मत्तेवाड़ा जंगल करता है लुधियाना के प्रदूषण को साफ

मत्तेवाड़ा जंगल करता है लुधियाना के प्रदूषण को साफ
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सरकार की योजना

955.6 एकड़ जमीन पर बनेगा इंडस्ट्रियल पार्क।

300 एकड़ आलू फार्म की जमीन व 206 एकड़ पशुपालन विभाग के सीड फार्म की जमीन को मिलाकर इसे विकसित किया जाएगा।

416.1 एकड़ जमीन गांव सेखेवाला ग्राम पंचायत की है।

70 परिवार खेती कर रहे हैं अभी इस जमीन पर। इस साल सरकार ने इसको ठेके पर देने के लिए बोली नहीं करवाई है।

27.1 एकड़ ग्राम पंचायत सलेमपुर (आलू बीज फार्म) और 20.3 एकड़ ग्राम पंचायत सैलकलां की है।

2300 एकड़ में फैला है मत्तेवाड़ा जंगल।

छह लेन वाली सड़क बनाई जाएगी सतलुज नदी के साथ।

1964 में गुरदासपुर व अमृतसर से आए लोगों ने आबाद की थी जमीन।

चंडीगढ़। पंजाब के 'फेफड़ों' को संक्रमण का खतरा पैदा हो गया है। यह बात सुनने में कुछ अजीब सी लगती है, लेकिन पंजाब के सबसे प्रदूषित शहर लुधियाना को अगर अब तक किसी ने सांस लेने योग्य बना रखा है तो वह है इसका निकटवर्ती मत्तेवाड़ा जंगल। इसे पंजाब के फेफड़े कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अब इन फेफड़ों को इंडस्ट्री से होने वाले प्रदूषण का खतरा है, इस जंगल के लिए किसी कोरोना संक्रमण से कम नहीं होगा। इस जंगल को बचाने के लिए मुहिम शुरू हो गई है। इस जंगल को बचाने के लिए लोगों ने ऑनलाइन याचिका के माध्यम से जंगल को बचाने का अभियान शुरू कर दिया है। अब 1200 से ज्यादा लोग इस पर ऑनलाइन हस्ताक्षर कर सके है।

इस जंगल के साथ सटी 955.60 एकड़ जमीन पर राज्य सरकार ने इंडस्ट्रियल पार्क विकसित करने की योजना तैयार की है। इसे 8 जुलाई को ही कैबिनेट में मंजूरी दी है। पर्यावरणविदों को आशंका है कि सरकार के इस कदम से जंगल का बचना नामुमकिन है। इंडस्ट्री के प्रदूषण ने पहले लुधियाना के बीच से निकलने वाले बुड्ढा दरिया को नाले में बदल दिया है। अब यहां का वेस्ट पानी मत्तेवाड़ा जंगल के साथ बह रही सतलुज में बहाया जाएगा। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शनिवार को अपने फेसबुक लाइव प्रोग्राम में पर्यावरणविदों की इन्हीं आशंकाओं को निर्मूल बताते हुए कहा कि मत्तेवाड़ा जंगल की एक इंच जमीन भी नहीं ली जाएगी। पंजाब मिडियम इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बोर्ड के चेयरमैन अमरजीत सिंह टिक्का ने भी कहा कि यह मामला पंजाब की मुख्य सचिव विनी महाजन के ध्यान में लाया गया। इस पर उन्होंने कहा कि जंगल की एक इंच भी जगह इस प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित नहीं की जाएगी। गौरतलब है कि पंजाब के वित्तमंत्री मनप्रीत बादल ने बजट में लुधियाना के लिए दो बड़े ऐलान किए थे। पहला राहों रोड स्थित मत्तेवाड़ा में एक हजार एकड़ में नया औद्योगिक पार्क बनाने का, जिसमें टेक्सटाइल उद्योग का हाईटेक कलस्टर विकसित करने का था। प्रोजेक्ट से शहर के होजरी, निटवियर एवं टेक्सटाइल उद्योग को नई दिशा मिलेगी। दूसरा बुड्ढा दरिया के कायाकल्प के लिए 650 करोड़ का प्रावधान किया गया था।

