पश्चिमी यूपी के ये फायरब्रांड नेता क्यों हारे?- पढिये विशेष रिपोर्ट

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लखनऊ। साल 2013 में जुलाई का महीना खत्म होने को था, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और शामली जनपदों में छोटी-छोटी घटनाओं को लेकर सांप्रदायिक तनाव लगातार बन रहा था। इसी बीच शामली में एक लड़की के साथ बलात्कार के आरोप के मामले में शामली के कैराना सीट से विधायक बाबू हुकुम सिंह और थानाभवन से विधायक फायर ब्रांड नेता सुरेश राणा निष्पक्ष कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाते हुए शामली के तत्कालीन एसपी के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे।

लड़का और लड़की के अलग-अलग संप्रदाय से होने के कारण शामली में तनाव पैदा हो रहा था। इसी बीच शाहपुर थाना क्षेत्र के सौरम गांव में जाट और मुस्लिमों के बीच विवाद हो गया, क्योंकि उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी तो जाहिर सी बात थी कि भारतीय जनता पार्टी के नेता आरोप लगा रहे थे कि सरकार के दबाव में पुलिस निष्पक्ष कार्रवाई नहीं कर रही है। इसी बीच पिछले 20 वर्षों में मुजफ्फरनगर जनपद के साथ-साथ बुढाना इलाके में हिंदुत्व चेहरे के तौर पर स्थापित हो चुके उमेश मलिक ने तत्कालीन सरकार के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी।


अभी सोरम की घटना को लेकर क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव बना हुआ था कि 27 अगस्त 2013 को जानसठ थाना क्षेत्र के गांव कवाल में लड़की छेड़ने की कथित घटना के बाद जहां सचिन एवं गौरव की हत्या हो गई तो वही शाहनवाज को भी मौत का शिकार होना पड़ा। इस घटना का होना था कि उमेश मलिक, सुरेश राणा संजीव बालियान, संगीत सोम एंव कपिलदेव अग्रवाल सहित भाजपा के फायर ब्रांड नेताओं ने समाजवादी पार्टी सरकार के खिलाफ उसी रात डीएम एसएसपी का ट्रांसफर करने और सचिन - गौरव की हत्या का आरोपी मानते हुए कुछ लोगों को हिरासत में लेने के बाद पुलिस द्वारा छोड़ने पर यूपी सरकार के खिलाफ बिगुल बजा दिया।

इन फायर ब्रांड नेताओं का आरोप था कि तत्कालीन कैबिनेट मंत्री और मुजफ्फरनगर जनपद के प्रभारी आजम खान के द्वारा दबाव में पुलिस ने उन आरोपियों को छोड़ा है। इन्हीं आरोपों के बीच भाजपा के फायरब्रांड नेताओं ने 6 सितंबर 2013 को सिखेड़ा थाना क्षेत्र के नगला मंदौड़ में एक महापंचायत का आयोजन कर दिया। भाजपा के फायर ब्रांड नेताओं की नगला मंदौड़ पंचायत में पहुंचने की अपील का एहसास हुआ कि मुजफ्फरनगर ही नहीं आसपास के जनपदों की एक भारी भीड़ नगला मंदौड़ में पहुंच गई।

नगला मंदौड़ की पंचायत के बाद लौटते समय मुजफ्फरनगर संप्रदायिक दंगे की आग में झुलस गया और इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ मुजफ्फरनगर जनपद की बुढ़ाना विधानसभा का इलाका। लांक, खरड़, फुगाना, बाहवड़ी, जोगिया खेड़ा, कुटबा, कुटबी, काकड़ा, सोरम, भौराकलां, जैसे इस इलाके के गांवों दंगा हो गया। जहां दंगे के कारण सौ के लगभग मौत हुई तो वही हजारों लोगों को पलायन भी करना पड़ा ।यह वह इलाका था जिसकी सीमा मेरठ जनपद की सरधना विधानसभा के साथ-साथ शामली जनपद की शामली सदर एंव थानाभवन विधानसभा सीट से भी मिलती थी।


