सिद्दीकी जी! आप यहां क्यों कष्ट उठा रहे!

सिद्दीकी जी! आप यहां क्यों कष्ट उठा रहे!

नई दिल्ली। बिहार में लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी भारत को रहने लायक ही नहीं समझते। उन्होंने अपने बच्चों को ब्रिटेन में ही नागरिकता लेने और नौकरी करने की खुलेआम सलाह दी है। ऐसे कथित जनसेवकों पर इस देश को शर्म आती है। सिद्दीकी साहेब के विचारों से उनकी मुस्लिम बिरादरी भी सहमत नहीं होगी। अब्दुल बारी सिद्दीकी ने अपने और हमारे देश का अपमान किया है जहां सिद्दीकी बजू करके नमाज पढ़ते हैं और शान-शौकत की जिंदगी जी रहे हैं। सिद्दीकी के इस बयान की निंदा की जानी चाहिए और उनसे गुजारिश भी की जिस देश का माहौल ऐसा है जहां उनके बेटे-बेटी नहीं रह सकते, वहां रहकर वे स्वयं क्यों कष्ट उठा रहे हैं? सिद्दीकी के इस प्रकार के दूषित बयान से राजद और उसके नेताओं को भी अच्छी नजर से नहीं देखा जाएगा। बिहार की भाजपा इकाई ने सिद्दीकी के बयान की कटुनिंदा की है लेकिन अन्य राजनीतिक दलों की खामोशी हैरान करने वाली है। तेजस्वी यादव को इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया शीध्र देना चाहिए क्योंकि नीतीश कुमार ने उनको बिहार में अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। इससे पहले भी अब्दुल बारी सिद्दीकी भारत को आजादी दिलाने की सशक्त आवाज बंदे मातरम को लेकर जहर उगल चुके हैं। देश के माहौल पर अपने बयान पर अब्दुल बारी स्थिर हैं अर्थात यह बात उन्होंने होशोहवास में कही है। अब्दुल बारी सिद्दीकी को पहले राजद का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा रहा था लेकिन सिंगापुर में इलाज कराने के लिए जाने से पहले लालू यादव ने जगदानंद सिंह को ही प्रदेश अध्यक्ष रहने की घोषणा की थी।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बिहार इकाई ने अपने बच्चों को विदेश में बसने की सलाह देने के लिए राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी की आलोचना की। सिद्दीकी के एक समारोह में भाषण की पिछले हफ्ते सोशल मीडिया पर वायरल हुई। एक छोटी वीडियो क्लिप में उन्हें यह कहते हुए सुना जा सकता है, ''देश का जो माहौल है, उसे बताने के लिए मैं एक व्यक्तिगत उदाहरण का हवाला देना चाहता हूं। मेरा एक बेटा है जो हार्वर्ड (यूनिवर्सिटी) में पढ़ रहा है और एक बेटी है, जो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ी है। मैंने उनसे कहा है कि वे विदेश में नौकरी तलाशें और हो सके तो विदेशी नागरिकता भी ले लें। सिद्दीकी को वायरल वीडियो में यह भी कहते सुना जा सकता है, जब मेरे बच्चों ने मेरे यहां (भारत में) रहने की ओर इशारा करते हुए (मेरी सलाह पर) अविश्वास के साथ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की तो मैंने उनसे कहा कि वे सामना नहीं कर पाएंगे।

बहरहाल, इस वीडियो में राजद नेता को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शासनकाल के दौरान मुसलमानों और उनकी स्थिति को लेकर सीधे तौर पर कुछ कहते नहीं सुना जा सकता, पर भाजपा ने उन पर निशाना साधते हुए कहा, ''सिद्दीकी की टिप्पणी भारत विरोधी है. अगर वह इतने दबाव में हैं तो उन्हें एक राजनीतिक नेता के रूप में यहां मिलने वाले विशेषाधिकारों को छोड़ देना चाहिए और पाकिस्तान चले जाना चाहिए। कोई भी उन्हें रोक नहीं पाएगा। भाजपा की बिहार इकाई के प्रवक्ता निखिल आनंद ने नाराजगी जताते हुए कहा, ''सिद्दीकी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के करीबी सहयोगी हैं और उनकी बातें उनकी पार्टी की मुस्लिम तुष्टिकरण की संस्कृति को दर्शाती हैं।

