सरकार ने चलाई योजना के तहत सब गांव में होगी अपनी अपनी झीले

सरकार ने चलाई योजना के तहत सब गांव में होगी अपनी अपनी झीले

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में पीने के पानी का जबर्दस्त संकट है, उसी तरह उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ में भी महिलाएं दूर-दराज से प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी लेकर आती हैं। राज्य के सीमांत जिले पिथौरागढ़ में पीठ पर पानी ढोने में ही सारा दिन निकल जाता है। सेरी कांडा जैसे ग्रामीण इलाकों में ऐसे दृश्य सामान्य रूप से देखे जा सकते हैं। पेयजल किल्लत की गुहार सरकार तक लगायी गयी। देश में इस समय आजादी की हीरक जयंती मनायी जा रही है। आजादी के अमृत महोत्सव के तहत देश भर में कई योजनाएं भी चलायी जा रही हैं। इन योजनाओं में एक योजना अमृत सरोवर योजना है। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में दूसरी बार सरकार की कमान संभाली है। शुरुआती समय विधानसभा के उपचुनाव में निकल गया। हालांकि चुनाव से पूर्व भाजपा ने समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया था और इसका प्रस्ताव सबसे पहले पारित कराया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर धामी खटीमा से विधानसभा का उपचुनाव भी जीत गये। इस प्रकार राज्य के विकास के प्रति अब उनका पूरा ध्यान है। पिथौरागढ़ की पेयजल समस्या के समाधान की दिशा में सरकार ने महत्वाकांक्षी योजना बनायी है। इस योजना के तहत हर गांव की अपनी एक झील होगी। पिथौरागढ़ जिले में अलग-अलग ग्रामीण इलाकों में 73 झीलें बनायी जा रही हैं। इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा और महिलाओं को दो-दो किलोमीटर पहाड़ पर चढ़कर पानी लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। एक बात जरूर है जिस पर सरकार को गंभीरता से ध्यान देना होगा। आदि कैलाश मानसरोवर जैसे तीर्थ स्थलों में भी कूड़े-कचरे का ढेर लगने लगा है। पर्यटकों को इसके प्रति सचेत करना पड़ेगा।

आजादी के अमृत महोत्सव के तहत अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इन्हीं योजनाओं के तहत केंद्र सरकार द्वारा अमृत सरोवर योजना पूरे देश में चलाई जा रही है, जिसमें बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए छोटी और बड़ी झीलों का निर्माण किया जा रहा है। यह योजना पर्वतीय इलाकों के लिए वरदान साबित हो सकती है, जो यहां पर्यटन को बढ़ाने के साथ-साथ सिंचाई, प्राकृतिक जल स्रोतों को रिचार्ज करने और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की आय बढ़ाने का काम करेगी। इस योजना में उत्तराखंड राज्य में कुल 1017 सरोवरों का निर्माण हो रहा है, जिसमें पिथौरागढ़ जिले में 73 अलग-अलग ग्रामीण इलाकों में झीलें बनाई जा रही हैं। पिथौरागढ़ जिले के मढ़मानले, लेलू, पौड़, कटियानी, सल्ला, मझेड़ा, गुरना, बड़तयाकोट महर, चामी भैंसकोट, नैनीपातल समेत 73 जगहों पर झील का निर्माण किया जा रहा है जबकि बड़कोट, थरालू सहित 12 जगहों पर निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। पहाड़ों में जैसे-जैसे आधुनिकता बढ़ रही है, वैसे-वैसे यहां के प्राकृतिक जल स्रोत भी सूखते जा रहे हैं, जो एक गंभीर समस्या है क्योंकि अभी भी कई ग्रामीण इलाके पानी के इन्हीं प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर हैं। झीलों के निर्माण से ये प्राकृतिक स्रोत रिचार्ज हो सकेंगे। पिथौरागढ़ की मुख्य विकास अधिकारी अनुराधा पाल ने बताया कि जिले में पहले से ही जल संवर्धन को लेकर कार्य किए जा रहे हैं, जिसके तहत 12 जलाशयों का निर्माण हो चुका है। साथ ही 45 जलाशयों का कार्य 15 अगस्त तक पूरा हो जाएगा, जिससे पिथौरागढ़ के पर्यटन को बढ़ावा मिलने के साथ ही यहां कृषि और रोजगार के अवसर भी बढ़ पाएंगे।

