चिराग पासवान की सियासत

चिराग पासवान की सियासत

पटना। बिहार के विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान की राजनीति चाणक्य की नीति की तरह दिखाई पड़ी। इसी दौरान उनके पिता रामविलास पासवान का निधन हो गया। चिराग पासवान की चुनावी लड़ाई नीतीश कुमार की पार्टी से थी और भाजपा के वे हनुमान थे। भाजपा को इतने ज्यादा विधायक मिले तो इसमें चिराग पासवान की पार्टी लोजपा का भी क्या कोई योगदान था? इसी प्रकार नीतीश कुमार की पार्टी जद यू को इतने कम विधायक मिले तो क्या इसके पीछे भी लोजपा की कोई भूमिका रही है? इन बातों पर इस समय पटना की गलियों में चर्चा हो रही है और इसी के साथ एक दूसरे से यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि क्या चिराग पासवान केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में शामिल होने जा रहे हैं। लोजपा को इस बार विधानसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिली, इसलिए चिराग पासवान पार्टी को पुनर्संगठित भी कर रहे हैं लेकिन उनकी राजनीति के पत्ते अभी खुले नहीं हैं। चिराग पासवान के पिता स्वर्गीय रामविलास जी के बारे में कहा जाता था कि वे राजनीति के मौसम विज्ञानी थे लेकिन चिराग के विज्ञान के बारे में लोगों को जानना बाकी है।

लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान गत दिनों अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे पर जमुई पहुंचे थे, जहां उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में लोजपा प्रत्याशियों को मिले वोट के लिए लोगों को धन्यवाद दिया। जमुई में लोक जन शक्ति पार्टी के अध्यक्ष व स्थानीय सांसद चिराग पासवान ने कहा है कि लोजपा का कोई भी सदस्य राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं होने जा रहा है। ध्यान रहे कि उनकी मां रीना पासवान की राज्य सभा उम्मीदवारी को लेकर कयास लगाये जा रहे थे, लेकिन हकीकत यही है कि उनकी मां कभी भी सक्रिय राजनीति में नहीं रही हैं। चिराग ने बताया कि भारतीय जनता पार्टी ने यह सीट उनके पिता रामविलास पासवान को दी थी।अब उनके पिता इस सीट को वापस कर चले गए हैं तो भाजपा जिसे भी चुनाव लड़ाए, लोजपा को कोई आपत्ति नहीं है। चिराग पासवान की मां रीना पासवान की उम्मीदवारी को राजद के समर्थन के ऑफर पर लोजपा अध्यक्ष ने राजद नेताओं को धन्यवाद दिया है। इस प्रकार चिराग पासवान ने एक बार फिर अपने को भाजपा का हनुमान साबित किया है।

इसी के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में लोजपा के शामिल होने की चर्चा शुरू हो गयी। कुछ लोगों ने ये सवाल उठाया तो चिराग पासवान ने मुस्कराते हुए जवाब दिया। उन्होंने कहा कि फिलहाल लोजपा अभी केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के बारे में नहीं सोच रही है और बिहार फर्स्ट बिहारी फस्र्ट विजन के साथ लोजपा काम कर रही है। चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में लोजपा प्रत्याशियों को मिले वोट के लिए लोगों को धन्यवाद देते हुए पार्टी के प्रत्याशियों के साथ बैठक की। इस दौरान लोजपा के जमुई जिले के कई पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी मौजूद रहे। इसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बारे में विचार विमर्श भी किया। माना जाता है कि इसी के निष्कर्ष स्वरूप लोक जनशक्ति पार्टी के राष्घ्ट्रीय अध्घ्यक्ष चिराग पासवान ने बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने 2 दिसम्बर को पटना में संसदीय बोर्ड की बैठक के दौरान बिहार की प्रदेश इकाई के साथ सभी जिला कमेटियां भंग करने का ऐलान कर दिया। संसदीय बोर्ड की इस बैठक में बिहार प्रदेश के सभी उपाध्यक्ष, सांसद, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक और लोजपा के सभी प्रवक्ता मौजूद थे। यही नहीं, लोजपा की संसदीय बोर्ड की इस बैठक में यह फैसला भी हुआ है कि पार्टी को मजबूत करने के लिए अगले दो महीने में फिर से सभी कमेटियों का गठन किया जाएगा। यही नहीं, पार्टी ने साफ कहा कि सभी कार्यकर्ताओं को अगले विधानसभा चुनाव की अभी से तैयारी करनी है। हालांकि चिराग ने अपनी पिछली कमेटी में युवाओं और अनुभवी नेताओं का सही गठजोड़ रखा था, जबकि नई कमेटी में कौन रहने वाला है, यह तो वक्त ही बताएगा।

