गौरवान्वित करने वाली यादें

गौरवान्वित करने वाली यादें

नई दिल्ली। यादें कई प्रकार की होती हैं। कभी रुलाती हैं, कभी हंसाती हैं तो कभी गौरवान्वित भी करती हैं। हमारे देश के लिए 16 अगस्त 1971 का दिन ऐसा ही था जिस पर हम आज भी गौरवान्वित होते हैं। इसी दिन भारत और पाकिस्तान के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को न सिर्फ जबर्दस्त पटकनी दी थी, बल्कि पाकिस्तान के दो टुकड़े भी हो गये थे। इसी दिन पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के नाम से नया देश बन गया था। इतना ही नहीं इस दिन को हम इसलिए भी गर्व के साथ याद करते हैं क्योंकि भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की धमकी की परवाह न करते हुए पाकिस्तान पर हमला किया था। इसीलिए 16 अगस्त को देश भर में विजय दिवस मनाया जाता है। इस बार का विजय दिवस ज्यादा विशेष रहा क्योंकि उस घटना को पूरे 50 वर्ष हो चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के साथ विजय ज्योति यात्रा को हरी झंडी दिखाई। यह यात्रा देश को स्फूर्त करती रहेगी।

16 अगस्त 1971 वो दिन था, जबकि इंदिरा गांधी ने अमेरिका की चेतावनी की परवाह किए बगैर पाकिस्तानी सेनाओं को ना केवल चारों खाने चित्त करके समर्पण के लिए मजबूर किया, बल्कि पाकिस्तान को तोड़कर नया देश बांग्लादेश बना दिया। आज के दिन पाकिस्तान के वो गहरे घाव फिर हरे हो जाते हैं।

1971 का भारत-पाक युद्ध भारत एवं पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष था। इसका आरम्भ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम के चलते 3 दिसंबर, 1971 से 16 दिसम्बर, 1971 तक हुआ था एवं ढाका समर्पण के साथ समापन हुआ था। युद्ध का आरम्भ पाकिस्तान द्वारा भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर रिक्तिपूर्व हवाई हमले से हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेशी स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के समर्थन में कूद पड़ी। मात्र 13 दिन चलने वाला यह युद्ध इतिहास में दर्ज लघुतम युद्धों में से एक रहा।

युद्ध के दौरान भारतीय एवं पाकिस्तानी सेनाओं का एक ही साथ पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों फ्रंट पर सामना हुआ और ये तब तक चला जब तक कि पाकिस्तानी पूर्वी कमान ने समर्पण अभिलेख पर 16 दिसम्बर, 1971 में ढाका में हस्ताक्षर नहीं कर दिये, जिसके साथ ही पूर्वी पाकिस्तान को एक नया राष्ट्र बांग्लादेश घोषित किया गया। लगभग 90,000, से 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना द्वारा युद्ध बन्दी बनाया गया था। इनमें 79,676 से 91,000 तक पाकिस्तानी सशस्त्र सेना के वर्दीधारी सैनिक थे, जिनमें कुछ बंगाली सैनिक भी थे जो पाकिस्तान के वफादार थे। शेष 10,324 से 15,000 युद्धबन्दी वे नागरिक थे, जो या तो सैन्य सम्बन्धी थे या पाकिस्तान के सहयोगी (रजाकर) थे। एक अनुमान के अनुसार इस युद्ध में लगभग 30,000 से 3 लाख बांग्लादेशी नागरिक हताहत हुए थे। इस संघर्ष के कारण, 80,000 से लगभग 1 लाख लोग पड़ोसी देश भारत में शरणार्थी रूप में घुस गये।

उन दिनों पाकिस्तान के लोगों के बीच इंदिरा गांधी सबसे चर्चित शख्सियत बन गईं। अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान में जब 80 के दशक में सैनिक तख्तापलट के बाद प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दी जाने वाली थी तो पाकिस्तान में ये कहा जा रहा था कि अगर इंदिरा सत्ता में होतीं तो कमांडो भेजकर भुट्टो को छुड़वा लेतीं। बेशक इंदिरा ऐसा नहीं करतीं लेकिन उनके बारे में पाकिस्तानी कम से कम ऐसा ही सोचते थे। जिस तरह इंदिरा गांधी ने अमेरिका की आंखों में आंखें डालकर पाकिस्तान के दो टुकड़े किए और नया देश बनवाया, वो बहुत बड़ी हिम्मत का काम था।

