हरीश रावत का सियासी दांव

हरीश रावत का सियासी दांव

देहरादून। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के लगभग एक साल पहले ही कांग्रेस में कुर्सी दौड़ शुरू हो गयी है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस खेल में बहुत माहिर हैं। वे पंडित नारायण दत्त तिवारी से तो हार गये थे लेकिन विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाकर ही दम लिया। हरीश रावत और उनके समर्थक आज इस बात को स्वीकार करने में भले ही झिझक दिखाएं लेकिन कुर्सी के जिस मोह ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरा दी और पार्टी को जर्जर कर दिया, वही मोह उत्तराखंड में कांग्रेस की बदहाली के लिए जिम्मेवार है।कांग्रेस चुनाव हारी लेकिन एक दूसरे की टांग खींचने की आदत नहीं छोड़ पायी है।

यही कारण है कि सीएम चेहरे को लेकर कांग्रेस के भीतर अभी से घमासान शुरू हो गया है। आश्चर्य यह कि 2017 के चुनाव में कांग्रेस का चेहरा हरीश रावत थे, लेकिन वे कांग्रेस की नैया पार लगाने में सफल नहीं हो पाए। विपक्ष में बैठने के बाद भी कांग्रेस में गुटबाजी खत्म नहीं हो पायी। एक गुट का नेतृत्व हरीश रावत ही करते रहे हैं। इस बार भी वे सीएम का चेहरा बनना चाहते हैं। कांग्रेस की ओर से बयान आया है कि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी चुनाव लड़ेगी, कोई चेहरा सामने नहीं रहेगा लेकिन हरीश रावत के समर्थकों की प्रतिक्रिया ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कांग्रेस के नेता हरीश रावत का भी कहना कि 2022 के लिए पार्टी को मुख्यमंत्री का चेहरा तय करना चाहिए। हरीश के इस बयान के बाद उनके समर्थक सामने आ गए , लेकिन हरीश रावत ने अब अचानक अपने बयान पर चुप्पी साध ली है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत ने 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अपना बड़ा बयान दिया है। पार्टी की रणनीति को लेकर हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्ट लिखी है जिससे सर्द मौसम में उत्तराखंड की सियासत गरमाना तय है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कांग्रेस आलाकमान से उत्तराखंड में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ी मांग की है। हरीश रावत ने अपनी सोशल पोस्ट में 2022 के लिए किसी भी नेता को सेनापति घोषित करने की मांग की है। उनका कहना है इससे पार्टी बेहतर फाइटिंग पोजिशन पर आ सकेगी। पूर्व सीएम हरीश रावत भले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हैं लेकिन वह राज्य की सियासत में खासे सक्रिय रहते हैं। कई दफा उनके राजनीतिक कार्यक्रमों को मिल रहा जन समर्थन पार्टी के प्रदेश नेतृत्व के लोगों को भी असहज कर देता है। ऐसे में हरीश रावत के 11 जनवरी को दिए गए सियासी बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं।


हरीश रावत ने उत्तराखंड में कांग्रेस के प्रभारी देवेन्द्र यादव को खत लिखा है। पत्र में हरीश ने लिखा कि आपके बयान ने मेरा मान बढ़ाया। हरीश रावत ही क्यों! प्रत्येक नेता व कार्यकर्ता के बिना 2022 की लड़ाई अधूरी है, पार्टी को बिना लाग-लपेट के 2022 के चुनावी रण का सेनापति घोषित कर देना चाहिए। पार्टी को यह भी स्पष्ट कर देना चाहिये कि कांग्रेस की विजय की स्थिति में वही व्यक्ति प्रदेश का मुख्यमंत्री भी होगा। उत्तराखंड, वैचारिक रूप से परिपक्व राज्य है। लोग जानते हैं, राज्य के विकास में मुख्यमंत्री की क्षमता व नीतियों का बहुत बड़ा योगदान रहता है। हम चुनाव में यदि अस्पष्ट स्थिति के साथ जाएंगे तो यह पार्टी के हित में नहीं होगा।

