कभी नहीं मिटता होली गीतों का रंग

लखनऊ। होली रंगों का त्योहार है। अबीर-गुलाल और गीले रंग से सराबोर लोग एक दूसरे से गले मिलते हुए कहते थे, होली है भाई होली है.... पिछले साल भी इसी होली के आने तक हमारे देश मंे कोरोना जैसी महामारी ने दस्तक दे दी थी। इसके बाद पूरे साल हम लोगों ने ऐसी त्रासदी झेली है, जिसको याद करके झुरझुरी आ जाती है। सर्दियां खत्म होते कुछ राहत दिखाई पड़ रही थी लेकिन होली से पहले भी संक्रमण ने जोर पकड़ लिया है। इसलिए दो गज की दूरी से ही त्योहार मनाने मंे भलाई है। होली की उमंग होली गीतों मंे भी भरी रहती है। होली गीतों का रंग तो कभी फीका नहीं पड़ता और कोरोना गाइड लाइन का पालन भी होता रहता है। होली के त्योहार पर सभी साहित्यकारों ने कलम चलायी है। यहां पर हम उनकी कविताओं के रंग-गुलाल से ही होली मना रहे हैं।
शिशिर मधुकर लिखते हैं-
जब प्रेम टपकता हो आँखों से
और एक आकर्षण हो बोली में
तब ही तो आनंद है आता
प्रीतम प्रिया की होली में
जब रंग लगाती है गोरी
दोनों हाथों से माथे पे
कह देती है साजन से वो सब
जो कह ना पाती वो बातों में
प्रीतम भी अपनी प्रिया की
मन की बात सुन लेता है
उसके गालों पे रंग लगा
सारी सहमति दे देता हैं
भावों की इस बातचीत से
मन को ठंडक जो मिलती है
वो तो कभी नहीं मिलती
माथे पे चन्दन रोली से
जब प्रेम टपकता हो आँखों से
और एक आकर्षण हो बोली में
तब ही तो आनंद है आता
प्रीतम प्रिया की होली में
मधुकर एक अन्य गीत में कहते हैं-
आज है पावन, प्यारा प्यारा, होली का त्यौहार
जिस में दुश्मन भी मिल के गले, बन जाते है सच्चे यार
रंग लगाकर एक दूसरे के, रंग में सब रंग जाते हैं
मस्ती में फिर झूम झूम के, गीत खुशी के गाते हैं।
आज है पावन, प्यारा प्यारा, होली का त्यौहार।
इस त्यौहार की बात निराली, जीजा को रंगती है साली
माफ नहीं कोई किसी को करता, चाहे दे कोई कितनी गाली
भाभियों को तो लगता है ये डर, कि रंगने आएगा देवर
हो कितनी भी नोक झोंक, पर मिटता नहीं है दिल का प्यार।
आज है पावन, प्यारा प्यारा, होली का त्यौहार।
कहने को तो मैं भी खेला, खूब रंग इस बार
पीने को तो पी भी मैंने, एक नहीं कई बार
हँसने को तो हँसा बहुत, पर खुशी नहीं थी यार
शायद ये सब छुपा हुआ था, मन का कोई गुबार।
आज है पावन, प्यारा प्यारा होली का त्यौहार।
कवि गुरुचरन मेहता भी होली में शब्दों की पिचकारी फेंकते हैं-
चढ़त फगुनवा में मोर मन बसिया,
भर के गुलाल मारें मोर रंग-रसिया।
आईल होली के त्योहार, रंग छाइल बा हजार,
भंगवा घोर बार बार, आज रंग द।।
गोझिया से कुल जहाँ सोना सोना महके,
धीरे धीरे पिय राजा, भंगवा न सरके।
जे न लीही चटकार, कर चुए लागी लार,
भंगवा घोर बार बार, आज रंग द।।
गुरुचरन मेहता सीख भी देते हैं-
नफरत की लाठी टूटेगी -आँखें खोलेगी जनता भोली
तब आयेगी सच्ची होली- तब आयेगी सच्ची होली
जब खेलेंगे हम प्रेम ठिठोली, तब आयेगी सच्ची होली
जब न होंगे बेरोजगार, जब न होगा भ्रष्टाचार