भारत में 657.6 लाख हेक्टेयर भूमि (22.7 प्रतिशत) पर वन पाए जाते हैं। वर्तमान समय में भारत 19.39 प्रतिशत भूमि पर वनों का विस्तार है। गत नौ वर्षों में 2.79 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र विकास की भेंट चढ़ गये जबकि 25 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रत्येक साल घट रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे ज्यादा वन-सम्पदा है उसके बाद क्रमश मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में। भारत में राष्ट्रीय वन नीति के तहत देश के 33.3 प्रतिशत क्षेत्र पर वन होने चाहिए। यूएनईपी के मुताबिक, दुनिया में 50.70 लाख हेक्टेयर भूमि प्रति वर्ष बंजर हो रही है वहीं भारत में ही कृषि योग्य भूमि का 60 प्रतिशत भाग तथा गैर कृषि योग्य भूमि का 75 प्रतिशत गुणात्मक ह्रास में परिवर्तित हो रहा है।

मत्तेवाड़ा जंगल के करीब बनने वाले इंडस्ट्रियल पार्क का गहरा प्रभाव मत्तेवाड़ा के जंगलों पर पड़ेगा। लुधियाना की प्रदूषण से भरी आबोहवा से यहीं की प्रकृति सांस लेने भर के लिए ऑक्सीजन देती है। यहां कई तरह की दुर्लभ वनस्पति है, जो नष्ट हो जाएगी। यह सैकड़ों पशु-पक्षियों का आवास है। उद्योगों के प्रदूषण व शोरगुल से इन पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा। संभव है कि ये यहां से कहीं और पलायन कर जाएं। लोगों व गाड़ियों की आवाजाही बढ़ने से यहां की शांति तो भंग होगी ही मानव जनित कचरा भी कई गुणा बढ़ जाएगा। उद्योगों के केमिकल से जमीन का प्रदूषण स्तर बढ़ने से भूजल भी प्रभावित होगा। केमिकलयुक्त पानी के सतलुज में गिरने से नदी में पल रहे विभिन्न जीवों को खतरा पैदा होगा। साथ ही कृषि की उत्पादकता भी प्रभावित होगी। इन तमाम बातों को देखते हुए लोगों की चिंता जायज लगती है कि क्या इस जंगल में रहने वाले जीव जंतु, प्राकृतिक वनस्पति इस प्रदूषण को झेल पाएगी।

वर्तमान में दुनिया के 7 अरब लोगों को प्राणवायु (आक्सीजन) प्रदान करने वाले जंगल खुद अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वन और जीवन दोनों एक.दूसरे पर आश्रित हैं। वनों से हमें शुद्ध ऑक्सीजन मिलता है और मनुष्य और अन्य किसी भी प्राणी का जीवन ऑक्सीजन के बिना नहीं चल सकता। वृक्ष और वन भू.जल को भी संरक्षित करते हैं। जैव.विविधता की रक्षा भी वनों की रक्षा से ही संभव है। विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए बहुमूल्य वनौषधियां हमें जंगलों से ही मिलती हैं। दुनिया में जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिक विकास और आधुनिक जीवन शैली की वजह से प्राकृतिक वनों पर मानव समाज का दबाव बढ़ता जा रहा है। इसे ध्यान में रखकर मानव जीवन की आवश्यकताओं के हिसाब से वनों के संतुलित दोहन तथा नये जंगल लगाने के लिए भी विशेष रूप से काम करने की जरूरत है। जंगलों को आग से बचाना भी जरूरी है। हरे.भरे पेड़.पौधे, विभिन्न प्रकार के जीव.जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, पठार, नदियां, समुद्र, महासागर, आदि सब प्रकृति की देन है, जो हमारे अस्तित्व एवं विकास के लिए आवश्यक है। वन हमें भोजन ही नहीं वरन् जिंदगी जीने के लिए हर जरूरी चीजें मुहैया कराते है। पेड़ पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं और पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करते हैं। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एवं सिमटते जंगलों की वजह से भूमि बंजर और रेगिस्तान में तब्दील होती जा रही है जिससे दुनियाभर में खाद्य संकट का खतरा मंडराने लगा है। ऐसे में हम अगर समय रहते सजग नहीं हुए तो पृथ्वी पर पर्यावरणीय संकट और भी गहरा हो सकता है। पंजाब में मत्तेवाड़ा जंगल को कोई क्षति नहीं पहुंचाई जाए ये कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार को ध्यान में रखना होगा।

(नाज़नींन-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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