ममता को हाथ के साथ की जरूरत

ममता को हाथ के साथ की जरूरत

कोलकाता। तृणमूल कांग्रेस की एक और सांसद ने ममता बनर्जी का साथ छोड़ने का इरादा जता दिया है। अपने पराए हो रहे हैं। कभी वो भी दिन थे जब ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर 1998 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की थी और उनके साथ आने वालों की कतार लगी थी। अब उनको उसी हाथ के साथ की जरूरत महसूस हो रही है। तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने 13 जनवरी को वाममोर्चा और कांग्रेस से बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का साथ देने की अपील की है। दोनों दलों ने इस सलाह को खारिज कर दिया है। कांग्रेस और वामदलों ने विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ने का समझौता कर लिया है। अब तृणमूल कांग्रेस की पेशकश के बाद कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस से है कहा है कि वह बीजेपी के खिलाफ लड़ाई के लिए गठबंधन बनाने के स्थान पर पार्टी (कांग्रेस) में विलय कर ले।कांग्रेस का यह कहना अनुचित भी नहीं है।

भाजपा का मुकाबला सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही करके उसे पराजित नहीं किया जा सकता। इसके लिए कांग्रेस को छोड़कर अलग हुए सभी राजनीतिक दलों को एक साथ आना होगा। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस नेता का यह कहना गलत नहीं है कि भाजपा को तृणमूल कांग्रेस की वजह से बढावा मिला है। उस समय ममता ने एकला चलो की रणनीति अपनायी थी। भाजपा एक एक कर सबको रौंदते हुए आगे बढ़ रही है। इस बार ममता बनर्जी सरकार को भाजपा ने घेरा है। अब तक कांग्रेस को अकेले करके भाजपा ने सत्ता छीनी है। इसके बावजूद कांग्रेस ही विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है। इसलिए भाजपा का मुकाबला करने के लिए अन्य दलों को कांग्रेस के पीछे खड़ा होना पड़ेगा । यह कटुसत्य तृणमूल कांग्रेस भी नहीं सुनना चाहती है। भाजपा को इससे टीएमसी का मनोबल तोड़ने का एक और मौका मिल गया है। पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष और लोकसभा सदस्य दिलीप घोष ने कहा भी है कि यह तृणमूल कांग्रेस की 'हताशा' को दर्शाता है। तृणमूल कांग्रेस हमसे अकेले नहीं लड़ सकती, इसलिए वे अन्य दलों से मदद मांग रहे हैं।


तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय ने कहा, अगर वाम मोर्चा और कांग्रेस वास्तव में बीजेपी के खिलाफ हैं तो उन्हें सांप्रदायिक एवं विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ लड़ाई में ममता बनर्जी का साथ देना चाहिए। ममता बनर्जी ही बीजेपी के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष राजनीति का असली चेहरा हैं। जाहिर है कि तृणमूल कांग्रेस सांसद की यह आत्मप्रशंसा विपक्षी दलों को स्वीकार्य नहीं होगी। धर्म निरपेक्ष राजनीति का असली चेहरा कौन है, इसपर अब बहस करना ही व्यर्थ है। धर्म का सहारा लेकर राजनीतिक सफलता प्राप्त की जा सकती है, यह साबित हो चुका है। इसीलिए ओवैसी जैसे नेता अपनी राजनीति का क्षेत्र बढा रहे हैं। वाममोर्चा के नेता भी अपनी पार्टी को धर्म निरपेक्ष मानते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में जनता ने उन्हें स्वीकार भी किया है। माकपा के वरिष्ठ नेता सुजान चक्रवर्ती ने कहा भी है कि ''यह दिखाता है कि वाम मोर्चा अभी भी महत्वपूर्ण है वाम मोर्चा और कांग्रेस विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी दोनों को हराएंगे। बीजेपी भी वाम मोर्चा विधायकों को लुभाने का प्रयास कर रही है।'' कांग्रेस और वाम मोर्चा ने साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। माकपा नीत वाममोर्चा को लोकसभा चुनाव 2019 में कोई सीट नहीं मिली थी, जबकि कांग्रेस को उसकी कुल 42 सीटों में से पश्चिम बंगाल से सिर्फ दो सीटें मिली थीं। वहीं , दूसरी ओर बीजेपी को 18 सीटें मिली थीं, जबकि तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटें मिली थीं। इससे यह तो साबित हुआ कि राज्य में सबसे बड़ा जनाधार तृणमूल कांग्रेस का है लेकिन भाजपा उसके निकट पहुँच चुकी है। राज्य में 2016 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और वाममोर्चा के गठबंधन को कुल 294 में से 76 सीटें मिली थीं, जबकि तृणमूल कांग्रेस को 211 सीटें मिली थीं। भाजपा चैथे स्थान पर थी। चैथे से दूसरे स्थान पर कैसे आ गयी, इसका जवाब तो टीएमसी को ही देना पड़ेगा।