पहाड़ों में किसान मुख्य तौर पर सिंचाई के लिए बारिश पर ही निर्भर रहते हैं। समय से बारिश न होना फसलों की बर्बादी का एक बड़ा कारण भी बनता है। ग्रामीण इलाकों में बारिश के पानी को एकत्र कर बन रहे ये जलाशय निश्चित ही सिंचाई में मददगार साबित होंगे, जिससे यहां के किसानों को काफी लाभ मिल सकेगा। ऊंचे-नीचे और पथरीले रास्ते पर्यटकों के लिए भले ही सौंदर्य की कल्पना रचते हों, लेकिन यहां जीने वालों के लिए ये रोज की कठिनाई ही होते हैं। उत्तराखंड पर्वतीय राज्य है, जहां की खूबसूरती देखने लोग विदेशों तक से पहुंचते हैं। यहां के ऊंचे पहाड़ जितने खूबसूरत लगते हैं, उससे कई ज्यादा यहां रहने वाले लोग कठिन परिस्थितियों में अपना जीवन बिताते हैं। टेढ़े-मेढ़े रास्तों के साथ पहाड़ों की कठिन चढ़ाई और संसाधनों की कमी से यहां के लोगों की समस्याएं भी काफी बड़ी हैं, जिसे अपनी मजबूरी और अपनी जीवनशैली का हिस्सा मानकर लोग जीवनयापन करते हैं। पिथौरागढ़ जैसे पहाड़ी जिलों में ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी काफी कठिन है, जिनके ऊपर पहाड़ जैसी जिम्मेदारियां होती हैं। पिथौरागढ़ में कई ऐसे गांव हैं, जहां सरकार की तमाम पेयजल योजनाएं आज तक नहीं पहुंच पाई हैं, जिससे यहां महिलाओं को प्राकृतिक जल स्रोतों की तलाश करनी पड़ती है जो काफी दूर होते हैं। वहां से पानी पीठ पर ढोने में ही महिलाओं का सारा दिन निकल जाता है। पहाड़ी रास्तों पर 40 लीटर के बर्तन में पानी ढोने की कल्पना शायद ही कोई शहरी व्यक्ति कर पाए। हम पिथौरागढ़ के ग्रामीण इलाके सेरी कांडा की बात कर रहे हैं, जहां अभी तक सरकार की तमाम पेयजल योजनाएं नहीं पहुंच सकी हैं। नतीजा यह है कि यहां की महिलाओं को थोड़े-बहुत पानी के लिए भी दो किलोमीटर दूर पहाड़ की चढ़ाई करनी पड़ती है और इसी पानी से पूरे घर के काम होते हैं। पीठ पर पानी ढोने में महिलाओं का पूरा दिन निकल जाता है। सेरी कांडा के स्थानीय युवक पेयजल की समस्या को लेकर कई बार जिला मुख्यालय पहुंच चुके हैं। इस गांव जैसे पिथौरागढ़ में अनेक ऐसे गांव हैं, जहां पेयजल की आपूर्ति अभी तक नहीं हो पाई है, जबकि सरकार की ग्रामीण इलाकों तक पानी पहुंचाने की तमाम योजनाएं चल रही हैं, लेकिन धरातल पर पहाड़ों की एक बड़ी आबादी अभी भी प्राकृतिक स्रोतों पर ही निर्भर है।

इन प्राकृतिक जल स्रोतों की भी हम हिफाजत नहीं कर पा रहे हैं। आदि कैलास और ओम पर्वत तक रोड कट गई है। रोड कटने के बाद पहली बार यहां सैलानियों का तांता भी नजर आया। सैलानियों की बढ़ती तादाद भले ही पर्यटन कारोबार को परवान चढ़ा रही हो, लेकिन इससे ग्लेशियर सीधे प्रभावित हो रहे हैं। हालात ये हैं कि पार्वती ताल, ओम पर्वत और आदि कैलास में सैलानियों से पर्यावरण की जमकर धज्जियां उड़ाई हैं। अनछुए दुर्लभ स्थलों में जहां प्लास्टिक पहुंचा है, वहीं पार्वती ताल सैलानियों के कपड़े से पटी है। यहां एक महीने में 6000 से अधिक सैलानी पहुंच चुके हैं। यही नहीं पूजा की सामग्री से भी ये अतिसंवेदनशील इलाके पटे हैं। इन इलाकों में लंबे समय से शोध कार्यों में जुटे वनस्पति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सचिन बोहरा का कहना है कि ग्लेशियर के करीब जरूरत से अधिक इंसानी हरकत पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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