हाईकोर्ट और इंसानियत

हाईकोर्ट और इंसानियत

नई दिल्ली। हमारा इरादा न्याय व्यवस्था पर उंगली उठाने का कतई नहीं है। अदालत तो कानून का पालन करवाती है और कानून का उल्लंघन करने वालों को सजा देती है। इसके बावजूद जब अखबारों में छपी खबरों के आधार पर हाईकोर्ट अथवा सुप्रीमकोर्ट किसी मामले में स्वतः संज्ञान लेकर सरकार को नोटिस जारी करता है तब लगता है कि इंसानियत हर कानून से ऊपर होती है। सड़क पर घायल व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा देना इंसानियत है और पुलिस का उसे अस्पताल ले जाना और डॉक्टर का इलाज करना नियमतः कर्तव्य है। इंसानियत कोई भी निभा सकता है लेकिन कानून और नियम के तहत कार्यों का जो बंटवारा हुआ है, उसे हर कोई नहीं कर सकता। बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार को शपथपत्र दायर करके यह बताने का गत 19 मई को निर्देश दिया कि सिलेब्रिटी और नेता कोविड-19 रोधी दवाएं, चिकित्सकीय ऑक्सीजन और कोरोना वायरस मरीजों संबंधी अन्य राहत सामग्रियां कैसे खरीद रहे हैं। इसका एक जवाब यूपी के रायबरेली से कवि पंकज प्रसून दे रहे हैं जिनको लोकप्रिय कवि डा कुमार विश्वास और प्रवासी मजदूरों के साथ गरीब बीमारों की आर्थिक मदद करके देश भर की प्रसंशा पाने वाले अभिनेता सोनू सूद की मदद से कोविड केयर किट मिली है। इस किट में रायबरेली के कुछ गांवों के लिए आक्सीजन कंसंट्रेटर थे। इससे 6 ग्राम सभाओं के लिए कोरोना संक्रमितों को आक्सीजन उपलब्ध करायी गयी। तीनों लोगों ने इंसानियत दिखाई है और इसके लिए कानून का उल्लंघन भी किया है लेकिन कानून के दायरे में कैद होकर क्या लोगों की सांसें थम जाने दी जाएं? यह विचार भी कोर्ट को करना पडे़गा।

महाराष्ट्र में कोरोना वायरस महामारी के मामलों में यद्यपि गिरावट शुरू हो गई है लेकिन गरीबों की परेशानी का अंत नहीं हुआ है। अस्पताल में भर्ती होने से लेकर आक्सीजन और दवाईयां जुटाना गरीब क्या सामान्य मध्यम वर्ग के भी वश के बाहर है। किसी को जेवर बेचने पड़े हैं तो किसी को खेत। तसल्ली की बात यह है कि महाराष्ट्र में इस महीने की शुरुआत में जहां 50 से 60 हजार नए केस सामने आ रहे थे, वहीं अब 30 हजार से कम नए मामले सामने आने लगे हैं। राहत की बात यह है कि महामारी से होने वाली मौतों में भी भारी कमी दर्ज की गई है। महाराष्ट्र में 20 मई को पिछले 24 घंटे में कोरोना के 26616 नए मामले सामने आए थे और इस दौरान 516 मरीजों की मौत हो गई, वहीं 48211 मरीज ठीक भी हुए। इस प्रकार कोरोना संक्रमण की स्थिति महाराष्ट्र में थोड़ी स्थिर होती दिख रही है, लेकिन स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की स्थिति ठीक नहीं है। राज्य के पुणे जिला स्वास्थ्य विभाग से इंसानियत को शर्मसार करने वाली एक घटना सामने आई है। यहां कथित रूप से अस्पताल के बिल का भुगतान नहीं होने पर अस्पताल ने एक कोरोना वायरस संक्रमित का शव उसके परिजनों को नहीं दिया। ये घटना तालेगांव दाभाडे के एक मेडिकल कॉलेज-अस्पताल की है, जिसके उजागर होने के बाद अस्पताल के खिलाफ जांच का आदेश दिया गया है।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार को शपथपत्र दायर करके यह बताने का 20 मई को निर्देश दिया कि सिलेब्रिटी और नेता कोविड-19 रोधी दवाएं, चिकित्सकीय ऑक्सीजन और कोरोना वायरस मरीजों संबंधी अन्य राहत सामग्रियां कैसे खरीद रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार और केंद्र से पिछले सप्ताह भी इस संबंध में जानकारी मांगी थी। अदालत ने उसके पहले के आदेशों का पालन नहीं करने के कारण महाराष्ट्र सरकार और केन्द्र सरकार को फटकार लगायी थी । राज्य सरकार ने इसके जवाब में एक रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें केवल यह बताया गया कि उसने कांग्रेस विधायक जीशान सिद्दीकी और सूद चैरिटी फाउंडेशन (अभिनेता सोनू सूद का एक एनजीओ) को कोविड-19 राहत सामग्री की खरीद पर कारण बताओ नोटिस जारी किया है, लेकिन अभी तक उनका जवाब प्राप्त नहीं हुआ है। अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल सिंह ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार ने कोई रिपोर्ट दाखिल नहीं की है, क्योंकि रेमडेसिविर और चिकित्सकीय ऑक्सीजन समेत अन्य सामग्रियों की खरीदारी एवं वितरण राज्य के विशेषाधिकार हैं और केंद्र ने राज्यों की मांगों के आधार पर ऐसे संसाधनों को उन्हें केवल आवंटित किया। पीठ ने राज्य और केंद्र सरकार के जवाबों पर आपत्ति जताई। उसने कहा कि उसने बेहतर जवाबों और उसके पहले के आदेशों का पालन किए जाने की उम्मीद की थी। अदालत ने कहा, श्इन लोगों (सिलेब्रिटी) के पास (कोविड-19 दवाएं, चिकित्सकीय ऑक्सीजन खरीदने के लिए) कोई लाइसेंस नहीं है, ऐसे में गारंटी कौन लेगा? रिपोर्ट दाखिल की जानी चाहिए थी। उसने कहा, आपने (राज्य सरकार ने) केवल कारण बताओ नोटिस जारी किए। हमने कहा था कि इस मामले में रिपोर्ट दाखिल करें। हम इससे नाखुश हैं।

