अपनी गलती मढ़ रहे दूसरे के सिर

अपनी गलती मढ़ रहे दूसरे के सिर

नई दिल्ली। यह आदत बच्चों में ज्यादा होती है कि अपनी गलती दूसरे पर मढ़ देते हैं लेकिन कहीं-कहीं राजनेता भी ऐसा ही बर्ताव करने लगें तो उनको क्या कहा जाएगा? झारखंड में वित्तमंत्री हैं रामेश्वर उरांव। वित्तमंत्री पर दायित्व रहता है कि सभी विभागों को जनहित के कार्य करने के लिए धन उपलब्ध कराएं। रामेश्वर उरांव ने गत दिनों एक बयान दिया जो बहुत चर्चित हो रहा है। मंत्री जी ने कहा कि रांची की जमीन दूसरे लोगों के हाथों चली गयी है।

खुलकर कहें तो वित्तमंत्री रामेश्वर उरांव का आरोप है कि रांची में बिहार के लोग और मारवाड़ी बस गये हैं। इनके चलते आदिवासी कमजोर हो गये हैं। रामेश्वर उरांव का जब यह बयान आया उसी समय पता चला कि झारखंड की सरकार को विकास कार्यो के लिए जो बजट मिला था उसे खर्च ही नहीं किया गया। सरकार बजट का पैसा नहीं खर्च कर पाती और रोना इस बात का है कि बाहरी राज्यों के लोग आ गये है जो आदिवासियों के हिस्से का माल खा रहे हैं। सरकार अपनी गलती किसी और के सिर मढ़ रही है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कोल आवंटन में विसंगति का आरोप लगा रहे थे लेकिन राज्य में खुले आम कोयले की तस्करी होती रहती है।

वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए झारखंड का कुल बजट 86 हजार 370 करोड़ रुपये का था। इसमें से 48924.96 करोड़ विभिन्न विभागों के विकास योजनाओं पर खर्च करने का प्रावधान किया गया। लेकिन अबतक मात्र 1900 करोड़ ही खर्च हो पाये हैं। झारखंड सरकार इनदिनों नये वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए बजट की तैयारी में जुटी है। आगामी 3 मार्च को विधानसभा में नया बजट पेश किया जाएगा। इससे पहले चालू वित्तीय वर्ष में हुए खर्चो का लेखा- जोखा भी विभाग के अंदर चल रहा है अधिकांश विभाग बजट में आवंटित विकास योजनाओं के प्रावधान के अनुरूप खर्च करने में फेल रहे हैं।

राज्य सरकार ने 2020-21 के बजट में 48924.96 करोड़ रुपये विकास योजनाओं पर खर्च करने का प्रावधान किया था, मगर दुखद पहलू यह है कि उत्पाद, खेल एवं कला संस्कृति, माइंस सहित सरकार के कई ऐसे विभाग हैं, जिसमें अबतक 10 फीसदी से भी कम खर्च हुए हैं। हालत यह है कि राज्य का सबसे महत्वपूर्ण विभाग माइंस के भूगर्भ निदेशालय को आवंटित 18 करोड़ में से मात्र 1.5 करोड़ रुपये ही खर्च हुए। हालांकि सर्वाधिक खर्च स्वास्थ्य विभाग में 60 प्रतिशत, ग्रामीण विकास में 54 प्रतिशत अबतक हुआ है। मगर खेल एवं कला संस्कृति में 5 फीसद, परिवहन विभाग में 4.9 फीसद खर्च हुए हैं।

विभागीय अधिकारी खर्च में कमी की मुख्य वजह कोरोना महामारी को बता रहे हैं उनकी दलील है कि सरकार स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास योजनाओं को प्राथमिकता दे रही है। विभागवार विकास योजनाओं पर हुए खर्च को देखें तो स्कूली शिक्षा- 5410.55 करोड़ रुपये आवंटन में से 2260 करोड़ खर्च, स्वास्थ्य विभाग- 3022.89 करोड़ में से 1813.31 करोड़ रुपये खर्च हुए। उत्पाद विभाग- 10 करोड़ में से मात्र 1 करोड़ खर्च, कृषि विभाग- 3362.78 करोड़ में से 171.09 करोड़ खर्च हुए। ग्रामीण विकास- 10744.71 करोड़ रुपये आवंटन में से 5443.38 करोड़ खर्च हो पाये है।

वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए झारखंड का कुल बजट 86 हजार 370 करोड़ रुपये का था। इसमें से 48924.96 करोड़ विभिन्न विभागों की विकास योजनाओं पर खर्च करने का प्रावधान किया गया था। मगर कोरोना और सरकारी विभागों के उदासीन रवैया के कारण अबतक मात्र 1900 करोड़ ही खर्च हो पाये। इसमें सबसे आगे शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास है। वैसे ये हाल हर साल का है. राज्य में बजट के अनुरूप पैसा खर्च नहीं हो पाता है। जिसके कारण भारी भरकम राशि सरेंडर हो जाती है हालांकि इस साल कोरोना बड़ा कारण माना जा सकता है।