इंदिरा गांधी को अमेरिका ने पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई नहीं करने की चेतावनी दी थी। इसके बावजूद इंदिरा ने ये काम करके अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन की हेकड़ी हवा कर दी। वर्ष 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान में लोगों पर पाकिस्तान सेना का दमन बढ़ने लगा तो भारी तादाद में शरणार्थी भारत आने लगे। इसका असर भारत पर पड़ने लगा। इस हालत से रू-ब-रू कराने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अमेरिका गईं लेकिन जब प्रेसीडेंट निक्सन ने उन्हें सैन्य कार्रवाई नहीं करने की चेतावनी दी तो इंदिरा गांधी ने साफ जता दिया कि वो इन धमकियों में आने वाली नहीं। 16 अगस्त 1971 वो दिन था, जबकि इंदिरा गांधी ने अमेरिका की चेतावनी की परवाह किए बगैर पाकिस्तानी सेनाओं को न केवल चारों खाने चित्त करके समर्पण के लिए मजबूर किया, बल्कि पाकिस्तान को तोड़कर नया देश बांग्लादेश बना दिया।

पाकिस्तान के खिलाफ वर्ष 1971 के युद्ध के दौरान उन्होंने तब दुनिया की दो महाशक्तियों को आमने सामने खड़ा करके सैन्य कार्रवाई की।

पाकिस्तानी शासक जनरल याह्या खान अमेरिका के आंख के तारे थे। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन उन्हें पसंद करते थे। अमेरिकी प्रशासन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पसंद नहीं करता था। 1971 में जब ऐसा लगने लगा कि भारत पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई कर सकता है, तभी इंदिरा गांधी नवंबर महीने में अमेरिका पहुंचीं। निक्सन ने तय कर लिया कि इंदिरा को कड़ी चेतावनी देंगे। मुलाकात से पहले की शाम राष्ट्रपति निक्सन और विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर की बातचीत में इंदिरा के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया। निक्सन ने उन्हें ओल्ड विच कहा तो किसिंजर ने भारतीयों को बास्टर्ड। अगले दिन की मुलाकात में इंदिरा को कड़ी चेतावनी दी जाने वाली थी। मुलाकात की शुरुआत ही गड़बड़ रही। निक्सन ने हावभाव से जैसी शुरुआत की, उसका वैसा ही जवाब इंदिरा से मिला। इंदिरा ने पूरी मुलाकात में कुछ ऐसा ठंडा रुख अख्तियार कर लिया, मानो उन्हें निक्सन की कोई परवाह ही नहीं हो। निक्सन ने चेतावनी दी, अगर भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की हिम्मत की तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे। भारत को पछताना होगा। किसी और देश के लिए ये चेतावनी पसीने-पसीने कर देने वाली बात होती लेकिन इंदिरा किसी और मिट्टी की बनी थीं। उन्होंने निक्सन के साथ वैसा ही बर्ताव किया, जैसा कोई समान पद वाला करता है। इंदिरा गांधी न केवल गर्वीली थीं बल्कि सम्मान से कोई समझौता नहीं करने वाली। अमेरिका दौरे से पहले सितंबर में वह सोवियत संघ भी गई थीं। भारत को सैन्य आपूर्ति के साथ मास्को के राजनीतिक समर्थन की सख्त जरूरत थी। जब वह पहुंचीं तो पहले दिन प्रधानमंत्री किशीगन से मुलाकात कराई गई। उन्होंने साफ जता दिया कि वह जो बात करने आईं हैं वह देश के असली राष्ट्रप्रमुख ब्रेझनेव से ही करेंगी। अगले दिन ब्रेझनेव से बातचीत हुई। वर्ष 1971 में इंदिरा ने अमेरिका और सोवियत संघ के लिए जैसे पांसे फेंके, वो बेहद नपी-तुली और समझदारी वाली विदेशनीति थी।

अमेरिका से लौटते हुए इंदिरा जी पक्का कर चुकी थीं कि अब करना क्या है। तीन दिन बाद ही दिसंबर के पहले हफ्ते में भारतीय फौजों ने पूर्वी पाकिस्तान में कार्रवाई शुरू कर दी। पाकिस्तानी सेनाओं के पैर उखड़ने लगे। खबर वाशिंगटन पहुंची तो निक्सन बिलबिला गए। उन्हें उम्मीद भी नहीं थी कि उनकी चेतावनी के बाद भी भारत ऐसा करेगा। कुंठित निक्सन ने चीन से संपर्क साधा कि क्या वह भारत के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है, चीन तैयार नहीं हुआ। अब सीधे इंदिरा पर संघर्ष विराम का दबाव डाला गया। दो-टूक जवाब मिला-नहीं ऐसा नहीं हो सकता। अमेरिका ने अपने सातवें बेडे को हिन्द महासागर में पहुंचने का आदेश दिया। तो सोवियत संघ तुरंत सामने आकर खड़ा हो गया। भारत ने संघर्ष विराम तो किया लेकिन 17 दिसंबर को तब जबकि पाकिस्तान ने हार मानने के बाद समर्पण कर दिया। भारत इस दिवस को इसाीलिए विजय दिवस के रूप में मनाता है और गौरव की अनुभूति करता है। (हिफी)

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