अब कैप्टन पर भारी पड़ रहा है किसान आंदोलन

अब कैप्टन पर भारी पड़ रहा है किसान आंदोलन

चंडीगढ़। राजनीति में इतिहास अपने आपको दोहराया करता है। पंजाब में कभी कांग्रेस को मजबूत करने के लिए इंदिरा गांधी ने ही भिंडरावाले को बढ़ावा दिया था। उसी भिंडरावाले को गिरफ्तार करने के लिए इंदिरा गांधी की सरकार ने आपरेशन ब्लू स्टार किया और अमृतसर के स्वर्ण में दिर में पहली बार सेना ने घुसकर कार्रवाई की। भिंडरावाले की मौत हो गयी लेकिन दो सिखों में इंदिरा गांधी के प्रति नफरत पैदा कर 31 अक्टूबर को उन्ही के अंगरक्षकों ने इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी। कुछ ऐसा ही इतिहास किसान आंदोलन को लेकर दोहराया जा रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुए किसान आंदोलन का समर्थन किया था। मुख्यमंत्री स्वयं ट्रैक्टर चलाकर आंदोलन के प्रति अपना समर्थन जता रहे थे लेकिन अब वही किसान उनके खिलाफ खड़े हो गये हैं। किसानों ने इसी महीने (6 मई) राज्य में लगाये गये लाॅकडाउन का विरोध किया था। इसे संभवतः पहली जून से हटा भी दिया जाएगा। इसके बावजूद किसानों का गुस्सा कायम है। वे कहते हैं कि सरकार ने कोरोना से बचने का पर्याप्त इंतजाम नहीं किया।

केंद्र की बीजेपी सरकार के बाद अब किसानों के निशाने पर पंजाब की कैप्टन सरकार भी आ गई है। कोरोना के बचाव के अधूरे इंतजाम और कैप्टन सरकार के अधूरे वायदों के खिलाफ भारतीय किसान यूनियन 3 दिन का धरना देने जा रही है। पटियाला में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के निवास के बाहर हजारों की संख्या में किसान धरना देंगे। सरकार पर विधानसभा चुनाव से पहले किए गए वादे पूरे करने का दबाव बनाएंगे।

भारतीय किसान यूनियन एकता (उग्रहां) के प्रधान जोगिंदर सिंह का कहना है कि कैप्टन सरकार ने कोरोना से बचाव के लिए जो करना चाहिए था और खेती कानूनों से किसानों को राहत दिलाने के लिए जो कदम उठाने चाहिए थे, वह नहीं उठाए। पंजाब में गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं का कोई इंतजाम नहीं है। कोरोना से बचाव के लिए पंजाब सरकार ने कोई तैयारी नहीं की। गांव और शहरों में लोगों की मौत हो रही है। अस्पतालों में न तो दवाइयां हैं और न ही पर्याप्त स्टाफ है।

जोगेंद्र सिंह का कहना है कि सरकार का फोकस सिर्फ लॉकडाउन लगाने पर हैं। जबकि कोरोना से बचाव के लिए अस्पतालों में स्टाफ और दवाइयों का इंतजाम करने में सरकार पूरी तरह से फेल साबित हुई है। उन्होंने कहा कि पंजाब में टोल प्लाजा और भाजपा नेताओं के घरों के बाहर किसानों के धरने लगातार चल रहे हैं और अब 2000 किसान मुख्यमंत्री कैप्टन के निवास के बाहर धरना देंगे। इस धरने में कोरोना से बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग के सभी नियमों का पालन किया जाएगा। पंजाब सरकार के मिशन फतेह पर निशाना साधते हुए जोगिंदर सिंह ने कहा कि पंजाब और केंद्र सरकार एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं, जबकि ऑक्सीजन, दवाइयों और मेडिकल स्टाफ की व्यवस्था करने में दोनों सरकारें पूरी तरह से नाकाम साबित हुई है। उन्होंने कहा कि पंजाब के गांव में सरकारी तौर पर स्वास्थ्य सुविधाओं का कोई इंतजाम नहीं है।कैप्टन सरकार के मेनिफेस्टो पर सवाल उठाते हुए जोगिंदर सिंह ने कहा कि जो सरकार कहती है कि वह अपने 85 फीसद वायदे पूरे कर चुकी है, वह बताएं... कि क्या किसानों का कर्ज माफ किया है, क्या किसानों को फसल के उचित दाम मिल रहे हैं, क्या हर घर से एक युवा को रोजगार दे पाई है कैप्टन सरकार? अगर नहीं, तो सरकार ने कौन सा वादा पूरा किया है।

किसान नेता कहते हैं कि चाहे कांग्रेस हो या फिर भाजपा किसानों को अपने हकों की आवाज खुद बुलंद करनी होगी। किसानों को अपने हकों की लड़ाई के लिए स्वयं ही संघर्ष करना होगा। किसान हमेशा अपना हक हासिल करने के लिए संघर्ष करते रहेंगे। पिछले 6 महीने से चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में अब रोहतक की महिलाओं ने भी मोर्चा संभाल लिया है। रोहतक के आईएमटी चैक पर इन महिलाओं ने एक स्थायी धरना शुरू कर दिया है और उसका नाम रखा गया है पिंक धरना। इनका कहना है कि जो महिलाएं किसान आंदोलन के समर्थन में ज्यादा दूर नहीं जा सकतीं, उनके लिए यह मंच बनाया गया है और फिलहाल शुरुआत रोहतक से हुई है, धीरे-धीरे पूरे प्रदेश में इस तरह के धरने शुरू किए जाएंगे।

छब्बीस मई को किसानों ने काला दिवस मनाया और जगह-जगह सरकार के पुतले फूंके गए। रोहतक में भी कई जगह विरोध प्रदर्शन किया गया और किसानों के अलावा कई सामाजिक संगठनों ने काले झंडों के साथ अपना रोष प्रकट किया। आईएमटी चैक पर एक नए धरने की शुरुआत भी की गई, जिसमें विशेष बात यह रही कि इस धरने का संचालन महिलाएं करेंगी और नियमित तौर पर यह धरना चलता रहेगा।

धरने की संयोजक गीता अहलावत और अजय बल्हारा ने बताया कि जो महिलाएं किसान आंदोलन में शामिल होना चाहती हैं, लेकिन धरना स्थलों पर जाना उनके लिए संभव नहीं है। इसीलिए इस धरने की शुरुआत की गई है। कामकाजी महिलाएं इन धरनों का संचालन करेंगी और पूरी बागडोर उन्हीं के हाथ में रहेगी।

पूरे प्रदेश में धरने होंगे। किसानों के समर्थन में महिलाएं यहां खुलकर अपनी बात रख सकती हैं। बड़े धरनों पर महिलाओं को अपनी बात रखने में हिचकिचाहट महसूस होती थी, लेकिन अब उन्हें उनका मंच मिल गया है। अभी रोहतक से इसकी शुरुआत हुई है। आने वाले दिनों में पूरे प्रदेश में इस तरह के धरने शुरू किए जाएंगे। इस प्रकार किसानों का संघर्ष अब सिर्फ केन्द्र सरकार के साथ नहीं रह गया है, कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे रहवरों के साथ भी है, जो ट्रैक्टर पर बैठकर आगे-आगे चल रहे थे। (हिफी)

epmty
epmty
Top