सियासी तमाशा: आखिर समझमें आ ही गया हल-कुदाल का भेद

सियासी तमाशा: आखिर समझमें आ ही गया हल-कुदाल का भेद

नई दिल्ली। नेताओं का काम ही भाषण देना होता है। इसके माध्यम से वे जनता को सीख देते हैं लेकिन कभी-कभी एक दूसरे को भी वे उपदेश देने लगते हैं, तब सियासी तमाशा देखने लायक होता है। पिछले दिनों ही किसान आंदोलन के दौरान न्यूज चैनल की एक संवाददाता ने एक किसान से पूछा कि आप ये कुदाल लेकर क्यों आये हैं ? इसका जवाब देते हुए उस किसान ने कहा था कि कुदाल नहीं यह हल है। इससे खेत की जुताई की जाती है। इसके बाद बीज बोया जाता है। फसल को खाद पानी देकर बडा करते हैं, तब कहीं अन्न पैदा होता है। ऐसी ही बहस पिछलें दिनों राज्यसभा में भी हो गयी।

मध्यप्रदेश की राजनीति ही नहीं राजनेता भी अक्सर चर्चाओं में रहते हैं। कभी कोई आइटम को लेकर तो कभी कोई इश्कबाजी को लेकर। शुक्रवार 5 फरवरी को राज्यसभा में कृषि कानूनों को लेकर भाजपा और कांग्रेस में आमने सामने तीखी बहस हुई। किसान आंदोलन के मसले पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। इस पर कांग्रेस की ओर से जवाब देते हुए दिग्विजय सिंह ने कृषि मंत्री पर ही तंज कस दिया। उन्होंने कहा कि नरेंद्र सिंह तोमर को किसानी की जानकारी ही नहीं है और प्रधानमंत्री ने उन्हें किसानों को कृषि कानून की जानकारी देने के लिए लगाया है।

नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर जहां किसान आंदोलन ने केन्द्र सरकार की नींद उड़ा रखी है, वहीं अब राजनीतिक घेरेबंदी भी सरकार की परेशानी बढ़ा रही है। दिग्विजय सिंह ने कहा, प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के साथ बात करने के लिए दो मंत्री लगाए हैं। नरेंद्र सिंह तोमर जिनके पास खेती ही नहीं तो वो किसानी क्या जानते होंगे. दूसरे पीयूष गोयल जो कॉर्पोरेट सेक्टर के प्रवक्ता हैं. दोनों ही मंत्री किसानी को लेकर अनुभवहीन हैं और यह कृषि कानून पर कैसे किसानों को संतुष्ट कर सकते हैं।

हालांकि खुद राजा दिग्विजय सिंह किसानी के बारे में प्रयोगात्मक (प्रैक्टिकल) रूप से कितने जानते हैं, यह भी किसी से छिपा नहीं है। इसीलिए किसान आंदोलन के मसले पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि वह खून से खेती कर सकती है। इस पर जवाब देते हुए दिग्विजय सिंह ने भाजपा पर आरोप लगा दिया कि वह हमेशा दंगे कराना चाहती है जबकि कृषि कानून की पुरजोर खिलाफत करते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा कि खून से खेती करना कांग्रेस का इतिहास नहीं रहा है, जो गोधरा में हुआ वो पानी की खेती थी या खून की खेती थी। भाजपा हमेशा नफरत और हिंसा की राजनीति करती आई है। कांग्रेस सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलती आई है। बहरहाल, बात कहां से कहां चली गयी। राज्यसभा में दोनों ही नेताओं के बीच इस मुद्दे पर तीखी बहस हुई।

केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों से लेकर राजनीतिक घेराबंदी जारी है। राहुल गांधी लगातार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर किसान विरोधी होने का आरोप लगा रहे हैं। दिग्विजय सिंह से कोई यह पूछे कि राहुल गांधी खेती किसानी के बारे में कितना जानते है? एक दिन पहले ही प्रियंका गांधी 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड में ट्रैक्टर पलटने से किसान की मौत के बाद उसके घर पहुंची थीं। इससे उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल देखी गई। यह सहानुभूति की राजनीति हो सकती है लेकिन कृषि विशेषज्ञ होने का दावा करने को लेकर मध्यप्रदेश के भाजपाई और कांग्रेसी आमने सामने खड़े हो गये है।