झारखंड में कोयले का काला कारोबार भी बदस्तूर जारी है। रामगढ़ टू रांची हाईवे इस काले कारोबार का कॉरिडोर बना हुआ है। हर दिन 500 से ज्यादा साइकिल के सहारे कोयले का ये अवैध कारोबार फल-फूल रहा है। मजेदार बात ये है कि इस कारोबार में पुलिस की अहम भूमिका है. बगैर घूस के एक भी साइकिल का रांची में प्रवेश नामुमकिन है।

रामगढ़- रांची एनएच-33 पर सरपट दौड़ती गाड़ियों के बीच साइकिल पर धड़ल्ले से जारी कोयले के अवैध कारोबार का नजारा आपको रोज देखने को मिल जाएगा। दिनभर में 500 से अधिक साइकिल और 200 के करीब मोटरसाइकिल कोयले की अवैध ढुलाई में लगे रहते हैं। एक साइकिल पर 15 से 30 बोरी कोयले की ढुलाई की जाती है। वजन में बात करें तो 2 क्विंटल कोयला लदा होता है इन बोरियों को रांची में लाकर बेचा जाता है। जहां 15 बोरी कोयले की कीमत 2 हजार रुपये और 30 बोरी के लिए 3500 रुपये मिल जाते हैं।

कोयले के इस अवैध कारोबार में शामिल एक साइकिलवाले ने बताया कि उनसे हाईवे के किनारे स्थित बड़े होटलवाले कोयला खरीदते हैं। होटलवाले ट्रकों के सहारे दूसरे राज्यों में कोयला भेजते हैं. प्रति साइकिल पुलिस को सौ रुपया पहुंचाया जाता है। कोयले का ये अवैध कारोबार कुछ इस तरह से चलता है। पहला ग्रुप बंद खदान से कोयले के अवैध उत्खनन करते हैं। दूसरा, इस कोयले को कच्चा से पोड़ा बनाने का काम करता है तीसरा, तैयार कोयला को साइकिल और मोटरसाइकिल के सहारे होटलों तक पहुंचाता है। चौथा ग्रुप कोयले के इस कारोबार में दलाली करता है, यानी खुद की हिस्सेदारी के साथ-साथ पुलिस को मैनेज करता है।

रामगढ़ के रजरप्पा और कुज्जू से कोयले की ये छोटी-छोटी खेप रांची के बाजारों में पहुंचती है। बीच में पड़ने वाली 7 किमी लंबी रामगढ़ घाटी में कोयले लदे साइकिल को मोटरसाइकिल से टोचन कर घाटी पार कराया जाता है। इसके लिए मोटरसाइकिल वालों को तय रकम दी जाती है। झारखंड में सरकार चाहे किसी की भी हो, लेकिन कोयले का ये कारोबार कभी बंद नहीं होता। कभी-कभी ऊपर के दबाव के चलते कारोबार का तरीका बदलना पड़ता है लेकिन सालों से जारी ये अवैध कारोबार कभी रुकता नहीं है। ऐसे हालत में झारखंड की राजधानी रांची के बारे में प्रदेश के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव का बयान इन दिनों चर्चा में है। मंत्री उरांव ने कहा है कि रांची की जमीन दूसरे लोगों के हाथों में चली गयी है।

मंत्री ने कहा कि राजधानी रांची में बिहार के लोग भर गए हैं और मारवाड़ी लोग बस गए हैं। इसके चलते आदिवासी कमजोर हो गए हैं और इसी कारण उनका शोषण हो रहा है। मंत्री उरांव बीते दिनों प्रेस क्लब में आयोजित एक कांफ्रेंस में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे। इस कार्यक्रम में उन्होंने रांची में बाहरी लोगों को लेकर बयान दिया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मंत्री उरांव ने कहा कि कभी रांची में आदिवासियों का निवास था।

शहर के अंदर बसे कई प्रमुख टोला-बस्ती समेत कई इलाके का नाम उन्हीं के द्वारा दिया गया है। वे इलाके और उसका नाम तो हैं, लेकिन अब वहां आदिवासी नहीं रहते हैं। झारखंड में आदिवासियों के कमजोर होने की वजह से आदिवासियों का शोषण हो रहा है जनजातीय सामुदायिक व्यवस्था समाप्त हो रही है। शहरों से आदिवासी हटते जा रहें हैं शहरीकरण में आदिवासी कमजोर हो गए हैं। सरकार के स्तर से आदिवासियों की मदद के लिए प्रयास हो रहा है।

मंत्री उरांव ने इंफाल का उदाहरण देते हुए का कि वहां की व्यवस्था आदिवासियों के हाथ में रहने की वजह से इंफाल बचा हुआ है, लेकिन रांची के मामले मे ठीक इसके उलट हो गया है। गांव में रहने वाले आदिवासियों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने का सरकार प्रयास कर रही है। राज्य में अगर वन कानून का सही तरीके से पालन हो तो गांव के लोगों को कभी भी आर्थिक तंगी नहीं होगी और न ही उन्हें काम की तलाश में दूसरे स्थान पर जाने की जरूरत होगी। उरांव जी। शिकायत किससे कर रहे हों, सरकार तो आपकी है। (हिफी)

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