मुजफ्फरनगर दंगे पर सरकार के खिलाफ सबसे ज्यादा हमलावर होने वालों में उमेश मलिक, सुरेश राणा, संगीत सोम, संजीव बालियान सबसे आगे थे। सपा सरकार के खिलाफ इस बड़े आंदोलन का नेतृत्व करने वाले इन फायर ब्रांड नेताओं पर सरकार ने मुकदमे दर्ज करते हुए रासुका के तहत जेल में बंद कर दिया।

2013 के दंगों के बाद सुरेश राणा, उमेश मलिक, संगीत सोम फायर ब्रांड नेता के तौर पर पूरी तरह से स्थापित हो चुके थे, हालांकि यह तीनों नेता पहले से ही अपने-अपने जनपदों में हिंदुत्व के नेता के तौर पर पहचान बनाए रखते हैं। सुरेश राणा जहां जलालाबाद में मंदिर के मामले को लेकर संघर्ष करने की कहानी हो तो वही अलनूर मीट प्लांट सहित अन्य मामलों में उमेश मलिक हमेशा संघर्ष के अगुआ बन कर काम करते रहे हो या मेरठ जनपद की सरधना विधानसभा में भाजपा के विधायक के तौर पर हिंदुत्व के मुद्दे को गरमाने वाले संगीत सोम हो। यह तीनों नेता हमेशा ऐसे ही पूरे विपक्ष के निशाने पर रहते थे। दरअसल पूरे विपक्ष के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय का मानना था कि यह तीनों नेता कट्टर हिंदुत्व की बात करते हैं, जिस कारण जब भी किसी मामले में सांप्रदायिकता का टच आया तो इन तीनों नेताओ ने मोर्चा खोलने में कभी पीछे मुड़कर नही देखा है। 2017 में जब यह तीनों एक साथ सरधना से संगीत सोम, बुढ़ाना से उमेश मलिक और थाना भवन से सुरेश राणा, तीनों विधानसभा के बॉर्डर टू बॉर्डर मिलने वाली तीनों विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की गई और उत्तर प्रदेश में भी फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया तो इन तीनों नेता अपनी हिंदुत्व छवि को और निखारते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के फायर ब्रांड नेता के तौर पर स्थापित हो गए।


योगी सरकार के 5 साल के कार्यकाल में जहां भारतीय जनता पार्टी मजबूत हुई वहीं तीनों नेता अपनी-अपनी विधानसभा क्षेत्रों में कुछ ऐसे मुद्दों को हवा देने पर काम करना शुरू किया। जिससे वर्ग विशेष में एक डर पैदा हुआ कि अन्य विधानसभा क्षेत्रों के मुकाबले में सरधना, बुढ़ाना और थानाभवन में हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर तीनों विधायक ज्यादा सक्रिय हैं। 2022 का जब इलेक्शन आया तो इन तीनों फायर ब्रांड नेताओं की कट्टर हिंदुत्व वाली छवि का ही नतीजा था कि तीनों विधानसभा क्षेत्रों में बड़ी तादाद में मौजूद मुस्लिम वोटरों ने एक तरफा गठबंधन के पक्ष में 100 प्रतिशत मतदान किया। इन तीनों विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटरों ने इन तीनों को हराने के लिए किसी अन्य प्रत्याशी को वोट नहीं किया। उन्होंने गठबंधन के प्रत्याशियों को अपना मतदान प्रतिशत बढ़ाते हुए बंपर वोट किया। इन सीटों पर वोटरों ने बसपा, औवेसी की पार्टी, कांग्रेस को बिल्कुल नकारते हुए गठबंधन के पक्ष में वोट किया। जिसका नतीजा रहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के फायरब्रांड नेता के तौर पर जाने जाने वाले सरधना से संगीत सोम, बुढाना से उमेश मलिक और थाना भवन से सुरेश राणा को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि 2022 के इलेक्शन में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार 2.0 की वापसी हो चुकी है। इसलिए इन विधानसभा क्षेत्रों के भाजपा विरोधी वोटरों को लगने लगा है कि यह तीनों फायर ब्रांड नेता अगर मजबूत हो गए तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व के मुद्दे को यह तीनों नेता धार देते रहेंगे।

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