दीदी! खेला ना होबे, अभिनेता नेता होबे

दीदी! खेला ना होबे, अभिनेता नेता होबे

कोलकाता। पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में मुख्यमंत्री यानी ममता दीदी का एक नारा मीडिया में खूब छाया है खेला होबे...खेला होबे। ममता दीदी इस नारे से क्या चुनावी संदेश देना चाहती हैं यह अलग बात है, लेकिन हमारी नजरों में बंगाल की राजनीति में सियासी पर्दे पर जो चित्र उभर कर निकले हैं उसके अनुसार हमें कहना पड़ रहा है कि दीदी बंगाल में खेला ना होबे, अभिनेता नेता होबे...। पश्चिम बंगाल में क्या खेला होगा, यह दीगर बात है, लेकिन राजनीति ने वहां अभिनेताओं की फौज को नेता बना दिया गया है। चुनावी मैदान मारने के लिए टीएमसी और भाजपा दोनों में अभिनेताओं को लेकर होड़ देखी जा रही है। फिल्मी दुनिया के नामचीन चेहरे मिथुन चक्रवर्ती इसका ताजा उदाहरण हैं। मिथुन के भाजपा में जाने की अटकलें पहले से लगाईं जा रहीं थीं, जब संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात मुंबई में हुई थी। हालांकि उन्होंने इसे शिष्टाचार भेंट बताई थी, लेकिन यह तो उसी समय से तय माना जा रहा था और यही हुआ भी।


इससे कम से कम यह साबित होता है कि अब राजनीति में नीति, नैतिकता, दलीय आस्था और कार्यकर्ताओं का समर्पण कोई मतलब नहीं रखता। राजनीति सिर्फ व्यापार हो गई है। आम आदमी अब वहां कभी नहीं पहुंच सकता, जिसके पास दौलत, सोहरत, चेहरा और ब्रांड है, बस राजनीति उसी की है।

राजनीति में विचारधाराओं और नीतियों का अकाल है। बदलते राजनीतिक परिवेश में जनसेवा एक सियासी खोल है जिसे दौलत और सोहरत वाला आदमी कभी भी ओढ़ सकता है। अब यह उस पर निर्भर है करता है कि वह कब ओढ़ना चाहता है। आज जिसके पास कोई नीतियां नहीं है, वहीं राजनीति में है।

राजनीति में आयातित लोगों की भीड़ बढ़ रही है। दलीय आस्था और जनसेवा का सरोकार कब का दमतोड़ चुका है। राजनीति हवा के रुख पर निर्भर हो गई है। दलों से जुड़े आम कार्यकर्ता हासिए पर है। जिसने पार्टी सेवा में अपना पूरा जीवन त्याग दिया उसका कोई मतलब नहीं दिखता है। संगठन की महत्वा खत्म हो रही है। जिस कार्यकर्ता ने त्याग किया उसको कोई तवज्जों नहीं है। ब्रांडिंग चेहरों के आगे उसके त्याग और समर्पण को भुला दिया जाता है। उसकी राजनीतिक सेवा बेमतलब हो जाती है। किसी फिल्मी सितारे या आयातित ब्रांडिंग चेहरे को टिकट दे दिया जाता है।


देश में आजकल सभी राजनैतिक दलों में यह नीति आम हो गई है। जिसकी वजह से चुनाव करीब आते ही दल बदलुओं के लिए दरवाजे खुल जाते हैं। पांच सालों तक जिसकी दलीय आस्था नहीं टूटती, लोकतंत्र की हत्या नहीं होती, उसकी चुनाव करीब आते ही निष्ठा बिखर जाती है। कल तक जिस दल और विचारधारा को लोग गालियां दे रहे थे, आज उसी का दुपट्टा गले में डाल आंख मूंद कर उसे ही गले लगा लेते हैं। ममता दीदी के राज्य बंगाल में यह खेला खूब होबे है। यहां अभिनेता राजनेता होबे है।

पश्चिम बंगाल का चुनाव फिल्मी सितारों के लिए कोई नया ठिकाना नहीं है। भारतीय राजनीति में सेलीब्रेटी की अपनी अलग डिमांड रही है। राजनीति भी अभिनेताओं को खूब पसंद करती रही है और राजनेता भी उन्हें गले लगाते रहे हैं। अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता बेहद कम मिलेंगे जिन्होंने एक बार चुनाव जीतने के बाद फिर राजनीति की तरफ कभी मुड़कर नहीं देखा। अब इसके पीछे की उनकी कोई भी मजबूरी रही हो वह अलग बात है। दक्षिण की राजनीति में बड़े-बड़े सितारों ने राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई। जिनकी फेहरिश्त बेहद लंबी है। युवाओं में फिल्मी अभिनेताओं की लोकप्रियता सिर चढ़ कर बोलती है। सितारे ही युवाओं के नायक होते हैं। जिसकी वजह से वोटिंग में युवाओं को प्रभावित करने के लिए सितारों का राजनीति में अहम योगदान रहा हैं। राजनीतिक दल सिर्फ अपनी सीटें निकालने के लिए इस तरह के ब्रांडिंग चेहरों का इस्तेमाल करते हैं, जबकि ऐसे लोगों का राजनीति से कोई दूर-दूर तक का रिश्ता नहीं होता है।