जब न होगा जुर्म कहीं पर, जब न होगा आत्याचार
जब न होगा रंग में भंग फैलाएगा न यहाँ कोई भी झोली
तब आयेगी सच्ची होली- तब आयेगी सच्ची होली
क्या हिन्दू क्या मुसलमान, जब न होगा कत्ले आम
हर दिल में जब होगा राम, दिल बोलेगा एक ही नाम
बच्चे वैर भाव छोड़ कर, खेलंगे जब आँख-मिचोली
तब आयेगी सच्ची होली, तब आयेगी सच्ची होली
जब न कोई रावण होगा, जब न चीर हरण होगा
जब आयेंगे कृष्ण धरती पर, जब न कोई दुशासन होगा
पिचकारी से छुटे रंग, चल न जाये कहीं पर गोली
तब आयेगी सच्ची होली, तब आयेगी सच्ची होली
जब न होगा शिक्षा अभाव, जब भरेगा देश का घाव
जब न होगा दंगा उत्पात, जब न होगा आत्मघात
जब न लुटी जायेगी, सरे बाजार किसी की डोली
तब आयेगी सच्ची होली, तब आयेगी सच्ची होली
जब न होगा लक्ष्य दीप बुझाना, जब न बनेंगे गरीब निशाना
जब न आयेगी दर्द बाढ़ की, जब न होगा ताना-बाना
जब होगा हर दिल में रंग, खेलेंगे सब बन हमजोली
तब आयेगी सच्ची होली, तब आयेगी सच्ची होली
छायेंगी जब घटाएं निराली, भारत होगा वैभवशाली
नाचेगी हर डाली डाली, चारों ओर होगी खुशहाली
प्यार के रंग में रंग जायेंगे, सब बोलेंगे प्यार की बोली
तब आयेगी सच्ची होली, तब आयेगी सच्ची होली
नफरत की लाठी टूटेगी -आँखें खोलेगी जनता भोली
तब आयेगी सच्ची होली- तब आयेगी सच्ची होली
राधा-श्याम संग खेले होली
बृज की होली तो सभी को राधा-कृष्ण बना देती है। कवि मुरारका कहते हैं-
मोहे न रंग डालो श्याम प्यारे
अंगिया भीगी, मरी जाउं लाज के मारे
संखिया इतराये, देख रास-रंग के नजारे
मोहे न रंग डालो श्याम प्यारे
गौरा रंग मेरा,श्याम तुम काले
तेरे रंग में रंगी,रंग नया क्या डाले
फागुन बैरी, मस्त बयार जो चले
कान्हा तेरी बांसुरी बोले बोल अनबोले
महका महुआ, पलाश की फैली रंगोली
राधा का दिल धड़के, नयनों की बोली
कान्हा का रास रसे ,राधा की प्रीत चली
मिटे दूरी,राधा-श्याम संग खेले होली।
इसी प्रकार शिवदीन राम जोशी कहते हैं-
बृजबाला और गुवाला नन्दलाल के लगे हैं संग,
गड्वन में रंग घोल गेरत वह गोरी रे।
मारत पिचकारी तान-तान के कुंवर कान्ह,
मची धूम धाम नची अहीरों की छोरी रे।
चंग पे धमाल गावे स्वर में स्वर मिला के सखी,
कहता शिवदीन धन्य, आज वही होरी रे।
झूम-झूम झूमे,श्यामा श्याम दोउ घूमें,
अनुपम रंग राचे कृष्ण नाचे यें किशोरी रे।
होरी का आनंद नन्द, नन्दलाल द्वार-द्वार,
रंग की पिचकारी व गुलाल लाल-लाल है।
रसिया के रसिक कृष्ण, गाय रहे बंसी में,
सुन-सुन के दौड़-दौड़ आय गये गुवाल है।
गोपिन का झमेला, राधे पारत प्रेम हेला,
डारत रंग-रंग, गले प्रेम पुष्प माल है।
कहता शिवदीन लाल, राधे कृष्ण गुवाल बाल,
कर में गुलाल लाल, नांचत गोपाल है।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त भी होली के रंग में डूबे।
जो कुछ होनी थी, सब होली!
धूल उड़ी या रंग उड़ा है,
हाथ रही अब कोरी झोली।
आँखों में सरसों फूली है।
सजी टेशुओं की है टोली। (हिफी)