पीठ ने कहा कि उसकी मुख्य चिंता यह है कि जरूरतमंदों को राहत से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए, क्योंकि सभी सोशल मीडिया पर अपील करने की स्थिति में नहीं हैं। उसने कहा, केंद्र सरकार आवंटन करती है, राज्य इन्हें एकत्र करते हैं, तो ये हस्तियां कैसे सामग्री एकत्र करती और खरीदती हैं? हमें यही चिंता है? अदालत ने राज्य और केंद्र सरकारों को अगले सप्ताह तक शपथपत्र दायर करके विस्तृत जवाब देने का निर्देश दिया। उसने महाराष्ट्र सरकार को यह भी बताने को कहा कि उसे राज्य में चिकित्सकीय ऑक्सीजन और रेमडेसिविर समेत अन्य सामग्रियों की कितनी मात्रा की आवश्यकता है और उसे केंद्र एवं अन्य प्रतिष्ठानों से कितनी आपूर्ति हो रही है। अदालत ने कोविड-19 से जुड़ी समस्याओं के प्रबंधन संबंधी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया। उसने ऑक्सीजन और कोविड-19 रोधी दवाओं की खरीदारी, उत्पादन एवं भंडारण और संक्रमण से निपटने के लिए बृहन्मुंबई महानगर पालिका द्वारा तैयार किए गए मॉडल की प्रशंसा की।

अदालत 25 मई को जनहित याचिकाओं पर आगे सुनवाई करेगी। अदालत के इस सवाल को हम भी जायज मानते हैं कि कोरोना पीड़ितों की मदद करने वाले थोक में दवाएं और आक्सीजन खरीदने वाले कानून के विरुद्ध काम कर रहे हैं लेकिन जिन सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं को इसका लाइसेंस मिला है, वही महामारी के समय उन दवाओं और आक्सीजन का अभाव पैदाकर कालाबाजारी करवाते हैं। कई सरकारी व निजी अस्पतालों के डॉक्टर और कर्मचारी पकड़े भी गये हैं। इन लाइसेंस धारियों से गैर लाइसेंस धारी ही भले हैं। कोर्ट में अपील करने वाले कहीं लाइसेंस की आड़ में कालाबाजारी करने वालों के हमदर्द तो नहीं हैं क्योंकि सोनू सूद और कुमार विश्वास जैसे देवदूतों ने कालाबाजारियों के धंधे को बंद कर दिया है। (हिफी)

epmty
epmty
Top