उन्होंने इसी पोस्ट में आगे लिखा है कि इससे गुटबाजी भी थमेगी। हरीश रावत का मानना है कि इस समय अनावश्यक कयासबाजियों तथा मेरा-तेरा के चक्कर में कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है एवं कार्यकर्ताओं के स्तर पर भी गुटबाजी पहुंच रही है। मुझको लेकर पार्टी को कोई असमंजस नहीं होना चाहिये, पार्टी जिसे भी सेनापति घोषित कर देगी, मैं उसके पीछे खड़ा रहूँगा और यथा आवश्यक सहयोग करूँगा। राज्य में कांग्रेस को विशालतम अनुभवी व अति ऊर्जावान लोगों की सेवाएं उपलब्ध हैं, उनमें से एक नाम की घोषणा करिये व हमें आगे ले चलिए।

कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव का चार दिनों का उत्तराखंड का दौरा 10 जनवरी को ही पूरा हुआ है। प्रभारी के लौटते ही दूसरे दिन हरीश रावत के इस सियासी बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। जानकार इसे हरीश रावत की पॉलिटिकल स्टाइल करार दे रहे हैं। वहीं हरीश रावत के बेहद करीबी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने हरीश रावत के बयान का समर्थन किया है। कुंजवाल ने कहा कि पार्टी जितनी जल्दी हो सके, चेहरा घोषित करे। कार्यकर्ताओं में कोई असमंजस की स्थिति न रहे।

इस प्रकार उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी उभर कर सामने आ गयी है। कांग्रेस ने जब कह दिया कि इस बार विधानसभा चुनाव में सीएम का चेहरा भी पार्टी होगी, कोई नेता नहीं, तब हरीश रावत नेता का नाम घोषित करने पर दबाव क्यों बना रहे हैं। हालांकि हरीश रावत के इस बयान पर पार्टी के पीसीसी चीफ प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के खेमे की राय सामने नहीं आयी है लेकिन कांग्रेस में सीएम फेस को लेकर बवाल मचा है। हरीश रावत के बयान से सियासी गर्मी बढ़ने लगी है। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से हरीश रावत को चेहरा नहीं बनाए जाने को लेकर पार्टी में अंदरूनी खींचतान भी तेज हो गयी है। जनता भी कहने लगी है कि उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव में तो अभी देर है, लेकिन सीएम चेहरे को लेकर कांग्रेस के भीतर अभी से घमासान शुरू हो गया है। ध्यान रहे कि 2017 के चुनाव में कांग्रेस का चेहरा हरीश रावत थे, लेकिन इस बार कांग्रेस की ओर से बयान आया है कि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी ही चेहरा होगी।

गौरतलब है कि 9 जनवरी को देहरादून में कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव, अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता विपक्ष की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई थी। इसमें देवेंद्र यादव ने साफ कर दिया कि इस बार पार्टी चुनाव लड़ेगी, कोई चेहरा नहीं होगा। यह बयान आने के बाद उत्तरराखंड में कांग्रेस के भीतर राजनीति अचानक तेज हो गई। यह बात पूर्व सीएम हरीश रावत और उनके समर्थकों को ठीक नहीं लगी। इसके अगले ही दिन हरीश रावत ने देवेंद्र यादव को सोशल मीडिया पर लेटर लिखा कि उत्तराखंड में कांग्रेस मुख्यमंत्री का चेहरा तय करके चुनाव लड़े।हरीश रावत के ऐसा कहते ही उनके समर्थक एक्टिव हो गए और कहा कि मुख्यमंत्री का चेहरा हरदा ही होने चाहिए। हरीश रावत का सोशल मीडिया पर बयान आते ही, देहरादून में हरीश रावत के घर मीडिया का जमावड़ा लग गया। फिर जब सवाल पूछा गया कि सेनापति कौन होना चाहिए, इस पर रावत सवाल से दूर भागते रहे। सूत्रों का दावा है कि मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने वाला हरदा का बयान, दिल्ली में हाई कमान तक पहुंचा है, जिस पर नाराजगी जताए जाने की खबरें हैं। वहीं प्रदेश कांग्रेस ने साफ कर दिया कि देवेंद्र यादव ने जो कहा वह सही है क्योंकि वो सोनिया गांधी और राहुल गांधी के प्रतिनिधि हैं। उत्तराखंड कांग्रेस में फिलहाल तीन बड़े चेहरे हैं- हरीश, इंदिरा और प्रीतम। प्रीतम और इंदिरा प्रदेश प्रभारी के साथ पहले ही ये बात कह चुके हैं कि चुनाव पार्टी लड़ेगी। (हिफी)

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