राबड़ी देवी के आवास पर नेताओं का जमावड़ा

राबड़ी देवी के आवास पर नेताओं का जमावड़ा

पटना। बिहार में तेजस्वी यादव वाले महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा है, जिसके बाद अब मंथन का दौर चल रहा है। पटना में 12 नवम्बर को पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर महागठबंधन के नेताओं का जमावड़ा लगा। इस दौरान सभी दलों के नेता बैठक में पहुंचे। महागठबंधन की बैठक में राजद नेता तेजस्वी यादव ने सभी नेताओं को संबोधित भी किया। तेजस्वी के नेतृत्व वाले राजद को 75 विधायक मिले हैं और उनकी पार्टी ने भाजपा से भी ज्यादा विधायक जुटाए हैं। गठबंधन की पराजय के कई कारण रहे हैं। वामपंथी नेताओं को कांग्रेस से शिकायत है लेकिन एनडीए की जीत में महिलाओं का उसके पक्ष में मतदान करना महत्वपूर्ण फैक्टर रहा है।

महागठबंधन की बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे वामपंथी नेता दीपाकंर भट्टाचार्य ने नतीजों पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि इस बार कांग्रेस का स्ट्राइक रेट काफी कमजोर रहा और 70 सीटों को संभालना कांग्रेस के लिए मुश्किल हो गया था। दीपांकर बोले कि अगर कांग्रेस को कम सीटें मिलतीं और वो सीटें राजद-लेफ्ट में आतीं तो नतीजा बेहतर होता। लेफ्ट नेता ने कहा कि बिहार में हम हमेशा से ही मौजूद थे, बस इस बार अधिक सीटें मिली हैं। हमारा प्रदर्शन गठबंधन में अच्छा रहा है। लेकिन हम एनडीए को बाहर नहीं कर सके, ऐसे में हम कहेंगे कि मिशन में फेल हुए हैं। ध्यान रहे अभी तक राजद नेता और महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार रहे तेजस्वी यादव की ओर से चुनाव नतीजों पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है। हालांकि, पार्टी नेता और अन्य दल के नेता बयानबाजी कर रहे हैं। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि महागठबंधन के नेता इस पर गौर करेंगे कि इस बार महागठबंधन सिर्फ 110 सीटें ही क्यों जीत पाया है, जिसमें से 75 सीटें राजद, 19 सीटें कांग्रेस और 16 सीटें लेफ्ट पार्टियों के खाते में गई हैं। कांग्रेस पार्टी 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और सिर्फ 19 सीटों पर जीत पाई, ऐसे में लगातार उसके प्रदर्शन पर सवाल खड़े हो रहे हैं। खुद कांग्रेस पार्टी के नेता तारिक अनवर ने इस बात को कुबूला है कि कांग्रेस के बुरे प्रदर्शन के कारण महागठबंधन की सरकार बनते-बनते रह गई।

बहरहाल, तेजस्वी यादव इस बात से सहमत नहीं दिखे और उन्होंने एकजुट रहकर कार्य करने को कहा है।

बिहार में नीतीश की लगातार चुनावी जीत के पीछे महिला वोटर्स को एक साइलेंट फोर्स के रूप में देखा जाता है। एक्जिट पोल्स के अनुमानों को धता बताते हुए महिलाओं ने एक बार फिर न सिर्फ पुरूषों को पछाड़ा, बल्कि एनडीए को सत्ता में पहुंचा दिया। चुनाव के दूसरे और तीसरे चरण में जहां राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और इन चरणों में महिलाओं ने भी अच्छी संख्या में मतदान किया। दूसरे और तीसरे चरण की ज्यादातर सीटें उत्तरी बिहार में हैं। इस चुनाव के तीसरे चरण में 65।5 फीसदी और दूसरे चरण में 58।8 फीसदी महिलाओं ने वोटिंग की। इन दोनों ही चरणों में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोटिंग की। तीसरे चरण में पुरुषों की तुलना में 11 फीसदी ज्यादा महिलाओं ने वोट किया और दूसरे चरण में यह अंतर 6 फीसदी का रहा। हालांकि, पहले चरण में पुरुषों (56।8 फीसद) की तुलना में महिलाओं (54।4 फीसद) ने कम वोटिंग की। कुल मिलाकर पुरुष मतदाताओं ने 54।68 फीसदी, जबकि महिला मतदाताओं ने 59।69 फीसदी वोटिंग की। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में भी 59 फीसदी से ज्यादा महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। पहली बार 2010 के विधानसभा चुनाव में महिला वोटर्स (54।85 फीसद) ने पुरुषों (50।70 फीसद) की तुलना में ज्यादा मतदान किया था।