राजद के वरिष्ठ नेता और बिहार के पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि उन्हें 'भारत माता की जय' बोलने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन राष्ट्रगीत वंदे मातरम गाना उनकी आस्था के खिलाफ है।

लालू प्रसाद और जगदानन्द की दोस्ती का रंग फीका पड़ गया। राजनीति के इस सियासी खेल में राजद के लिए ज्यादा मुफीद अब्दुल बारी सिद्दीकी लगने लगे, सो प्रदेश अध्यक्ष पद पर कौन के प्रश्न का समाधान बन कर एक नाम आया और प्रायः सभी अधिकारियों के वे पसंदीदा बन गए। दरअसल दोस्ती के निर्वहन की राह पर चलते ही जगदानंद सिंह ने लालू प्रसाद के उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, जिसमें लालू प्रसाद ने कठिन समय में प्रदेश की बागडोर संभालने को कहा था। इस खास घड़ी में लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव की तमाम गुस्ताखियों को नजरअंदाज करते जगदानंद सिंह ने राजद की नई चुनौती को स्वीकार कर प्रदेश अध्यक्ष बनने की स्वीकृति दे दी थी। लेकिन राजनीत का यू टर्न तब आया जब जगदानंद सिंह के पुत्र कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने तमाम राजनीतिक मर्यादाओं को ताक पर रख अपने विद्रोही तेवर से अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। यही बात नीतीश और तेजस्वी की जोड़ी को चुभ गई। ये सियासी शोर शांत तब हुआ जब कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। एक पिता के लिए ये चुभने वाली बात थी। इसके बाद जगदानंद सिंह ने अनमने ढंग से प्रदेश अध्यक्ष पद को एक तरह से न कर दिया। उन्हें एतबार था कि लालू प्रसाद उन्हें मना लेंगे। राजद सुप्रीमो ने उन्हें मनाया तो नहीं पर कार्यालय आने से भी रोका भी नहीं।

दरअसल वर्तमान समय राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत ले कर आया है, जहां लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की राजनीत का पटाक्षेप होना है और तेजस्वी यादव के कार्यकाल का शुभारंभ होना है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष का पद ज्यादा दिन तक खाली नहीं रखा जा सकता। सामने लोकसभा का 2024 और 2025 का बिहार विधान सभा चुनाव भी दस्तक दे रहा थ। ऐसे में तेजस्वी यादव को एक मजबूत संगठन की जरूरत है, जिसकी बागडोर एक अनुभवी नेता के हाथ में हो। इस आधार पर अब्दुल बारी सिद्दीकी एक आजमाया नाम सामने आया।

राजद की सबसे बड़ी चुनौती है एम वाई समीकरण को अटूट रखना। इधर से मुस्लिम मतों में बिखराव भी राजद की परेशानी का कारण बन गया है। खास कर ओवैसी फैक्टर ने जिस तरह से नुकसान पहुंचाया है उसके उपाय का रास्ता भी सिद्दीकी से हो कर गुजरता है। सीमांचल एरिया में राजद को जो नुकसान हुआ वह अब बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी दस्तक देने लगा। हाल में ही गोपालगंज में 12 हजार मत एआईएमआईएम के खाते में जाना राजद उम्मीदवार की हार का कारण बना। कुढ़नी में भी ओवैसी ने उम्मीदवार खड़ा कर महागंठबंधन की मुश्किल बढ़ा दी थी। सिंगापुर जाने से पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव प्रदेश अध्यक्ष का मामला सुलझाना चाहते थे, इसके लिए लालू ने अब्दुल बारी सिद्दीकी का नाम फाइनल भी कर लिया था। कुढ़नी उपचुनाव में महागठबंधन को मिली हार और भाजपा की जीत पर लगातार दोनों तरफ से प्रतिक्रियाएं आ रही थी।

बहरहाल, लालू यादव ने जरादानेद बाबू को ही अध्यक्ष की कुर्सी संभालने को कहा था। अच्छा हुआ अब्दुल बारी सिद्दीकी को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया गया। उनके हाल के ब्यान को देखते हुए उन्हें पार्टी से अलग कर देना चाहिए। (हिफी)

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