ममता का युद्ध अभी जारी है

ममता का युद्ध अभी जारी है

कोलकाता। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने भले ही पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया और ममता बनर्जी मुख्यमंत्री भी बन गयीं लेकिन वह नंदीग्राम से चुनाव हार गईं। राज्य में एक सदन की ही व्यवस्था है। ऐसे में 6 महीने के अंदर उनको चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचना जरूरी है, वरना उनके हाथ से सीएम पद की कुर्सी चली जाएगी। ममता बनर्जी ने विधान परिषद को बहाल करने का प्रस्ताव केन्द्र सरकार के पास भेजा है लेकिन चुनाव में पराजय से तिलमिलाई भाजपा ममता बनर्जी को चैन नहीं लेने देगी। ममता बनर्जी का जन्म शायद संघर्षों के लिए ही हुआ। हर चैलेंज को आगे बढकर स्वीकारती हैं। नंदीग्राम में चुनाव भी इसी जज्बे के चलते लड़ा, भले ही वहां की राजनीति पर वर्चस्व जमाये शुभेंदु अधिकारी से पराजित हो गयीं। इस बीच 21 मई को बंगाल में बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम हुआ, जहां भवानीपुर सीट से टीएमसी विधायक शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने इस्तीफा दे दिया। अब इस सीट से टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी चुनाव लड़ेंगी, क्योंकि ये उनकी पारंपरिक सीट रही है। ममता से रूठे हुए नेता फिर से उनकी शरण में आना चाहते हैं लेकिन साधु संतों से लेकर अदालत तक ममता के सामने परेशानियां खड़ी कर रही हैं। अयोध्या के एक संत ने आत्मदाह की धमकी दे दी तो हाईकोर्ट ने भी चुनाव बाद हुई हिंसा पर कड़ा रुख अपनाया है। इन हालात के बीच ममता बनर्जी फिर से विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही हैं और भाजपा उनके खिलाफ तुरुप का इक्का तलाश रही है।

दरअसल बंगाल की कुछ सीटों पर अभी चुनाव बाकी हैं, लेकिन टीएमसी के बड़े नेता चाहते हैं कि ममता बनर्जी वहां से न लड़कर भवानीपुर में वापसी करें। ऐसे में टीएमसी सुप्रीमो ने भी भवानीपुर से चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। इसी के चलते विधायक शोभनदेव ने स्पीकर बिमान बनर्जी के पास पहुंचकर अपना इस्तीफा सौंपा। मामले में स्पीकर ने कहा कि मैंने विधायक से पूछा कि वो स्वेच्छा से इस्तीफा दे रहे या उन पर किसी तरह का दबाव है, जिस पर शोभनदेव ने स्वेच्छा से पद छोड़ने की बात कही। इस वजह से उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हालांकि 17 मई, 2021 को कई विभागीय सचिवों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई कैबिनेट बैठक के दौरान राज्य में विधान परिषद की फिर से स्थापना को मंजूरी दी। यह कदम तृणमूल कांग्रेस के चुनावी वादों में से एक था। हालांकि, राज्य में विधान परिषद की पुनस्र्थापना के लिए देश की संसद से अनुमोदन की आवश्यकता होगी। केंद्र के साथ मुख्यमंत्री की हालिया झड़पों को देखते हुए, पश्चिम बंगाल के लिए केंद्र की मंजूरी हासिल करना मुश्किल हो सकता है। संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत, देश के किसी भी राज्य में विधान परिषद की स्थापना के प्रस्ताव को संसद में एक निश्चित बहुमत से पारित करना होता है। पश्चिम बंगाल के उच्च सदन, विधान परिषद को 1969 में वाम दलों की गठबंधन सरकार द्वारा समाप्त कर दिया गया था क्योंकि इसे अभिजात्यवाद का प्रतीक माना जाता था।वर्तमान में, हमारे देश के छह राज्यों- महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और बिहार में विधान परिषदें हैं। देश में वर्ष, 1935 में स्वतंत्रता से पहले, द्विसदनीय विधायिकाओं की स्थापना की गई थी।

वर्ष, 1937 में पश्चिम बंगाल में पहली बार विधान परिषद अस्तित्व में आई थी। विधान परिषदें और राज्य सभा भले ही उच्च सदन माने जाते हैं लेकिन राजनीतिक दल इनका उपयोग चोर दरवाजे की तरह करते हैं। चुनाव में जनता जिसे नकार देती है, पार्टी इन्हीं दरवाजों से सदन में भेज देती है। ममता बनर्जी के बारे में यह नहीं कहा जा सकता। वे चोर दरवाजे से कोई काम नहीं करतीं। इसीलिए अब कई नेता उनकी पार्टी में वापस आना चाहते हैं।बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाली टीएमसी की पूर्व विधायक सोनाली गुहा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र लिखकर पार्टी छोड़ने के लिए माफी मांगी है और स्वयं को टीएमसी प्रमुख से दोबारा पार्टी में शामिल करने की गुजारिश की है। ममता को लिखे इस पत्र को सोनाली ने ट्विटर पर साझा किया है और कहा है कि उन्होंने भावुक होकर टीएमसी छोड़ दी थी। पत्र में उन्होंने लिखा, मैं टूटे हुए हृदय से ये पत्र लिख रही हूं कि भावुकता में मैंने दूसरी पार्टी ज्वॉइन करने का फैसला लिया, जहां मैं सहज नहीं महसूस कर सकती। बंगाली में लिखे अपने पत्र में सोनाली ने लिखा, जिस तरह एक मछली पानी के बिना नहीं रह सकती, उसी तरह दीदी मैं आपके बिना नहीं रह सकती। मैं आपसे माफी मांग रही हूं और अगर आपने मुझे माफ नहीं किया तो मैं जी नहीं पाऊंगी। प्लीज मुझे पार्टी में वापसी करने और अपने आशीर्वाद तले बाकी जिंदगी गुजारने की अनुमति दीजिए।

