नीतीश का राजनीतिक सन्यास

नीतीश का राजनीतिक सन्यास

पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा करके सियासी गलियारे में बहस छेड़ दी है। विधानसभा चुनाव के लिए आखिरी चरण का मतदान होने जा रहा था, तभी उन्होंने कहा कि यह मेरा अंतिम चुनाव है। लोग सोचते हैं कि नीतीश बाबू क्या सचमुच राजनीति से संन्यास ले सकते हैं? दूसरी तरफ बिहार की जनता की सहानुभूति लेने का भी यह बेहतर तरीका हो सकता है। इस प्रकार नीतीश बाबू का यह ट्रम्प कार्ड भी हो सकता है। संन्यास हमारे जीवन का अंतिम सोपान है और उससे पहले वानप्रस्थ जीवन बिताना पड़ता है जो भाजपा के आडवाणी जैसे लोग बिता रहे हैं। नीतीश बाबू के साथ ऐसा कुछ नहीं है लेकिन उन्हांने दांव खूब खेले भी हैं और उनके साथ भी दांव खेले जा रहे हैं। इस बार का समर काफी मुश्किल बताया जा रहा था। इसलिए संन्यास को भी एक सियासी दांव माना जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

बिहार में विधानसभा चुनाव प्रचार के आखिरी दिन 5 नवम्बर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़ा ऐलान कर दिया। उन्होंने पूर्णिया में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि यह मेरा अंतिम चुनाव है, अंत भला तो सब भला। अब नीतीश के इस बयान को चुनावी पंडित उनका आखिरी दांव मान रहे हैं तो विपक्षियों का कहना है कि नीतीश ने नतीजों से पहले ही सरेंडर कर दिया है। नीतीश कुमार का यह बयान बिहार में आखिरी चरण के मतदान से दो दिन पहले आया है। नीतीश कुमार ने ये बयान तब दिया है, जब दो चरण का मतदान हो चुका है और तीसरे चरण के लिए जोर आजमाइश चल रही है। माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने जनता के बीच आखिरी चुनाव का ट्रंप कार्ड फेंका है। नीतीश के इस बयान की वजह भी खास है। वैसे तो 15 साल से सूबे की सत्ता संभाल रहे नीतीश बिहार की राजनीति के धुरंधर नेता हैं। लेकिन इस बार के चुनाव में नीतीश को जगह-जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है। उनकी चुनावी रैलियों में लोगों ने कई बार जमकर उनका विरोध किया तो कई बार तो उन्हें निशाना भी बनाया गया। पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और आरजेडी साथ-साथ थे। तेजस्वी के साथ उनकी चाचा-भतीजे की जोड़ी थी, लेकिन इस बार तेजस्वी यादव ने महागठबंधन बनाकर नीतीश के खिलाफ जंग छेड़ रखी है। तेजस्वी पूरे चुनाव भर नीतीश कुमार पर जोरदार हमला बोलते रहे। नीतीश कुमार को थका हुआ करार तक दे दिया। हालांकि नीतीश कुमार ने तेजस्वी के इस सवाल पर बिना उनका नाम लिए चुनौती दे डाली कि उनके साथ जरा चलकर तो दिखाएं, फिर पता चलेगा कि कौन कितना थक गया है।

माना जा रहा है कि नीतीश कुमार को तेजस्वी ने इस बार रोजगार के मुद्दे पर घेर दिया। इस मुद्दे पर न सिर्फ नीतीश घिरे, बल्कि बीजेपी का राष्ट्रवाद भी हिचकोले खाने लगा है। राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी यादव हर रैली में बिहार के युवाओं को रोजगार देने का वादा करते रहे। यही नहीं तेजस्वी मुख्यमंत्री बनते ही 10 लाख युवाओं का नौकरी देने का वादा तक कर चुके हैं। नीतीश के खिलाफ सिर्फ विपक्ष ने मोर्चा नहीं खोला ही, बल्कि उन्हें तो अपने पुराने साथियों से भी दर्द ही मिला है। इस बार एनडीए में शामिल एलजेपी नेता चिराग पासवान भी नीतीश कुमार से दूर छिटक गए। करीब-करीब उन सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए, जहां से नीतीश की पार्टी जेडीयू चुनाव लड़ रही है। दावा भी किया कि अगली सरकार एलजेपी और बीजेपी की बनेगी। इसके विपरीत बीजेपी ने भी अब तक एलजेपी को लेकर सख्ती नहीं दिखाई है। सवाल यह है कि बिहार में दो चरणों के मतदान के बाद नीतीश कुमार ने आखिरी चुनाव का जो दांव खेला है, वो मतदाताओं पर कितना असर डाल पाया है। इस सवाल का जवाब तो 10 नवंबर को आने वाले नतीजों से ही पता चलेगा। लेकिन उससे पहले सात नवंबर को आखिरी चरण की 78 सीटों पर वोटिंग होना अभी बाकी है।

