चुनाव आयुक्त पर सुप्रीम सवाल

चुनाव आयुक्त पर सुप्रीम सवाल

नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी अदालत अर्थात् सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग जैसी महत्वपूर्ण संस्था पर सवाल उठाया है। मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति को लेकर लगभग 32 साल से सवाल उठ रहे हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित कई लोगों ने चुनाव आयोग समेत संवैधानिक निकायों में नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हमें टीएन शेषन जैसा चीफ इलेक्शन कमिश्नर (सीईसी) चाहिए। इसलिए एक ऐसी प्रणाली स्थापित करनी होगी जिससे सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को सीईसी के रूप में चुना जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने टीएन शेषन का नाम लेकर यह संकेत भी दे दिया कि बाद में जो भी मुख्य चुनाव आयुक्त तैनात किये गये, उन्होंने उन अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया है जो चुनाव आयोग के लिए टीएन शेषन ने की थी। सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रणाली में सुधार की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही है। चुनाव आयोग पर कई तरह के दबाव भी हैं। मसलन अभी हाल ही में चुनाव आयोग की एक विधायक की अयोग्यता की अवधि को हटाने या कम करने की शक्ति को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी है। राजनीेतिक दलों को लेकर भी चुनाव आयोग के अधिकार सीमित हैं। विपक्षी दल चुनाव की घोषणा को लेकर भी चुनाव आयोग पर आरोप लगाते हैं कि आयोग केन्द्र सरकार के इशारे पर काम कर रहा है। इस प्रकार के सवाल उठने ही नहीं चाहिए, यह सुप्रीम कोर्ट चाहता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संविधान ने मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के नाजुक कंधों पर भारी शक्तियां निहित की हैं और यह महत्वपूर्ण है कि मजबूत चरित्र वाले व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमीनी स्थिति खतरनाक है और वह दिवंगत टी एन शेषन जैसा सीईसी चाहती है, जिन्हें 1990 से 1996 तक चुनाव आयोग के प्रमुख के रूप में महत्वपूर्ण चुनावी सुधार लाने के लिए जाना जाता है। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रणाली में सुधार की मांग वाली एक याचिका पर न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही थी। इस पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि उसका प्रयास एक प्रणाली को स्थापित करना है ताकि सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को सीईसी के रूप में चुना जा सके।

अदालत ने कहा कि अब तक कई सीईसी रहे हैं, मगर टीएन शेषन जैसा कोई कभी-कभार ही होता है। हम नहीं चाहते कि कोई उन्हें ध्वस्त करे। तीन लोगों (सीईसी और दो चुनाव आयुक्तों) के नाजुक कंधों पर बड़ी शक्ति निहित है। हमें सीईसी के पद के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति खोजना होगा। अदालत ने केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा, महत्वपूर्ण यह है कि हम काफी अच्छी प्रक्रिया अपनाएं, ताकि सक्षमता के अलावा मजबूत चरित्र वाले व्यक्ति को सीईसी के रूप में नियुक्त किया जा सके।

इसके जवाब में सरकार के वकील ने कहा कि सरकार योग्य व्यक्ति की नियुक्ति का विरोध नहीं करने जा रही है, लेकिन सवाल यह है कि यह कैसे हो सकता है। उन्होंने कहा, संविधान में कोई रिक्तता नहीं है। वर्तमान में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर की जाती है। पीठ ने कहा कि 1990 के बाद से भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित कई लोगों ने चुनाव आयोग सहित संवैधानिक निकायों में नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग की है। अदालत ने कहा, लोकतंत्र संविधान का एक बुनियादी ढांचा है। इस पर कोई बहस नहीं है। हम संसद को भी कुछ करने के लिए नहीं कह सकते हैं और हम ऐसा नहीं करेंगे। हम सिर्फ उस मुद्दे के लिए कुछ करना चाहते हैं, जो 1990 से उठाया जा रहा है। जमीनी स्थिति चिंताजनक है। हम जानते हैं कि सत्ता पक्ष की ओर से विरोध होगा और हमें मौजूदा व्यवस्था से आगे नहीं जाने दिया जाएगा। अदालत ने साथ ही कहा कि वह यह नहीं कह सकती कि वह असहाय है।

कोर्ट ने यह टिप्पणी, केंद्र द्वारा सीईसी और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली दलीलों का एक समूह द्वारा कड़ा विरोध करने पर की है।

ध्यान रहे सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की एक विधायक की अयोग्यता की अवधि को हटाने या कम करने की शक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने एनजीओ लोक प्रहरी की ओर से पेश एसएन शुक्ला से पूछा था कि धारा 11 में क्या बुरा है? संसद को ही लगा कि चुनाव आयोग को शक्ति सौंपी जा सकती है। शुक्ला ने अपनी ओर से कहा कि इस प्रावधान को या तो रद्द कर दिया जाना चाहिए या इसकी फिर से व्याख्या की जानी चाहिए क्योंकि यह अत्यधिक प्रतिनिधिमंडल के दोष से ग्रस्त है। इसके बाद कोर्ट ने मामले का परीक्षण करने का फैसला किया और केंद्र व अन्य से जवाब मांगा। अब इस मामले पर पांच दिसंबर को सुनवाई की जाएगी। याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (1), (2) और (3) और 9 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है। ये प्रावधान अयोग्यता की अवधि को दोषसिद्धि की तारीख से केवल छह वर्ष तक सीमित करती है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के कामकाज में पारदर्शिता को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के संविधान पीठ ने इस याचिका को लेकर केंद्र से कई सवाल किए। अदालत ने सरकार से पूछा कि 2007 के बाद से सभी मुख्य चुनाव आयुक्तों के कार्यकाल कम क्यों हो रहे हैं। 2007 के बाद से सभी मुख्य चुनाव आयुक्तों के कार्यकाल में कटौती क्यों की गई है? शीर्ष अदालत ने कहा कि हमने ये यूपीए के तहत और वर्तमान सरकार के तहत भी देखा है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति में संसद को सुधार लाने की जरूरत है। ये चुनाव आयोग के कामकाज को प्रभावित करता है। साथ ही चीफ इलेक्शन कमिश्नर की स्वतंत्रता को भी प्रभावित करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि 2007 से मुख्य चुनाव आयुक्तों के कार्यकाल में कटौती क्यों की गई, जबकि 1991 के अधिनियम के तहत पद धारण करने वाले अधिकारी का कार्यकाल छह साल का है। इसके परिणामस्वरूप कई सीईसी अपने परिकल्पित कार्यों को पूरा करने में असमर्थ हैं। इस तरह के सवालों को ही सुप्रीम कोर्ट ने फिर उठाया है।

जस्टिस जोसेफ कहते हैं हमें सबसे अच्छे आदमी की जरूरत है और इस पर कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। जस्टिस जोसेफ ने उल्लेख किया कि कैसे 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन चुनावी प्रणाली को साफ करने में कामयाब रहे थे। (हिफी)

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