सियासत में नहीं आना चाहते थे रामगोपाल यादव- फिर किसके कहने पर लड़े चुनाव?

सियासत में नहीं आना चाहते थे रामगोपाल यादव- फिर किसके कहने पर लड़े चुनाव?

इटावा। समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव कभी भी राजनीति मे नही आना चाहते थे लेकिन अपने बडे भाई और पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव (नेता जी) का आदेश टालने की हिम्मत नही दिखा सके।

मुलायम सिंह यादव के आदेश के बाद प्रो.यादव ने अपने गृह जिले उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बसरेहर ब्लाक प्रमुख पद के लिए अपना नामांकन किया और रिकार्ड मतो से जीत हासिल की । साल 1987 मे बसरेहर के ब्लाक प्रमुख बन कर प्रो.यादव ने काग्रेस के पाले से यह सीट सपा के नाम कर ली थी।

राजनीति में आने से पहले प्रो.राम गोपाल यादव इटावा मुख्यालय पर स्थित के.के.कालेज में लेक्चरर थे। इसी कालेज से रामगोपाल ने अपना छात्र जीवन भी शुरू किया था। प्रो. यादव का जन्म इटावा जिले के सैफई गांव में 29 जून, 1946 को जन्म हुआ। यह वो दौर था। जब तकरीबन 200 साल बाद हिन्दुस्तान अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्त होने जा रहा था। देश में स्वतंत्रता आंदोलन निर्णायक स्थिति में पहुंच चुका था। देश के लोगों में आज़ादी को लेकर एक नयी उमंग थी, एक नया जोश था।


रामगोपाल पढ़ाई में हमेशा अव्वल दर्जे के छात्र रहे। उनकी शिक्षा-दीक्षा इटावा, आगरा और कानपुर में हुई। आगरा यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में एम एससी और कानपुर यूनिवर्सिटी से पॉलीटिकल साइंस में एम ए करने के बाद पीएचडी की। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अध्यापन का कार्य शुरू किया। 1969 में वह के.के.पोस्ट ग्रेजुएट कालेज, इटावा में भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता नियुक्त हुए। आगे चलकर वह इसी कालेज में प्रोन्नत होकर रीडर बने। 1994 में वह चौधरी चरण सिंह डिग्री कालेज, हैंवरा, इटावा के प्रधानाचार्य बने। यहां पर उन्होंने 2006 तक अपनी सेवाएं दीं।

जीवन में राष्ट्र को सर्वाेपरि मानने वाले प्रो. यादव का नाम देश की राजनीति में आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। उनका सार्वजनिक जीवन पूरी तरह बेदाग रहा है। पेशे से शिक्षाविद प्रोफेसर रामगोपाल यादव संसद में जब किसी विषय पर बोलते हैं तो सत्ता पक्ष और विपक्ष सभी उनके सारगर्भित, ओजस्वी, तथ्यों और तर्क से भरपूर भाषणों को ध्यान से सुनते हैं। जीवन में बेहद अनुशासित और संयमित रहने वाले प्रो. रामगोपाल यादव को अनुशासनहीनता और उदंडता बिल्कुल पसंद नहीं है। संसद हो या संसद के बाहर, वह बेहद विनम्र, शालीन और मर्यादित आचरण करते हैं। समाजवादी पार्टी ही नहीं दूसरे राजनीतिक दलों के लोग भी उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं।

समय के बेहद पाबंद प्रोफेसर रामगोपाल यादव सच्ची और खरी-खरी बात करने वाले इंसान हैं। वह चापलूसों और चाटुकारों से दूर रहते हैं। उनका मानना है कि इंसान के जीवन में समय सबसे अनमोल होता है, एक बार जो समय निकल जाता है। वह वापस लौटकर नहीं आता है। जो लोग समय की कद्र नहीं करते हैं उनसे कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसे लोग जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ सकते हैं।

एक इंटरव्यू के दौरान प्रो. यादव ने कहा था कि वो कभी भी राजनीति में नहीं आना चाहते थे । वो तो पेशे से प्राध्यापक थे। एक दिन नेता जी मुलायम सिंह जीप में आए और बोले कोई भी उम्मीदवार नहीं मिल रहा है तो तुम बसरेहर, इटावा से ब्लाक प्रमुख चुनाव के लिए नामांकन कर आओ । उसे जीतने के बाद फिर ज़िला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हुआ और तब तक मैं सक्रिय राजनीति में पहुॅच चुका था ।

मुलायम सिंह के परिवार से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि नेताजी ने रामगोपाल यादव की अनुपस्थिति में भी हमेशा उन्हें प्रोफ़ेसर साहब कर संबोधित किया है और खुद कह चुके हैं कि हमारे यहां आगरा विश्विद्यालय तक पढ़ के लौटने वाले रामगोपाल ही सबसे पढ़े लिखे थे ।

रामगोपाल तब ख़ासे नाराज़ हो उठते हैं जब उनके पास सिफ़ारिश करवाने की मंशा से लोग पूरी फ़ाइल भेज देते हैं ।उनका मानना है कि जो 30 सेकंड में अपनी बात दूसरे को समझा न सके तब दिक्कत है ।

epmty
epmty
Top