नीतीश कुमार जेपी आंदोलन से निकले नेता हैं। राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। दांव पेच, फायदा नुकसान वो बेहतर तरीके से समझते हैं। आखिरी चरण का चुनाव प्रचार थमने से ठीक पहले उन्होंने अपने आखिरी चुनाव का ऐलान कर दिया। अब ये सुशासन बाबू का दर्द है, दांव है या फिर सियासी सरेंडर, ये आने वाले चंद दिनों में सबके सामने होगा। बिहार में विधानसभा चुनाव प्रचार के आखिरी दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि ये उनका आखिरी चुनाव है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्णिया में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जान लीजिए आज चुनाव का आखिरी दिन है। और परसों चुनाव है। यह मेरा अंतिम चुनाव है। अंत भला तो सब भला।

नीतीश कुमार ने साल 1977 में अपना पहला चुनाव लड़ा था। उन्होंने नालंदा के हरनौत से चुनाव लड़ा। यहां से नीतीश कुमार चार बार चुनाव लड़े। जिसमें उन्हें 1977 और 1980 में हार मिली, जबकि 1985 में नीतीश कुमार ने साल 2004 में अपना आखिरी चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें नालंदा से जीत हासिल हुई थी। उसके बाद से नीतीश कुमार ने कोई चुनाव नहीं लड़ा। नीतीश कुमार ने साल 1972 में बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की। उन्होंने कुछ समय तक बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में नौकरी भी की। लेकिन जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं के संपर्क में आने के बाद नीतीश कुमार राजनीति के हो लिए। नीतीश कुमार 6 बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं। साल 2004 के बाद उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। नालंदा से सांसद रहे नीतीश कुमार नवंबर 2005 में छक्। के प्रदेश में सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा देकर बिहार विधान परिषद की सदस्यता ग्रहण की थी। नीतीश कुमार पिछले 15 साल से सत्ता पर काबिज हैं। वह जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के एक कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते हैं। नीतीश कुमार मूल रूप से नालंदा जिला के रहने वाले हैं और कुर्मी जाति से ताल्लुक रखते हैं। जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर जैसे नेताओं के साथ उन्होंने शुरुआती राजनीति की। फिर 1977 के जेपी आंदोलन में नीतीश ने सक्रिय भूमिका निभाई। नीतीश के समकालीन रहे आरजेडी के लालू यादव और बीजेपी के सुशील कुमार मोदी भी उसी समय जेपी आंदोलन में कूदे थे। बाद में नीतीश 1977 में जनता पार्टी में शामिल हो गए। नीतीश कुमार को 1991, 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में भी जीत मिली। वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कृषि मंत्री और फिर 1999 में कुछ समय के लिए रेल मंत्री भी रहे। पश्चिम बंगाल के घैसाल में 1999 में ट्रेन हादसे के दौरान 300 लोग मारे गए और नीतीश ने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद बिहार में जद(यू) के वे सिरमौर बन गये। बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरे चरण की वोटिंग से पहले प्रचार चरम पर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार को किशनगंज में रैली को संबोधित किया। उन्होंने यहां पर बड़ा बयान दिया। नीतीश कुमार ने कहा कि कुछ लोग दुष्प्रचार कर रहे हैं, कोई किसी को देश से नहीं निकाल सकता। नीतीश कुमार ने कहा कि कौन दुष्प्रचार करता रहता है। कौन किसको देश से बाहर निकालेगा। इस देश में किसी में दम नहीं है कि लोगों को बाहर कर दे। नीतीश अब पार्टी से ज्यादा समाज की बात करते हैं।

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