सीएम नीतीश कुमार की जेडीयू के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उसे डैमेज करने के इरादे से चुनावी मैदान में चिराग पासवान की अगुवाई में उतरी लोजपा ने इस बार महज एक सीट पर ही सफलता पाई है। लोजपा के गठन के बाद से यह अब तक की उसकी सबसे बड़ी हार मानी जा रही है। लोजपा के 135 उम्मीदवार मैदान में थे और उसने सिर्फ एक सीट जीती है। माना जा रहा है कि चिराग पासवान की अध्यक्षता वाली लोजपा ने एनडीए के साथ ही महागठबंधन का भी काफी नुकसान पहुंचाया है। उन 54 सीटों पर जहां लोजपा ने वोट का खेल बिगाड़ने का काम किया उनमें 25 जदयू की थीं। इन सीटों पर लोजपा को जितने वोट मिले, वे जदयू की हार के मार्जिन से ज्यादा थे। इसके अलावा लोजपा ने सिर्फ जदयू ही नहीं एनडीए के ही मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी ( वीआईपी ) को भी चार सीटों पर काफी नुकसान किया। चिराग का शुरू से ही यह स्टैंड था कि वह भाजपा के खिलाफ नहीं है लेकिन नीतीश कुमार के विरोध में है।

दलित समुदाय के बीच लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरे रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना वर्ष 2000 में की थी। पार्टी की स्थापना के बाद रामविलास पासवान ने धीरे-धीरे पार्टी को मुख्यधारा से जोड़ा और पहली बार 2004 के लोकसभा चुनाव में उतारा। पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 4 सीटें जीतीं तब लोजपा कांग्रेस और राजद के साथ यूपीए गठबंधन का हिस्सा थी। यूपीए की चुनाव में जीत के साथ ही पासवान को गठबंधन सरकार में केमिकल एंड फर्टिलाइजर मिनिस्टर बनाया गया था।

हालांकि वर्ष 2010 में लालू यादव का साथ मिलने से राम विलास पासवान राज्य सभा पहुंचे, लेकिन राज्य में वह अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर पाए। लोजपा के विधायकों की संख्या घटकर एक दर्जन से भी कम रह गई लेकिन 2014 में फिर अपने बेटे चिराग के कहने पर रामविलास पासवान ने पाला बदला और एनडीए गठबंधन में नरेन्द्र मोदी के साथ आए और 6 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की और एक राज्यसभा सीट भी हासिल की। हालांकि वर्ष 2015 में एनडीए के तहत 42 सीटों पर लोजपा मैदान में उतरी, जिनमें महज दो पर विजय मिली थी. जबकि इस बार वह अकेले दम पर 135 सीटों पर लड़ी और सिर्फ एक सीट जीत सकी है। लोजपा ने 2005 में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और 29 सीटों पर कब्जा जमाया। हालांकि उसी साल अक्टूबर में फिर विधानसभा चुनाव हुए और लोजपा महज 10 सीटों पर ही सिमट गई। सन 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ छोड़ना उन्हें महंगा पड़ा और रामविलास खुद तो इस चुनाव में हारे ही, एक भी सांसद उनका लोकसभा नहीं पहुंच पाया था। चिराग पासवान को इस इतिहास से भी सबक लेना पड़ेगा। विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कहा था कि मैं तो मोदी जी का हनुमान हूं। मोदी जी अपने हनुमान की चिंता स्वयं करेंगे। (हिफी)

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