ईवीएम का स्थान लेगी फिर मतपेटी?

ईवीएम का स्थान लेगी फिर मतपेटी?

लखनऊ। बीते कुछ दिनों के दौरान बिहार में कोविड-19 के मामले बहुत तेजी के साथ बढ़े हैं। विपक्षी दल कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर राज्य की नीतीश सरकार को घेर रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव सबसे ज्यादा सरकार के खिलाफ मुखर हैं। राजनीतिक सरगर्मी चुनाव को लेकर है। चुनाव में मतदान कैसे होगा, यह अभी तय नहीं। एक पूर्व चुनाव आयुक्त ने सुझाव दिया है कि कोरोना को देखते हुए बिहार में विधान सभा चुनाव इस बार बैलटपेपर से कराए जाने चाहिए । इसी के साथ चुनाव आयोग द्वारा जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि 65 साल से अधिक उम्र के लोग, गर्भवती महिलाओं और 10 साल से कम उम्र को अनिवार्य तौर पर घरों के भीतर रहना है, जब तक कोई अतिआवश्यक काम या फिर हेल्थ इमरजेंसी न हो घर से बाहर नहीं निकलना है। कोरोना की स्थितियों को देखते हुए ही आयोग ने पहले 65 साल से अधिक उम्र के लोगों और कोरोना मरीजों के भी पोस्टल बैलट के प्रयोग का निर्णय लिया था। ऐसा इसलिए किया गया कि ये लोग अपने अधिकारों से वंचित न रहें। अब वर्तमान स्थितियों को देखते हुए आयोग ने फैसला किया है कि ये सुविधा अब नहीं मिलेगी।

चुनाव आयोग ने कहा है कि आगामी बिहार चुनाव में 65 साल से अधिक की उम्र के मतदाता पोस्टल बैलट का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। चुनाव आयोग की तरफ से फैसला कोविड-19 के बढ़ते मामलों के मद्देनजर लिया गया है। साथ ही कोरोना वायरस के मरीज को भी पोस्टल बैलट के इस्तेमाल की सुविधा न मिलने की बात कही गई है। इससे पहले चुनाव आयोग ने कहा था कि कोरोना वायरस के मद्देनजर राज्य में 65 साल से अधिक के लोग पोस्टल बैलट के जरिए ही वोट डाल सकेंगे।

वर्तमान व्यवस्था के मुताबिक सेना, पैरामिलिट्री फोर्सेज और विदेशों में काम कर रहे सरकारी कर्मचारियों समेत निर्वाचन की ड्यूटी में तैनात कर्मियों को पोस्टल बैलट का अधिकार प्राप्त है। साथ ही बीते साल अक्टूबर महीने में कानून मंत्रालय ने 80 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों और दिव्यांगों को भी पोस्टल बैलट से वोट की सुविधा दी थी। सरकार द्वारा ये कदम वोटिंग को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया था।बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वरिष्ठ नागरिकों के लिए पोस्टल बैलट की सुविधा लागू किए जाने को लेकर जहां एक तरफ विपक्षी पार्टियां सरकार और चुनाव आयोग पर हमलावर हैं तो दूसरी तरफ पूर्व चुनाव आयुक्त ने इस फैसले को सही ठहराया। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि इस फैसले को लागू करने से पहले सरकार को सभी राजनीतिक दलों के साथ चर्चा करनी चाहिए थी।

कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए हाल ही में एक नोटिफिकेशन जारी किया गया जिसमें कहा गया कि 65 साल से ज्यादा उम्र के लोग, वायरस से संक्रमित मरीज और जिन्हें संक्रमण का खतरा हो सकता है, उन्हें मतदान केंद्रों तक आने की बजाय पोस्टल बैलट से वोट डालने का अधिकार दिया गया है। इसी नोटिफिकेशन को लेकर वामपंथी दल और बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने न सिर्फ चुनाव आयोग पर बल्कि केंद्र सरकार पर भी हमला बोला है। दोनों विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इस सुविधा के जरिये गलत तरीके से बीजेपी को बिहार चुनाव में फायदा पहुंचाने की तैयारी है।

इसी नियम पर उठे विवाद को लेकर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत का कहना है कि ऐसे नोटिफिकेशन और निर्देश चुनाव आयोग नहीं बल्कि केंद्र सरकार जारी करती है क्योंकि नियम बनाने का अधिकार चुनाव आयोग के पास नहीं है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह भी कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग के दिशा निर्देश में कहा गया है कि 65 वर्ष की उम्र से ज्यादा के लोग या जिन्हें कोरोना वायरस का खतरा हो वे बाहर न निकलें। ऐसे में जाहिर है कि वे लोग किसी भी चुनाव में मतदान बूथ तक नहीं जा सकते। शायद इसी वजह से सरकार ने पोस्टल बैलट की सुविधा के लिए आदेश जारी किए हैं। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि बेहतर होता कि सरकार ऐसे आदेश जारी करने के पहले तमाम राजनीतिक दलों के साथ बातचीत करती। इस आदेश को लागू करने के पहले उनके मत लिए जा सकते थे। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने पोस्टल बैलट लागू किए जाने के सरकार के फैसले को फिलहाल सही ठहराया, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को आदेश लागू करने के पहले चर्चा जरूर करनी चाहिए थी।

इसी बीच यह भी चर्चा है कि ईवीएम का प्रयोग कोरोना के चलते नहीं किया जाएगा। हमारे लोकतंत्र में चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। इसी के माध्यम से देश की जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है। मतपत्र के सहारे ही चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई थी लेकिन बाहुबल के चलते मतपेटी पर ही कब्जा शुरू हो गया। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने चुनाव आयोग की ताकत को ही नहीं बढ़ाया बल्कि चुनाव में पारदर्शिता लाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम ) से मतदान की प्रक्रिया शुरू की। ईवीएम का पहली बार प्रयोग 1982 में केरल विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के 50 निर्वाचन केन्द्रों पर हुआ था। बाद में 1983 के बाद ईवीएम के प्रयोग को वैधानिक रूप देने की प्रक्रिया शुरू हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए आदेश जारी किया। दिसम्बर 1988 में संसद ने कानून में संशोधन किया तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में एक नयी धारा 61- ए जोड़ी गयी जो आयोग को ईवीएम से चुनाव कराने का अधिकार देती है। इस प्रकार संशोधित प्रावधान 15 मार्च 1989से प्रभावी हुआ। केन्द्र सरकार द्वारा फरवरी 1990 में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों को लेकर क्षेत्रीय चुनाव समिति बनाई गयी। भारत सरकार ने ईवीएम के प्रयोग पर विचार के लिए विषय को चुनाव सुधार समिति के पास भेजा। भारत सरकार ने एक विशेषग्य समिति का भी गठन किया जिसके सदस्य प्रोफेसर एस सम्पत तत्कालीन अध्यक्ष आरएसी रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन, प्रोफेसर पीवी इन्द्रेशन तथा आई आईटी दिल्ली के प्रोफेसर बनाए गये थे। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ये मशीन छेड़छाड़ से मुक्त है अर्थात इसमें कोई गड़बड़ नहीं कर सकता। इसके बाद 24 1992 को सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय ने चुनाव कराने संबंधी कानूनों -1961 में आवश्यक संशोधन की अधिसूचना जारी की। चुनाव आयोग ने नयी ईवीएम के वास्तविक इस्तेमाल के लिए स्वीकार करने से पहले उनके मूल्यांकन के लिए एक बार फिर तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन किया। इस प्रकार नवम्बर 1996 के बाद से चुनाव और उपचुनाव में ईवीएम का प्रयोग होता आ रहा है।

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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