राज्य की 294 विधानसभा सीटों पर इसी साल अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद सौगत रॉय ने पत्रकारों से कहा, ''अगर वाम मोर्चा और कांग्रेस वास्तव में भाजपा के खिलाफ हैं तो उन्हें भगवा दल की सांप्रदायिक एवं विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ लड़ाई में ममता बनर्जी का साथ देना चाहिए।'' उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ही ''भाजपा के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष राजनीति का असली चेहरा'' हैं। रॉय ने दावा किया कि केंद्र में भाजपा नीत सरकार द्वारा शुरू की गई एक भी योजना सफल नहीं हुई। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस विकास के हितों में रचनात्मक आलोचना में विश्वास रखती है। पश्चिम बंगाल में राजनीतिक रूप ले चुके पशु-तस्करी के मामले पर उन्होंने कहा कि इसे रोकने की जिम्मेदारी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की है, न कि राज्य पुलिस की। तृणमूल के सांसद ने कहा, ''बीएसएफ, देश की सीमाओं की रक्षा करती है और वह केंद्र सरकार के अधीन आती है। सीमा पार पशु-तस्करी को रोकना पुलिस की नहीं उनकी जिम्मेदारी है।'' केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, ''अलग-अलग जगह भोजन करने के बजाय उन्हें सीमा पर जाकर देखना चाहिए था कि बीएसएफ अपना काम अच्छे से कर रही है या नहीं।'' गृहमन्त्री अमितशाह पिछले महीने राज्य के दौरे पर आए थे।

विधानसभा चुनाव में भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख दिलीप घोष क्या भगवा पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, यह भी अभी तय नहीं है। यह भाजपा का आंतरिक मामला है लेकिन डायमंड हार्बर के सांसद एवं तृणमूल की युवा शाखा के प्रमुख अभिषेक बनर्जी की दिलीप घोष से तुलना होने लगी है। कांग्रेस के नेता कहते हैं कि बनर्जी को घोष से अधिक राजनीतिक अनुभव है, जो 2015 से ही राजनीति में सक्रिय हुए हैं, लेकिन उन्होंने कभी तृणमूल का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनने का दावा पेश नहीं किया।

बहरहाल, पश्चिम बंगाल पहुंचकर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ममता बनर्जी को सियासी तौर पर घेरने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। गृहमंत्री अमित शाह भाजपा को मजबूत करने के साथ टीएमसी, कांग्रेस व वाममोर्चा को कमजोर कर रहे हैं। गत दिनों जेपी नड्डा यहां अपने एक दिवसीय दौरे पर पहुंचे थे।

रैली में ममता बनर्जी पर निशाना साधते हुए जेडी नड्डा ने तृणमूल कांग्रेस का मतलब कट मनी और चाल चोर (चावल चोर) बताया। पीएम किसान योजना लागू करने पर पश्चिम बंगाल सरकार के सहमत होने पर नड्डा ने कहा, तृणमूल कांग्रेस सरकार के लिए अब बहुत देर हो चुकी है। बीजेपी अध्यक्ष ने कहा, पश्चिम बंगाल की जनता ने मन बना लिया है कि बीजेपी को आना है और ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी सरकार बनाकर आपकी इच्छा पूरी करें। उन्होंने कहा कि 24 जनवरी तक हमारे कार्यकर्ता किसानों से अन्न लेंगे और सौगंध खाएंगे कि किसानों की लड़ाई बीजेपी लड़ेगी। फिर 24 जनवरी से 31 जनवरी तक हम गांव-गांव में कृषक भोज करेंगे और 40 हजार ग्राम सभाओं में अपनी बात रख कर बीजेपी की सरकार बनाने का रास्ता बुलंद करेंगे। जेपी नड्डा ने कहा ममता जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर किसान सम्मान निधि से जुड़ने के लिए कहा है। उन्हें शायद पता नहीं है कि मोदी ने कृषि सुरक्षा अभियान शुरू कर दिया है। ऐसे में अब उनकी चिट्ठी की जरूरत नहीं है।

ममता भी समझती हैं कि अब जरूरत किस चीज की है लेकिन राजनीति का खेल ऐसा फंस गया है कि वही चीज उन्हें नहीं मिल पाएगी। (हिफी)

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