विपक्षी नेता बनाम मोदी का विकल्प

विपक्षी नेता बनाम मोदी का विकल्प

नई दिल्ली। बिहार में सरकार के समीकरण बदलने के साथ ही केन्द्र की राजनीति को लेकर अटकलें लगायी जाने लगी हैं। आठवीं बार मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार ने हालांकि यही कहा कि वे पीएम पद की रेस में कतई शामिल नहीं हैं लेकिन इतना जरूर कहा कि वे राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के खिलाफ विपक्ष को एक जुट कहेंगे। यही काम देश के चार-पांच नेता और कर रहे हैं। इनमें सबसे आगे नाम ममता बनर्जी का है। ममता के अलावा के चन्द्रशेखर राव, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, जगनमोहन रेड्डी और अखिलेश यादव भी शामिल हैं। राजनीति के जानकार तेजस्वी यादव के इस बयान के पीछे की मंशा भी समझने का प्रयास कर रहे हैं जो उन्होंने कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से मुलाकात से पहले दिया था। तेजस्वी ने कहा कि नीतीश जी बहुत अनुभवी नेता हैं और नरेन्द्र मोदी अगर प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो नीतीश कुमार क्यों नहीं? नीतीश के केन्द्र में जाने से ही तेजस्वी के सीएम बनने की सम्भावना है।

एनडीए का साथ छोड़ने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर की लामबंदी शुरू कर दी है। नीतीश कुमार ने विपक्षी पार्टियों से अपील की है कि सभी विपक्षी दल एक साथ चलें और सब एकजुट रहें। बिहार के नए उप मुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि अगर नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए तो नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री बन सकते हैं। तेजस्वी ने नीतीश के पीएम बनने की संभावनाओं पर दो टूक कहा कि मुख्यमंत्री के रूप में उनका सबसे ज्यादा अनुभव रहा है, और उनके जितना बड़ा कद वाला कोई नहीं है। हालांकि, तेजस्वी ने कहा कि नीतीश कुमार पीएम बनना चाहेंगे या नहीं, यह उन पर निर्भर करता हैै। बिहार में एनडीए का साथ छोड़कर महागठबंधन के साथ आने और मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी को चुनौती दे दी नीतीश कुमार ने कहा कि वह 2014 में जीते, लेकिन क्या वह 2024 में होंगे? नीतीश कुमार के इस बयान के कई राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। हालांकि नीतीश कुमार ने केंद्र में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए बार-बार विपक्षी एकता की दिशा में काम करने की बात कही, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या वह पीएम उम्मीदवार बनना चाहते हैं, तो उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि वह किसी भी चीज के दावेदार नहीं हैं।

बिहार में लोकसभा चुनाव के एक साल बाद 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं। नीतीश के अभी भी 2024 में कुर्सी पर बने रहने की संभावना है, जिसका अर्थ है कि चुनौती देने वाली अटकलें जल्द ही खत्म होने की संभावना नहीं है, खासकर कांग्रेस के कमजोर होने और विपक्ष में अभी भी एकजुटता की कमी देखने को मिल रही है। वहीं उनके डिप्टी राजद के तेजस्वी यादव ने कहा है कि नीतीश कुमार अभी भारत में सबसे अनुभवी मुख्यमंत्री हैं। नीतीश कुमार के लिए एक अच्छी बात यह है कि राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं वाली एक अन्य क्षेत्रीय नेता बंगाल की ममता बनर्जी- को अपनी पार्टी के सहयोगियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद अपने बढ़ते कदम को रोकना पड़ा है। विश्लेषकों ने वर्षों से यह सिद्धांत बनाया है कि अगर कांग्रेस गैर-प्रमुख भूमिका निभाती है तो नीतीश कुमार पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष के उम्मीदवार हो सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चुनौती बनकर उभरे दूसरे बड़े मुख्यमंत्री के रूप में ममता बनर्जी हैं, जिन्होंने पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी की है. पिछले साल हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों की बात करें तो उनकी पार्टी टीएमसी ने कुल 48.02 फीसदी वोट शेयर हासिल किए थे, जबकि उनके खिलाफ पूरी ताकत से मैदान में उतरी बीजेपी और टीम मोदी को 27.81 फीसदी वोट हासिल हुए थे। 42 लोकसभा सदस्यों वाले बंगाल में 2019 के चुनावों में भी टीएमसी को कुल 43.3 फीसदी वोट मिले थे, जबकि मोदी लहर में बीजेपी को 40.7 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस को 5.67 और लेफ्ट को 6.33 फीसदी वोट मिले थे। अगर 2024 में पूरा विपक्ष एकजुट होकर चुनाव लड़ता है तो बीजेपी के मौजूदा लोकसभा सांसदों की संख्या 18 से नीचे खिसक सकती है।

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी लंबे समय से पीएम मोदी की आलोचना करते रहे हैं. दोनों नेताओं में सियासी मत भिन्नता इतनी कि हैदराबाद में पीएम मोदी की अगुवानी करने भी केसीआर नहीं गए. पीएम मोदी की टीम भी उन्हें सियासी पटखनी देने में पीछे नहीं है. अभी हाल ही में प्रधानमंत्री और अमित शाह ने मिशन दक्षिण के तहत हैदराबाद पर जोर बढ़ा दिया है। केसीआर चाहते हैं कि गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस दलों का तीसरा मोर्चा 2024 में पीएम मोदी के जादू की काट निकाले। इसके लिए उन्होंने कई मुख्यमंत्रियों से संपर्क भी साधे लेकिन फिलहाल वो इस मुहिम में कामयाब होते नहीं दिख रहे। बहरहाल, 2024 चे चुनाव में केसीआर बीजेपी के लिए फिर मुश्किल खड़े कर सकते हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी केसीआर ने तेलंगाना में कुल 46.9 फीसदी अपने दम पर हासिल किए

थे, जबकि बीजेपी गठबंधन को सिर्फ 7.1 फीसदी वोट मिले थे। मुख्य विपक्षी कांग्रेस को 28.4 फीसदी वोट मिले

थे।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एम के स्टालिन भी तमिलनाडु में बीजेपी की राह में बड़ा कांटा हैं। 39 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में 2019 के लोकसभा चुनावों में डीएमके और कांग्रेस के गठबंधन को कुल 38 सीटों पर जीत मिली थी और कुल 33.53 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजेपी और एआईएडीएमके गठबंधन को मात्र एक सीट पर ही संतोष करना पड़ा।

इस गठबंधन को 19.39 फीसदी वोट मिले थे। इसमें बड़ी बात यह है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन को कोई सीट नहीं मिली थी। मराठा छत्रप और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार भी महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं माना जा रहा है कि शरद पवार की पार्टी एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ सकता है। 2019 के लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र की कुल 48 सीटों में से 23 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी और उसकी सहयोगी शिवसेना ने 18 सीटें जीती थीं। दोनों दलों को क्रमशः 27.84 और 23.5 फीसदी वोट मिले थे, जबकि अलग-अलग चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस और एनसीपी को क्रमशः 16 और 15.66 फीसदी वोट मिले थे। बदली हुई मौजूदा सियासी परिस्थितियों में अब शिवसेना दो फाड़ हो चुकी है, ऐसे में 2019 के मुकाबले 2024 में का वोट शेयर बंटने का खतरा है। सवाल यह है कि विपक्ष को एक करने मंे किसको कामयाबी मिलेगी। नीतीश कुमार ने इसका दावा तो किया है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

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