बता दें कि टीएमसी से चार बार विधायक रह चुकीं सोनाली गुहा को एक समय ममता बनर्जी की परछाई माना जाता था, लेकिन 2021 विधानसभा चुनाव से पहले सोनाली गुहा ने बीजेपी ज्वॉइन करने का फैसला किया। सोनाली का ये फैसला उस समय आया, जब टीएमसी ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट में उन्हें शामिल नहीं किया। इसके बाद सोनाली गुहा एक टीवी कार्यक्रम में टीएमसी पर फट पड़ीं और बाद में बीजेपी में शामिल हो गईं। हालांकि गुहा ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन कहा था कि वे बीजेपी के संगठन को मजबूत बनाने के लिए काम करेगी।

चुनाव से पहले टीएमसी के कई नेता अपनी जमात के साथ पार्टी छोडकर भाजपा में शामिल हो गये थे। ऐसे हालात में ही केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था मतदान होने तक दीदी अकेली खड़ी नजर आएंगी। तृणमूल छोड़ने वाले नेताओं को गुमान था कि उन्हें चुनाव में टिकट मिलेगा और वे भाजपा की सरकार में मंत्री बनेंगे । चुनाव के नतीजों ने इस सपने को तोड़ दिया है। पश्चिम बंगाल की जनता ने दलबदलुओं को नकार दिया है। इसीलिए घर वापसी को बेचैन हैं। ममता बनर्जी को लिखे पत्र के बाद सोनाली कहती हैं कि वे बीजेपी में खुद को 'अनवॉन्टेड' महसूस कर रही हैं। उन्होंने कहा, बीजेपी ज्वॉइन करने का मेरा फैसला गलत था, ये आज मैं महसूस कर रही हूं। मैं पार्टी छोड़ने के बारे में बीजेपी को बताना भी ठीक नहीं समझती। मैंने बीजेपी में खुद को हमेशा अवांछित महसूस किया है। उन्होंने मुझे ममता दी के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहा लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया।

ममता बनर्जी को चुनाव बाद की हिंसा ने भी परेशान कर रखा है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने गत दिनों कहा था कि राज्य में चुनाव बाद हिंसा के पीड़ित मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग जैसी संस्थाओं में शिकायत दर्ज करा सकते हैं। चुनाव बाद हिंसा के संबंध में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच न्यायाधीशों की पीठ ने यह बात कही। कोर्ट ने कहा है कि पीड़ित इन आयोगों के पास शिकायत दर्ज कराएंगे और फिर ये आयोग राज्य के पुलिस महानिदेशक के पास इसे तत्काल फॉरवर्ड करेंगे। कोर्ट ने कहा-ये हमारा निर्देश है कि अगर कोई व्यक्ति चुनाव बाद हिंसा का शिकार है तो अपनी इच्छा से मानवाधिकार आयोग और अन्य अधिकार संस्थाओं में शिकायत दर्ज करा सकता है। ये शिकायत ऑनलाइन या हार्ड कॉपी के जरिए दर्ज कराई जा सकती है। इस मामले पर अगली सुनवाई अब 25 मई को की जाएगी। पांच सदस्यीय न्यायाधीशों की पीठ में चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस आईपी मुखर्जी, हरीश टंडन, सौम्या सेन, सुब्रत तालुकदार शामिल थे. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कोर्ट से समय मांगा है। कोर्ट ने चुनाव बाद हिंसा को लेकर आयोगों से आई कुल शिकायतों का ब्योरा मांगा है। पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा को लेकर अयोध्या के संत नाराज हैं। तपस्वी छावनी के महंत परमहंस दास बंगाल की हिंसा को लेकर आंदोलित हो गए हैं। उन्होंने बीते दिनों उपवास सत्याग्रह किया था और अब ममता बनर्जी और टीएमसी के कार्यकर्ताओं के खिलाफ उन्होंने मोर्चा खोल दिया है। बंगाल में बढ़ती राजनीतिक हिंसा से आहत संत परमहंस दास ने रामघाट तपस्वी जी की छावनी में अपनी चिता सजाकर उसकी पूजा की। संत ने चिता को साक्षी मानकर ऐलान किया है कि 24 मई तक पश्चिम बंगाल के हालात नहीं सुधरे तो 25 मई को वे आत्मदाह कर लेंगे। (हिफी)

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