बिहार की राजनीति में महिलाओं की बढ़ती दिलचस्पी का ही असर है कि इस बार जद(यू) ने 115 सीटों में 22 सीटों पर महिला प्रत्याशियों को उतारा जबकि 2015 में पार्टी ने महज 10 महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था।

एक सर्वे में देखा गया कि बिहार में महिलाएं एनडीए को बढ़त दिला रही हैं और एनडीए गठबंधन को महत्वपूर्ण जेंडर एडवांटेज मिल रहा है। इस ओपिनियन पोल में सामने आया था कि 41 फीसदी महिलाएं एनडीए के पक्ष में हैं, जबकि महागठबंधन को सिर्फ 31 फीसदी महिलाएं समर्थन कर रही हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, महिलाओं के बीच नीतीश कुमार का भरोसा बरकरार रखने में तीन बातें खास तौर पर कारगर रही हैं। कानून व्यवस्था खास कर महिला सुरक्षा में सुधार नीतीश द्वारा शुरू किया गया जीविका गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम और पंचायत व नगर निकायों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी कोटा।

जीविका महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए विश्व बैंक समर्थित गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम है, जो बिहार में 2007 से चल रहा है। इसके तहत राज्य में महिलाओं द्वारा कम से कम 10 लाख स्वयं सहायता समूह चल रहे हैं और 60 लाख परिवार इसका लाभ उठा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि यह नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी परियोजना है जिसने राज्य की महिलाओं को बड़े पैमाने पर मदद की है।

बिहार के 2018-19 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, मनरेगा कार्यक्रमों में महिला मजदूरों की भागीदारी में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई। वर्ष 2013-14 में जहां मनरेगा में महिला मजदूरों की भागीदारी 35 फीसदी थी, वहीं 2017-18 में बढ़कर 46।60 फीसदी तक पहुंच गई। इसी सर्वे के मुताबिक, राज्य के रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी 2015 में जहां 40।8 फीसदी थी, वहीं 2017-18 में बढ़कर 46।6 फीसदी तक पहुंच गई। राज्य में महिला साक्षरता दर की बात करें तो 2006 में यह 37 फीसदी थी, जो कि 2016 में यह बढ़कर 50 फीसदी के करीब पहुंच गई। नीतीश की इस पहल ने न सिर्फ महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाया है, बल्कि उन्हें पहचान भी दिलाई है। 2005 में सत्ता में आने के बाद से नीतीश ने राज्य की लड़कियों और महिलाओं के कल्याण के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। उन्होंने छात्राओं के लिए मुफ्त साइकिल कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके अलावा, नीतीश सरकार ने पंचायत और नगरपालिका निकायों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी कोटा, महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का गठन, कक्षा 12 और स्नातक की छात्राओं को वित्तीय सहायता और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की। उन्होंने 2016 में महिला स्वयं सहायता समूहों की मांग पर शराब पर प्रतिबंध भी लगा दिया। हालांकि, नीतीश की महिला समर्थक छवि को उस वक्त धक्का लगा जब 2018 में मुजफ्फरपुर के आश्रय गृह में यौन शोषण कांड सामने आया।

विधानसभा चुनाव 2020 के पहले भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना महत्वाकांक्षी कार्यक्रम 'सात निश्चय पार्ट-2' घोषित किया। इनमें से एक निश्चय था 'सशक्त महिला सक्षम महिला।' इसके तहत नीतीश ने वादा किया था कि महिलाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजना लाई जाएगी।

इस बार नीतीश कुमार के पूरे चुनावी अभियान पर नजर डालें तो उन्होंने लगभग हर रैली में विकास की चर्चा की, लेकिन हर रैली में महिलाओं से जुड़े मुद्दे पर भी फोकस रखा। वे महिलाओं को इस बात का अहसास कराने की कोशिश करते दिखे कि कैसे पिछले 15 वर्षों में उन्होंने राज्य में महिलाओं को सशक्त व स्वावलंबी बनाने की कोशिश की। दूसरी तरफ, बीजेपी नेताओं ने भी अपनी रैलियों में 8 करोड़ महिलाओं को उज्जवला योजना का लाभ देने, लॉकडाउन में फ्री गैस बांटने, जन-धन खाते में पैसे भेजने, छठ पूजा तक फ्री राशन बांटने की याद दिलाई। इसलिए महागठबंधन के नेताओं को विस्तृत समीक्षा की सलाह तेजस्वी ने दी है। (हिफी)

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