नीतीश ने साबित की कूटनीतिक दक्षता

नीतीश ने साबित की कूटनीतिक दक्षता

पटना। बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यू) (जेडीयू) के नेता नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में खास जगह बना ली है। यही कारण है कि राज्य के विधानसभा चुनाव में भाजपा की राज्य इकाई के विरोध के बावजूद नीतीश को ही एनडीए का चेहरा बनाया गया। भाजपा चाहती थी कि पीएम नरेन्द्र मोदी को चेहरा बनाया जाए लेकिन नीतीश और राज्य के मुख्य विपक्षी दल राजद के बीच प्रेम संबंध पनपने लगे थे और भाजपा नेतृत्व ने इसे भांप भी लिया था। इस बात को राज्य की जनता भी समझ गयी थी। उसी का नतीजा था कि विधानसभा में भाजपा ने जद(यू) से ज्यादा विधायक जुटा लिये।

यह बात नीतीश कुमार को अखर रही है और वे अपनी पार्टी को मजबूत करने का कूटनीतिक प्रयास कर रहे हैं। गत 14 मार्च को उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी का जद(यू) में विलय सोची-समझी कूटनीति का हिस्सा है। उपेन्द्र कुशवाहा भाजपा से नाराज हो गये थे। विधानसभा चुनाव से पहले कुशवाहा एनडीए का हिस्सा न बनने पायें, इसके लिए नीतीश ने मामले को ताने रखा और अब कुशवाहा को मजबूर कर दिया कि वे जद(यू) में अपनी पार्टी-राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय कर दें।


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा के जदयू में विलय के बाद रविवार को कुशवाहा को तत्काल प्रभाव से पार्टी के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाने की घोषणा की। पटना स्थित जदयू के प्रदेश मुख्यालय में आयोजित एक समारोह के दौरान जदयू में रालोसपा के विलय पर खुशी जाहिर करते हुए नीतीश ने उक्त घोषणा की। इससे पहले अपनी पुरानी पार्टी जदयू मुख्यालय पहुंचे कुशवाहा का नीतीश ने गुलदस्ता भेंट कर स्वागत किया। हाल ही में विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने से चूकी जदयू के प्रमुख नीतीश ने कहा कि चुनाव के बाद से इसको लेकर बातचीत चल रही थी।

कुशवाहा के अपने साथ आने पर नीतीश ने कहा, ''हम पहले भी साथ थे। अब भी हम एक हैं और एक साथ मिलकर प्रदेश और देश की सेवा करेंगे। इस अवसर पर जदयू के वरिष्ठ नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, संजय कुमार झा और वशिष्ठ नारायण सिंह तथा अब भंग हो गयी रालोसपा के नेता माधव आनंद और फजल इमाम मल्लिक भी उपस्थित थे। इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश के करीबी सहयोगियों में से एक अशोक चौधरी ने कहा कि इससे स्पष्ट है कि सभी यह समझ रहे हैं कि आगे का राजनीतिक भविष्य नीतीश कुमार के ब्रांड में ही है। हाल के दिनों में कई लोग दूसरे दल छोड़कर जदयू में शामिल हुए हैं। उपेंद्र कुशवाहा की वापसी एक और अध्याय जोड़ती है। भविष्य में कई और लोग भी इसका अनुसरण कर सकते हैं।


लोकदल के अलावा नीतीश के दल समता पार्टी और बाद में जदयू में रहे कुशवाहा जब 2004 में पहली बार विधायक बनकर आए तो कई वरिष्ठ विधायकों को नजरंअदाज करके नीतीश ने उन्हें बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाया था। नीतीश कुर्मी समाज से आते हैं वहीं कुशवाहा कोयरी समाज से हैं। ऐसी चर्चा रही है कि नीतीश ने यह कदम कुर्मी और कुशवाहा (लव-कुश) जातियों के साथ एक शक्तिशाली राजनीतिक साझेदारी को ध्यान में रखकर किया था। वर्ष 2013 में जदयू के राज्यसभा सदस्य रहे कुशवाहा ने विद्रोही तेवर अपनाते हुए जदयू से नाता तोड़कर रालोसपा नामक नई पार्टी का गठन कर लिया तथा 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा नीत राजग का हिस्सा बन गये। इस चुनाव बाद कुशवाहा नरेंद्र मोदी सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री बनाए गए थे। जुलाई 2017 में जदयू की राजग में वापसी ने समीकरणों को एक बार फिर बदल दिया और रालोसपा ने इस गठबंधन ने नाता तोड़कर राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा बन गए थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुशवाहा ने काराकाट और उजियारपुर लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार मिली।

