आज ही के दिन 1905 को इलाहाबाद में जन्में थे हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यान चन्द

आज ही के दिन 1905 को इलाहाबाद में जन्में थे हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यान चन्द
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तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे हाॅकी के जादूगर के खिताब से विभूषित भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान मेजर, ध्यानचंद सिंह जन्म आज ही के दिन 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में राजपूत परिवार में ब्रिटिश इंडियन आर्मी के अफसर समेश्वर सिंह के पुत्र रूप में हुआ था। समेश्वर सिंह आर्मी के लिए हॉकी खेलते थे। उनके पिता के बार-बार होने वाले ट्रांसफर के चलते ध्यानचंद को कक्षा छह के बाद पढाई छोड़नी पड़ी थी। उनका परिवार आखिर में उत्तर प्रदेश के झांसी में बस गया था। भारत एवं विश्व हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में उनकी गिनती होती है। अपनी आत्मकथा गोल में उन्होंने लिखा था कि आपको मालूम होना चाहिए कि मैं बहुत साधारण आदमी हूं।



इलाहाबाद में पैदा हुए ध्यानचंद को खेल जगत की दुनिया में दद्दा कहकर पुकारते हैं। ध्यानचंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न के अलावा अर्जुन, ध्यानचंद पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार आदि दिए जाते हैं। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। उन्हें 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।




मेजर ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है। गेंद इस कदर उनकी स्टिक से चिपकी रहती कि प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को अक्सर आशंका होती कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं। यहाँ तक हॉलैंड में उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका में उनकी स्टिक को तोड़ कर भी देखा गया था। मेजर ध्यान सिंह से प्रभावित होकर रुडोल्फ हिटलर ने उन्हें जर्मनी के लिए खेलने की पेशकश की थी, लेकिन मेजर ध्यानचंद ने हमेशा भारत के लिए खेलने में ही सबसे बड़ा गौरव समझा। अंतर्राष्ट्रीय मैचों में उन्होंने 400 से अधिक गोल किए। अप्रैल 1949 को मेजर ध्यानचन्द्र ने प्रथम कोटि की हाकी से संन्यास ले लिया। समय-समय पर बहुत से संगठन और प्रसिद्ध लोग समय-समय पर उन्हें भारतरत्न से सम्मानित करने की माँग करते रहे हैं, लेकिन उन्हें यह सम्मान अभी तक नहीं दिया गया। अब भारतीय जनता पार्टी की सरकार होने से उन्हे यह सम्मान प्रदान किये जाने की सम्भावना बहुत बढ़ गयी है।


16 साल की उम्र में ध्यानचंद भारतीय सेना के साथ जुड़ गए थे। इसके बाद ही उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। ध्यानचंद को हॉकी का इतना जुनून था कि वह रात में प्रैक्टिस किया करते थे और अक्सर चांद निकलने तक हॉकी का अभ्यास करते रहते थे। इसी वजह से उनके साथी खिलाड़ी उन्हें चांद कहने लगे थे। 1928 एम्सटर्डम ओलिंपिक गेम्स में वह भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे। उन खेलों में ध्यानचंद ने 14 गोल किए थे। तब एक अखबार ने लिखा था कि यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं। 1932 के ओलिंपिक फाइनल में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका को 24-1 से हराया था। उस मैच में ध्यानचंद ने 8 और उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए थे। मेजर ध्यानचंद ने आखिरी अंतराष्ट्रीय मैच 1948 में खेला था। हॉकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित सेंटर-फॉरवर्ड खिलाड़ी ध्यानचंद ने 42 वर्ष की आयु तक हॉकी खेलने के बाद वर्ष 1948 में हॉकी से संन्यास ग्रहण कर लिया था।




1951 में कैप्टन ध्यानचंद के सम्मान में नेशनल स्टेडियम में ध्यानचंद टूर्नामेंट रखा गया। कई सफल टूर्नामेंटों में हिस्सा लेने के बाद, 1956 में 51 वर्ष की उम्र में कैप्टन ध्यानचंद आर्मी से मेजर की पोस्ट से रिटार्यड हो गए। भारत सरकार ने उन्हें इसी वर्ष पद्मभूषण से सम्मानित किया।
रिटायर्मेंट के बाद वे राजस्थान के माउंटआबू में हॉकी कोच के रूप में कार्य करते रहे। इसके बाद पाटियाला के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स में वह चीफ हॉकी कोच बन गए। यहां कई साल तक वे इस पद पर रहे। अपने जीवन के आखिरी दिनों में ध्यानचंद अपने गृहनगर झांसी (उत्तरप्रदेश) में रहे। कैंसर जैसी बीमारी से जूझते हुए मेजर ध्यान चंद का 3 दिसंबर 1979 में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस दिल्ली में स्वर्गवास हो गया था। उनकी रेजीमेंट पंजाब रेजीमेंट ने पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया था।





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