चुनाव जीतने के बाद राज्य विधानसभाओं और संसद में इनका प्रतिभाग कितना होता है यह किसी से छुपा नहीं है। भारतीय राजनीति में यह मुद्दा भी बहस का विषय बन चुका है लेकिन इसका किसी भी दल को कोई खयाल नहीं है। चुनाव किस तरह से जीता जाय, मतलब इससे होता है। अब राजनीति एक व्यापार बन गई है। राजनीति में यह ट्रेंड बन गया है कि जिसकी हवा बढ़िया देखो चुनावों में उसी का दुपट्टा गले में डाल लो। मूल सिद्धांत यही है कि अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। क्योंकि राजनीति आज के माहौल में सबसे पावरफुल ब्रांड है। राजनेता बनने के बाद आप जीवन में वह सबकुछ हासिल कर सकते हैं जो आप कभी अभिनेता बन कर भी नहीं हासिल कर पाए। इसलिए रील लाइफ में नेता का अभिनय रियल लाइफ में पसंद है।


पश्चिम बंगाल के चुनाव में भाजपा और टीएमसी ने फिल्मी सितारों पर खूब दांव लगाया है। दोनों दलों में एक-एक सीट के लिए जंग छिड़ी है। चुनाव परिणाम क्या होगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन वोटरों को लुभाने के लिए सितारों के लिए पूरी जमींन तैयार की गई है। वोटरों पर अभिनेताओं के प्रचार का असर भी पड़ता है। क्योंकि जिन्हें वह कभी रुपहले पर्दे पर या सिर्फ टीवी स्क्रीन पर देख पाते थे। चुनावों में उनसे सीधे मुलाकात कर पाएंगे। आटोग्राफ ले सकते हैं करीब से मिल कर अपनी बात भी रख सकते हैं, क्योंकि चुनाव जीतने के लिए अभिनेताओं को भी सबकुछ करना पड़ता है।

राजनीति अब फिल्मी सितारों की पहली पंसद बन चुकी है। बांग्ला फिल्म स्टार यशदास भाजपा में शामिल होकर काफी सुर्खियां बटोर चुके हैं। वह टीएमसी सांसद नुसरत जहां के बेहद करीबी माने जाते हैं। भाजपा सांसद मिमी चक्रवर्ती के दोस्त भी हैं। भाजपा ने पायल सरकार को बेहाला पूर्व से जबकि तनुश्री चक्रवर्ती को श्यामपुर और हीरन चटर्जी को खड़गपुर से टिकट दिया है। वहीं बांग्ला फिल्म के स्टार यशदास को चंडीतला से उम्मीदवार बनाया हैं। जबकि टीएमसी ने कौशानी मुखर्जी को

कृष्णानगर, अदिति मुंशी को राजरहाट गोपालपुर, लवली मित्रा को सोनारपुर दक्षिण और बीरबाहा हांसदा को झाड़ग्राम से चुनावी मैदान में उतारा है। माडलिंग से भाजपा में आयी पामेला गोस्वामी ने भाजपा की उस समय किरकिरी कराई जब उन्हें पुलिस ने कोकीन के आरोप में गिरफ्तार किया था। इस पर भी खूब सियासत हुई थी। कभी टीवी सीरियल महाभारत से अपनी पहचान बनाने वाली रुपा गांगुली आज भाजपा की पश्चिम बंगाल में अहम चेहरा हैं। बंगाल में फिल्मी सितारों की पहली पसंद टीएमसी रही है लेकिन अब चुनावी जंग अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा ने भी उसी नीति को अपनाया है।

पश्चिम बंगाल में शोली मित्रा, विभास चक्रवर्ती, गौतम घोष, कवि जाय गोस्वामी, अपर्णा सेन जैसी फिल्मी हस्तियां तृणमूल से पहले से जुड़े हैं। पश्चिम बंगाल कभी वामपंथी राजनीति का गढ़ रहा है लेकिन आज वे हासिए पर हैं। वामराजनीति में भी स्टारडम का अपना जलवा रहा है। वैसे भी फिल्मी दुनिया में आज भी वामपंथी विचारधारा से प्रभावित अधिक लोग हैं। फिल्म जगत से अनूप कुमार, अनिल चटर्जी, दिलीप राय, माधवी मुखर्जी जैसे लोग बंगाल में वामपंथ की राजनीति से जुड़े रहे हैं। इसके अलावा साल 2019 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने नुसरत जहां और भाजपा ने मिमी चक्रवर्ती को चुनावी मैदान में उतार कर सफलता हासिल की। संसद में नुसरत जहां और मिमी चक्रवर्ती की जोड़ी एक बार मीडिया की सुर्खियों में रही। फिलहाल पश्चिम बंगाल की राजनीति में किसका किला जमींदोज होगा और ताज किसके सिर बंधेगा, यह तो वक्त बताएगा। (हिफी)







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