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कुशवाहा ने महागठबंधन से नाता तोड़कर मायावती की बसपा और एआईएमआईएम के साथ नया गठबंधन बनाकर यह चुनाव लड़ा। विधानसभा चुनाव में रालोसपा प्रमुख कुशवाहा को उनके गठबंधन द्वारा मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किया गया था पर इनके गठबंधन में शामिल हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में जहां पांच सीट जीत पायी थी वहीं रालोसपा एक भी सीट जीतने में सफल नहीं रही थी।


नीतीश कुमार ने नीति आयोग की बैठक में बिजली के समान मूल्य की बात उठाई थी। कुमार ने कहा कि बिहार 2005 में केवल 700 मेगावाट बिजली का उपयोग करता था, लेकिन पिछले 15 वर्षों में परिदृश्य बदल गया है और राज्य में जून 2020 में 5,990 मेगावाट बिजली की खपत हुई है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार पहली बार नवंबर 2005 में राज्य में सत्ता में आई थी। उन्होंने कहा कि बिहार को अधिक दर पर बिजली मिलती है और राज्य सरकार को बिजली वितरण कंपनियों को अधिक अनुदान देना पड़ता है ताकि लोगों को किफायती दर पर बिजली मिले।

अब कुशवाहा से दोस्ती की जड़ में है बिहार विधानसभा का परिणाम। जहां नीतीश कुमार के 15 सालों के कामकाज के बाद भी राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गये वहीं उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी का खाता भी नहीं खुला। हालांकि उनके गठबंधन में शामिल एक विधायक जीते जरूर लेकिन वो अब जनता दल यूनाइटेड में शामिल होकर नीतीश मंत्रिमंडल में मंत्री हैं। नीतीश कुमार को उपेन्द्र कुशवाहा की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना उनकी राजनीतिक मजबूरी हैं क्योंकि जिस लव-कुश मतलब कुर्मी कोयरी जाति के असल आधार पर वह सत्ता में राज कर रहे थे उसमें दरार डालने में उपेन्द्र कुशवाहा कम से कम पिछले विधानसभा चुनाव में कामयाब रहे। खुद नीतीश समर्थक मानते हैं कि कम से कम पंद्रह सीटों पर नीतीश कुमार के प्रत्याशियों के हार के कारण कुशवाहा के उम्मीदवार बने।


दूसरा, नीतीश जानते हैं कि वो चाहे भाजपा से दो-दो हाथ करना हो या तेजस्वी से। उनकी अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के मुकाबले उपेन्द्र कुशवाहा उनके लिए अधिक मददगार साबित हो सकते हैं, क्योंकि उन्होंने बिहार की राजनीति में एक अलग पहचान बनाई है। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह जरूरत से ज्यादा प्रो बीजेपी लाइन लेकर चलते हैं, जिससे नीतीश कुमार को भी राजनीतिक नुकसान सहना पड़ जाता हैं और न ही वह जनता के बीच एक अच्छे वक्ता के तौर पर जाने जाते हैं। जहां तक उपेन्द्र कुशवाहा का सवाल है, तो वह मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और ये राजनीतिक सपना नीतीश के अलावा कोई पूरा नहीं करेगा इसलिए उनके पास भी अब अधिक विकल्प नहीं बचे हैं।

उन्होंने भाजपा से लेकर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस सबके साथ राजनीति करने के बाद ये कटु सच जान लिया है। दूसरी तरफ उनके समर्थक जिस रफ्तार से पार्टी छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम रहे थे, वैसे में अपना कुनबा बचाने के लिए उनके पास नीतीश शरणम् गच्छामी के अलावा और क्या चारा बचा था। (हिफी)



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