नरेंद्र सिंह तोमर भी मध्यप्रदेश के नेता हैं और दिग्विजय सिंह भी। दिग्विजय सिंह का जन्म राघोगढ़ में सामंती परिवार में हुआ था। राघोगढ़, ग्वालियर राज्य के अधीन एक राज्य था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के परिवार के अधीन छोटे राजा दिग्विजय सिंह ने प्रारम्भिक शिक्षा डेली कॉलेज इंदौर से प्राप्त की है। इसके बाद गोविन्दराम सेकसरिया प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, इंदौर से ही इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। वह अपना पेशा राजनीति और कृषि विद होने का बताते हैं लेकिन शैक्षिक डिग्री के हिसाब से वह इंजीनियर हैं। मध्यप्रदेश में भाजपा के प्रमुख नेता नरेन्द्र सिंह तोमर को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में लगातार दूसरी दफा शामिल किया गया है।

वर्ष 2014 में ग्वालियर से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद तोमर ने केन्द्र की राजनीति में लम्बा रास्ता तय कर लिया। ग्वालियर के मुरार में 12 जून 1957 को जन्मे 62 वर्षीय तोमर ने 1980 में भाजपा की युवा इकाई भारतीय जनता युवा मोर्च के शहर अध्यक्ष के पद से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। इसके बाद वह 1983 से 87 तक पार्षद रहे और 1998-2008 तक विधायक तथा 2003-2007 तक प्रदेश की भाजपा सरकार में मंत्री पद पर रहे। इसके बाद उन्हें प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया।

राज्यसभा सांसद के बाद तोमर 2009 में मुरैना लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए। सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यों का आयोजन करने में रुचि रखते हैं। इसके अलावा, गरीबों की मदद, रक्तदान शिविरों के आयोजन और वृक्षारोपण में उनकी विशेष रुचि है। वे दर्पण खेल संस्थान ग्वालियर के खेल-कूद और क्लब अध्यक्ष थे। उनका पसंदीदा मनबहलाव और मनोरंजन फिल्में देखना है। उनका उपनाम मुन्ना भैया है, जो बाबूलाल गौर द्वारा दिया गया है। खेल में उनके आकर्षण के अलावा, उनके साहित्यिक हित भी काफी स्पष्ट हैं। कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए, तोमर कई काव्य संगोष्ठियों का आयोजन करते रहते हैं। वे कई सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी शामिल हैं। बहरहाल, वह दिग्विजय सिंह की तरह पेशे से कृषि विद नहीं हैं लेकिन समाज सेवा का सर्टिफिकेट उनके भी पास है।

मध्यप्रदेश के सियासी पन्ने पलटें तो साल 1967 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया के साथ कांग्रेस के 36 विधायक विरोधी दल में शामिल हो गए थे जिसके बाद तत्कालीन द्वारका प्रसाद मिश्रा की कांग्रेस सरकार गिर गई थी और पहली बार एमपी में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। ठीक उसी तरह साल 2020 में उनके पौत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के 22 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे और कांग्रेस की कमल नाथ सरकार गिर गयी। उसके बाद शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बने। शिवराज सिंह चौहान ने राजमाता के पोते और बीजेपी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के बहाने एक बार फिर कांग्रेस पर निशाना साधा। मौका था-जनसंघ की संस्थापक सदस्यों में से एक रही राजमाता विजयाराजे सिंधिया की पुण्यतिथि का। शिवराज ने कहा एक बार राजमाता ने कांग्रेस की सरकार उखाड़ी थी, दूसरी बार उनके पोते ने सरकार गिरा दी। अब पूरा परिवार एक ही पार्टी में है, ये देखकर राजमाता जहां भी होंगी खुश होंगी।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने से पहले तक सिंधिया परिवार दो अलग-अलग पार्टियों में बंटा हुआ था। ज्योतिरादित्य कांग्रेस में थे तो वहीं दूसरी तरफ सिंधिया परिवार की ही यशोधरा राजे सिंधिया और वसुंधरा राजे सिंधिया बीजेपी में थीं। हालांकि राजनीतिक तौर पर यह बंटवारा अतीत में भी रहा है। विजयाराजे सिंधिया जनसंघ में थीं और आखिरी वक्त तक बीजेपी में ही रहीं, वहीं दूसरी तरफ उनके बेटे माधवराव सिंधिया को कांग्रेस रास आई। बाद में उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस में ही शामिल रहे।

भाजपा में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने लिखा है शराबखोरी से गरीबों की जिंदगी तबाह हो रही है। उन्होंने यह भी लिखा कि कोई गलतफहमी न हो, इसलिए पत्र को सार्वजनिक कर रही हूं। इस अभियान को सरकार के खिलाफ या संगठन की लाइन से हटकर चलाने से बचने के लिए उमा भारती ने गांधीजी के अभियान का भी पत्र में उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा-गांधी जी की कल्पना में आजाद भारत में शराबबंदी भी थी लेकिन, इस देश में अभी तक जो प्रयास हुए हैं, वह सरकारी या राजनीतिक की बजाय सामाजिक रूप से ज्यादा सफल हुए हैं। (हिफी)

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