से दावा पेश करने का अनुरोध करते हुए कहा कि स्नातक व्यक्ति अपना दावा अवश्य पेश करें, जिससे इस चुनाव में ज्यादा से ज्यादा लोग भाग ले सकें। उन्होने कहा कि शहर के विभिन्न स्थानों पर 30 से ज्यादा फार्म सेन्टर बनाए गए है, जहां से स्नातक व्यक्ति निशुल्क फार्म लेकर अपना दावा पेश कर सकता है। दावा पेश करने के लिए फार्म को भरते हुए स्नातक व्यक्ति को फार्म के साथ अपने स्नातक की मार्कसीटध्डिग्री की फोटो काॅपी की एक प्रतिलिपी और एक आईपी प्रूफ लगाकर फार्म सेन्टर पर जमा करना होगा।
बता दें कि यूपी विधान परिषद में शिक्षक व स्नातक कोटे से 8-8 एमएलसी चुनाव जीतकर अपनी उपस्थित दर्ज कराते हैं। इनमें से ओम प्रकाश शर्मा मेरठ खंड शिक्षक सीट, जगवीर किशोर जैन आगरा खंड शिक्षक सीट, उमेश द्विवेदी लखनऊ खंड शिक्षक सीट, ध्रुव कुमार त्रिपाठी गोरखपुर फैजाबाद खंड शिक्षक सीट, संजय कुमार मिश्र बरेली मुरादाबाद खंड शिक्षक सीट, हेम सिंह पुण्डीर मेरठ खंड स्नातक सीट, केदार नाथ सिंह वाराणसी लखनऊ खंड स्नातक सीट, डा0 यज्ञदत्त शर्मा इलाहाबाद झॉसी खंड सीट, डा0 असीम यादव आगरा खंड स्नातक सीट, चेतनारायण सिंह वाराणसी खंड शिक्षक सीट, कान्ति सिंह लखनऊ खंड स्नातक सीट का कार्यकाल 6 मई 2020 को पूरा हो रहा है।
जानकारों की मानें तो भारत के विधान मंडलों में चैथें सबसे पुराने सदन उत्तर प्रदेश विधान परिषद का गौरवशाली इतिहास रहा है। इसका विधायी इतिहास 8 जनवरी 1887 को इलाहाबाद के परिषद की स्थापना से आरम्भ हुआ था। उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के अलग होने के बाद भी यह देश की सबसे बड़ी विधान परिषद बनी हुई है। 1919 में इसे बजट पारित करने जैसी शक्ति भी मिल गयी थी। 1887 से 1936 तक विधान मंडल के इकलौते सदन के रुप में परिषद ने शानदार काम किया। बाद में 1937 से दो सदनीय व्यवस्था लागू हो गयी। सर सैय्यद अहमद खां, पंडित मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, गोविंद बल्लभ पंत, गणेश शंकर विद्यार्थी और सीवाई चिंतामणि से लेकर तमाम दिग्गज हस्तियां इस सदन की सदस्य रहीं।
कुशपुरी ने स्नातक कर चुके युवाओं से अपील की है
कुशपुरी ने स्नातक कर चुके युवाओं से अपील की है कि अगर आप 18 साल के स्नातक हैं तो आप एमएलसी (मेंबर ऑफ लेजिसलेटिव काउंसल) के चुनाव में वोट डाल सकते हैं। फिलहाल स्नातक सीट के चुनाव के लिए वोटर लिस्ट बनाने की प्रक्रिया आरम्भ हो गयी है। स्नातक सीट के चुनाव में वोट डालने के लिए जिन्होंने देश की किसी भी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन किया हो, वे अपना नाम इस लिस्ट में दर्ज करवा सकते हैं, इसके लिए www.upceo.nic.in पर क्लिक करके एमएलएसी का फॉर्म नंबर 18 डाउनलोड करना होगा। इसके बाद फोटो समेत फॉर्म भरकर और उसके साथ ग्रैजुएशन डिग्री या फाइनल ईयर की मार्कशीट की फोटोकॉपी और अड्रेसप्रुफ की फोटोकॉपी लगाकर जमा करानी होगी। इसके लिए जो 2016 तक स्नातक की परीक्षा पास कर चुके हैं, वे मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने के लिए अर्ह माने जायेंगे।